Trump Charges Indian Companies
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    Trump India Tariff Threat: भारत को लेकर एक बड़ी धमकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी है। उन्होंने कहा है, कि रूस से बड़ी मात्रा में भारत न केवल तेल खरीद रहा है, बल्कि मोटे मुनाफे पर उसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेच भी रहा है। ट्रंप का कहना है, कि भारत को इस बात की परवाह नहीं है, कि यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं। इसलिए वे भारत से अमेरिका आने वाले सामान पर काफी ज्यादा शुल्क लगाने वाले हैं।

    लेकिन सच्चाई यह है, कि ट्रंप की यह धमकी सिर्फ यूक्रेन या रूस के बारे में नहीं है। यह चुनावी साल में एक चतुर राजनीतिक चाल है। जिसका मकसद है, अमेरिकी तेल कंपनियों को फायदा पहुंचाना, ऊर्जा व्यापार की दिशा बदलना और रणनीतिक साझेदारों पर आर्थिक दबाव बनाना।

    भारत क्यों खरीदता है रूसी तेल-

    यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत रूस के सबसे बड़े ऊर्जा खरीदारों में से एक बन गया है। जनवरी से जून 2025 के बीच भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी कच्चे तेल के 17.5 लाख बैरल प्रतिदिन से अधिक खरीदे हैं। यह भारत की कुल तेल जरूरत का लगभग 36 से 40 प्रतिशत है। इस कदम से भारत को महंगाई काबू में रखने और आयात बिल कम करने में मदद मिली है, भले ही वाशिंगटन में इसकी आलोचना हुई हो। दिलचस्प बात यह है, कि 2022 और 2023 में अमेरिकी अधिकारियों ने निजी तौर पर भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था, ताकि वैश्विक कीमतों में स्थिरता बनी रहे। अब यह रुख पूरी तरह बदल गया है।

    ट्रंप की असली परेशानी क्या है-

    ट्रंप के दबाव अभियान के केंद्र में अमेरिकी तेल निर्यात को बढ़ावा देना है। उनके चुनावी अभियान को अमेरिकी जीवाश्म ईंधन कंपनियों का भारी समर्थन मिला है। उनके नवीनतम कर पैकेज में तेल और गैस क्षेत्र के लिए लगभग 18 अरब डॉलर के नए प्रोत्साहन हैं। भारत पहले से ही एक बढ़ता हुआ ग्राहक है। 2025 की पहली छमाही में भारत को अमेरिकी कच्चे तेल की खेप में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है और अब यह भारत के तेल आयात का 8 प्रतिशत है। जितना अधिक भारत अमेरिकी तेल और गैस की तरफ झुकेगा, उतना ही अमेरिकी ऊर्जा प्रभुत्व मजबूत होगा और ट्रंप के समर्थकों को फायदा होगा।

    शुल्क को हथियार के रूप में इस्तेमाल-

    ट्रंप की शुल्क वाली धमकी सिर्फ भारत को उसकी ऊर्जा पसंद के लिए सजा देने के बारे में नहीं है। यह दबाव बनाने का तरीका है। अमेरिका भारत के निर्यात का लगभग पांचवां हिस्सा खरीदता है। शुल्क बढ़ने से मुख्य क्षेत्रों पर असर पड़ेगा जैसे कपड़ा, दवाइयां, ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स। विश्लेषकों का कहना है, कि ट्रंप शुल्क का इस्तेमाल कोई सीधा हमला करने के लिए नहीं, बल्कि भारत की व्यापारिक और ऊर्जा प्राथमिकताओं को बदलने के लिए एक सोची-समझी रणनीति के रूप में कर रहे हैं।

    भारत पर क्या असर होगा-

    अगर भारत को रूसी तेल आयात कम करने और महंगे विकल्पों की तरफ मुड़ने पर मजबूर किया गया, तो उसका सालाना कच्चा तेल बिल 11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। इससे महंगाई बढ़ेगी और विकास दर पर असर पड़ेगा। साथ ही अगर ट्रंप की शुल्क धमकी अमल में आई, तो भारत के निर्यात क्षेत्रों को सालाना 18 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। इससे मार्जिन घटेगा, कीमतें बढ़ेंगी और छोटी तथा मझली कंपनियों में नौकरियां खतरे में पड़ेंगी।

    भारत का जवाब-

    विदेश मंत्रालय ने ट्रंप की टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा है, कि भारत ने रियायती रूसी तेल की तरफ रुख इसलिए किया था, क्योंकि पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं ने अपना निर्यात यूरोप की तरफ मोड़ दिया था। उस समय अमेरिका ने वैश्विक बाजार को स्थिर करने के लिए भारत की खरीदारी का समर्थन किया था। विदेश मंत्रालय ने कहा, कि भारत का आयात भारतीय उपभोक्ताओं के लिए पूर्वानुमेय और किफायती ऊर्जा लागत सुनिश्चित करने के लिए है। यह वैश्विक बाजार की स्थिति के कारण मजबूरी है। मंत्रालय ने यह भी बताया, कि 2024 में यूरोपीय संघ का रूस के साथ व्यापार भारत से काफी ज्यादा था और अमेरिका अभी भी रूस से यूरेनियम, पैलेडियम और उर्वरक का आयात कर रहा है।

    भारत का कहना है, कि वह अपने राष्ट्रीय हित के अनुसार काम करेगा और उसे अकेले निशाना बनाने की कोशिशें व्यापक व्यापारिक हकीकतों को नजरअंदाज करती हैं। उसकी ऊर्जा पसंद आर्थिक सुरक्षा और व्यावहारिक कूटनीति पर आधारित है।

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    राजनीतिक खेल की सच्चाई-

    ट्रंप की रणनीति तेल की राजनीति को व्यापारिक दबाव के साथ मिलाती है। उनकी नवीनतम चेतावनियां सिर्फ मास्को पर गुस्से को नहीं दर्शातीं, बल्कि ऊर्जा गठबंधनों को फिर से आकार देने और रणनीतिक प्रभाव हासिल करने की अमेरिका की व्यापक कोशिश को दिखाती हैं।

    ट्रंप की चेतावनी मास्को के बारे में कम और ऊर्जा गठबंधनों को नया रूप देने की वाशिंगटन की इच्छा के बारे में ज्यादा है। तेल और शुल्क को जोड़कर वे एक सख्त लकीर खींच रहे हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक मानदंडों की रक्षा नहीं, बल्कि आर्थिक फायदा हासिल करना है। यह दिखाता है, कि आज की दुनिया में ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों का खेल कितना जटिल और बहुआयामी हो गया है।

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