Kalawa
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    Kalawa: हिंदू धर्म में हर छोटी-बड़ी परंपरा का अपना एक खास मतलब होता है। चाहे वो मंदिर में दीप जलाना हो या घंटी बजाना, हर रिवाज़ के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण छुपा होता है। इन्हीं पावन परंपराओं में से एक है कलावा बांधना, जो आज भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा है।

    कलावा एक पवित्र धागा है जो कई रंग-बिरंगे धागों को मिलाकर बनाया जाता है। आमतौर पर यह लाल या नारंगी रंग का होता है और इसे 'रक्षा', 'रक्षा सूत्र', 'मौली' या सिर्फ 'धागा' भी कहते हैं। यह केवल एक साधारण धागा नहीं है, बल्कि हमारे पूर्वजों की गहरी सोच और विश्वास का प्रतीक है।

    Kalawa कलावा बांधने की सही विधि-

    कलावा बांधने का भी अपना एक नियम होता है। आमतौर पर पुरुषों के दाहिने हाथ की कलाई पर और महिलाओं के बाएं हाथ की कलाई पर कलावा बांधा जाता है। हालांकि यह प्रथा अलग-अलग इलाकों में थोड़ी अलग हो सकती है। जब कोई पंडित जी या घर के बुजुर्ग कलावा बांधते हैं, तो वे खास मंत्रों का जाप करते हैं।

    घर की पूजा हो या मंदिर का हवन-यज्ञ, नामकरण संस्कार हो या शादी-विवाह, जनेऊ की रस्म हो या कोई और पावन अवसर, हर जगह कलावा का बंधना जरूरी माना जाता है। त्योहारों के समय भी, जैसे कि रक्षाबंधन और नवरात्रि में, पूजा शुरू करने से पहले कलावा बांधा जाता है।

    Kalawa कलावे के पीछे की मान्यताएं-

    हिंदू धर्म में कलावे को लेकर कई गहरी मान्यताएं हैं। सबसे मुख्य विश्वास यह है कि कलावा एक सुरक्षा कवच का काम करता है। माना जाता है कि यह रक्षा सूत्र हमें बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा, आपदाओं और जीवन की समस्याओं से बचाता है। यहां तक कि कुछ बीमारियों से भी यह हमारी रक्षा करता है।

    धार्मिक गतिविधियों के दौरान कलावा हमारे शरीर को ऊर्जावान रूप से शुद्ध रखता है और अनचाही नकारात्मक शक्तियों को हमसे दूर रखता है। यह हमारे आसपास एक सुरक्षा की दीवार बनाता है।

    रंगों का महत्व-

    हिंदू धर्म में कुछ रंगों को बेहद शुभ माना जाता है। पीला, लाल, नारंगी और दूसरे चमकदार रंग सुरक्षा, पवित्रता और शक्ति के प्रतीक हैं। कलावे का चमकदार लाल-पीला रंग हमें नुकसान से बचाता है और मन में सुरक्षा की भावना देता है।

    कब बदलें कलावा?

    अक्सर लोग एक बार कलावा बांधने के बाद महीनों तक उसे वैसे ही पहने रहते हैं, लेकिन यह सही तरीका नहीं है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, कुछ समय के लिए ही कलावा पहनना चाहिए। कलावा 7 से 21 दिन तक ही पहनना चाहिए।

    जब कलावे का रंग फीका पड़ जाए और इसकी चमक खत्म हो जाए, तो इसे तुरंत बदल देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि जैसे-जैसे लाल रंग फीका पड़ता है, वैसे-वैसे कलावे की पवित्र ऊर्जा भी कम होती जाती है और यह एक साधारण धागे की तरह हो जाता है।

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    कलावा हटाने का सही तरीका-

    कलावा हटाने के बाद इसे कहीं भी फेंक देना सही नहीं है। पुराने कलावे को किसी पवित्र पेड़ के नीचे या पौधे के पास रख देना चाहिए। यह परंपरा भी हमारी संस्कृति की गहराई को दर्शाती है।

    आज के आधुनिक जमाने में भी ये पुरानी परंपराएं हमारे जीवन में उतनी ही प्रासंगिक हैं। कलावा सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि हमारी आस्था, विश्वास और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है और जीवन में सकारात्मकता लाता है।

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