Kadhi in Sawan: हिंदू कैलेंडर में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है और इसे सबसे पवित्र समय माना जाता है। इस महीने में करोड़ों श्रद्धालु व्रत रखते हैं, प्रार्थना करते हैं और विभिन्न खान-पान के नियमों का पालन करते हैं। सावन में खाने-पीने को लेकर कई परंपराएं हैं, जिनमें से एक दिलचस्प बात यह है कि इस महीने में कढ़ी खाना वर्जित माना जाता है।
कढ़ी एक लोकप्रिय भारतीय व्यंजन है जो दही और बेसन से बनता है। पंजाब, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में यह बहुत पसंद किया जाता है। लेकिन सावन के महीने में इसे खाने से परहेज करने की सलाह दी जाती है। आइए जानते हैं इसके पीछे के धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण।
क्या है कढ़ी और कैसे बनती है-
कढ़ी एक पारंपरिक भारतीय व्यंजन है जो बेसन और दही को मिलाकर बनाया जाता है। इसमें विभिन्न मसाले डाले जाते हैं और अक्सर इसके साथ पकोड़े भी परोसे जाते हैं। यह खट्टा-मीठा स्वादिष्ट व्यंजन है जो सभी उम्र के लोगों को पसंद आता है। हर राज्य में कढ़ी बनाने का अपना अलग तरीका है – कहीं मीठी, कहीं खट्टी, कहीं मसालेदार।
इस व्यंजन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें दही का इस्तेमाल होता है। दही एक fermented यानी खमीर उठा हुआ डेयरी उत्पाद है, जो दूध को खट्टा करके बनाया जाता है। यही खासियत कढ़ी को सावन के महीने में वर्जित बनाती है।
धार्मिक मान्यता और आध्यात्मिक अनुशासन-
सावन का महीना आध्यात्मिक अनुशासन का समय है। इस दौरान भक्तजन व्रत रखते हैं और सात्विक यानी शुद्ध और सरल भोजन का सेवन करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, कढ़ी तामसिक या राजसिक गुण वाला भोजन माना जाता है। इसका मतलब है कि यह आलस्य या बेचैनी पैदा कर सकता है, जो सावन के सात्विक सिद्धांतों के विपरीत है।
भगवान शिव के भक्त इस महीने में अपने शरीर और मन को शुद्ध रखने की कोशिश करते हैं। वे ऐसे भोजन से बचते हैं जो मानसिक शांति में बाधा डाल सकता है। कढ़ी में दही का इस्तेमाल होने के कारण यह इस श्रेणी में आता है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो फर्मेंटिड खाद्य पदार्थ पवित्र समय में उपयुक्त नहीं माने जाते।
किण्वित खाद्य पदार्थों से परहेज-
सावन में फर्मेंटिड यानी खमीर उठे हुए खाद्य पदार्थों से बचने की सलाह दी जाती है। कढ़ी में दही का इस्तेमाल होता है, जो कि फर्मेंटिड डेयरी उत्पाद है। आयुर्वेदिक और योग की प्रथाओं के अनुसार, फर्मेंटिड खाद्य पदार्थ शरीर के दोषों में असंतुलन पैदा कर सकते हैं और मानसिक स्पष्टता को प्रभावित कर सकते हैं।
सावन के दौरान भक्तजन ध्यान और प्रार्थना में लीन रहना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें ऐसे भोजन की जरूरत होती है जो मन को शांत रखे और एकाग्रता बढ़ाए। फर्मेंटिड खाद्य इस लक्ष्य में बाधा डाल सकते हैं, इसलिए इनसे बचा जाता है।
मानसून और स्वास्थ्य कारक-
सावन का महीना अक्सर मानसून के समय आता है, जब पेट की संक्रमण और पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। इस समय हवा में नमी अधिक होती है और बारिश के कारण संक्रमण का जोखिम रहता है। कढ़ी जैसे फर्मेंटिड और डेयरी आधारित खाद्य पदार्थ इस मौसम में जल्दी खराब हो सकते हैं।
गर्मी और नमी में दही आसानी से खराब हो जाता है, जिससे पेट दर्द, अपच या फूड पॉइज़निंग हो सकती है। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सावन में कढ़ी खाने से बचना समझदारी की बात है। हमारे पूर्वजों ने इस बात को समझा और इसे धार्मिक परंपरा का हिस्सा बना दिया।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण-
आयुर्वेद के अनुसार, दही कफ और पित्त दोष को बढ़ाता है, जिससे कफ बनने और पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा रहता है। मानसून के दौरान शरीर की पाचन अग्नि कमजोर हो जाती है, इसलिए भारी और कफ बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
कढ़ी एक दही आधारित व्यंजन होने के कारण इसे पचाना मुश्किल हो सकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सक सलाह देते हैं कि बारिश के मौसम में हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन लें। यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर है।
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क्या सभी डेयरी उत्पाद वर्जित हैं-
यह जरूरी नहीं है कि सभी डेयरी उत्पाद सावन में वर्जित हों। दूध और दूध से बनी मिठाइयां जैसे खीर, जो फर्मेंटिड नहीं होतीं, सावन के व्रत में सामान्यतः खाई जाती हैं। मुख्य अंतर फर्मेंटिड में है, ताजा दूध स्वीकार्य है, लेकिन फर्मेंटिड डेयरी उत्पाद जैसे दही या छाछ आमतौर पर प्रतिबंधित होते हैं। यह बात दिखाती है, कि हमारी परंपराएं कितनी सोच-समझकर बनाई गई हैं। इनमें धर्म, स्वास्थ्य और मौसम के अनुकूल व्यवहार का सुंदर मिश्रण है। सावन में दूध पीना और खीर खाना शुभ माना जाता है, लेकिन दही और उससे बने व्यंजनों से बचा जाता है।
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