Jagannath Rath Yatra
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    Jagannath Rath Yatra: शुक्रवार से देशभर में भगवान जगन्नाथ की पावन रथयात्रा का शुभारंभ हो गया है। इस महान पर्व की खुशी में दिल्ली का झिलमिल इलाका भी शामिल है, जहां श्री जगन्नाथ मंदिर से निकलने वाली रथयात्रा के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इस बार की खासियत यह है, कि यहां के रथों को पुरी के प्रसिद्ध कारीगरों ने अपने हाथों से तैयार किया है, जो देखने वालों के लिए एक अद्भुत अनुभव होगा।

    हर साल की तरह इस बार भी हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ने की उम्मीद है। भक्तों के चेहरों पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन की खुशी और उत्साह साफ दिखाई देता है। यह रथयात्रा सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि पूरे समुदाय को एक साथ लाने का माध्यम भी है।

    Jagannath Rath Yatra मंदिर का गौरवशाली इतिहास-

    मंदिर समिति के अध्यक्ष का कहना है, कि इस मंदिर की नींव 1975 में रखी गई थी। तब से लेकर आज तक यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। 1978 से यहां रथयात्रा का आयोजन शुरू हुआ और तब से यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है। यह दिखाता है कि कैसे धार्मिक परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहती हैं।

    2018 में मंदिर में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ जब भगवान जगन्नाथ का भव्य दरबार पहली मंजिल पर स्थापित किया गया। पहले यह ग्राउंड फ्लोर पर हुआ करता था। इस बदलाव से मंदिर की भव्यता में चार चांद लग गए हैं। श्री जगन्नाथ सेवा संस्था निरंतर मंदिर और भक्तों की सेवा में लगी रहती है।

    Jagannath Rath Yatra वीआईपी दर्शन से बढ़ी मंदिर की प्रतिष्ठा-

    इस मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि यहां कई केंद्रीय मंत्री भी दर्शन के लिए आ चुके हैं। सबसे खास बात यह है, कि बीते अप्रैल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी यहां आकर भगवान के दर्शन किए थे। इससे न केवल मंदिर की प्रतिष्ठा बढ़ी है, बल्कि स्थानीय समुदाय में भी गर्व की भावना आई है।

    दो चरणों में होगी रथयात्रा-

    इस वर्ष की रथयात्रा का आयोजन दो चरणों में किया जा रहा है। पहला चरण 27 जून को शुरू होकर मंदिर से विवेक विहार महिला कॉलेज होते हुए झिलमिल बी ब्लॉक मार्केट तक जाएगा। यह रूट इस तरह से तय किया गया है कि अधिक से अधिक लोग भगवान के दर्शन कर सकें।

    दूसरा चरण 9 दिन बाद 5 जुलाई को आयोजित होगा, जब भगवान अपने मूल निवास यानी मंदिर में वापस लौटेंगे। यह व्यवस्था इसलिए की गई है क्योंकि पारंपरिक मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर कुछ दिन बिताते हैं। बिस्वाल जी ने बताया, कि रथयात्रा का मुख्य उद्देश्य यह है, कि जो लोग किसी कारणवश मंदिर नहीं आ पाते, उन्हें भगवान स्वयं दर्शन देने के लिए बाहर आते हैं। यह भावना वास्तव में भगवान जगन्नाथ के करुणामय स्वरूप को दर्शाती है।

    पुरी के कलाकारों का कमाल-

    इस बार की रथयात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि रथों का निर्माण पुरी से आए कुशल कारीगरों द्वारा किया गया है। मुख्य कलाकार चित्रसेन महाराणा ने बताया कि आठ लोगों की टीम के साथ मिलकर इन रथों को तैयार किया गया है। सभी कारीगर पुरी से ही आए हैं, जो इस काम में माहिर हैं।

    इन रथों को बिल्कुल उसी पारंपरिक शैली में बनाया गया है जैसे पुरी में बनाए जाते हैं। रथों का सौंदर्य, शिल्पकारी और पारंपरिक सजावट देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यह वास्तव में कला और भक्ति का अनूठा संगम है।

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    पहियों से पहचान होती है रथों की-

    रथों की पहचान उनके पहियों से होती है, जो एक दिलचस्प परंपरा है। भगवान जगन्नाथ के रथ 'नंदीघोष' में 16 पहिए होते हैं, जो उनकी सर्वोच्चता को दर्शाते हैं। भगवान बलभद्र के रथ 'तालध्वज' में 14 पहिए लगाए जाते हैं। एक खास बात यह है, कि इस रथ में भगवान जगन्नाथ के साथ देवी सुभद्रा भी विराज सकती हैं, क्योंकि यह बड़े भाई का रथ है।

    देवी सुभद्रा के रथ 'दर्पदलन' में 12 पहिए होते हैं। इस बार रथ पर स्थापित सुदर्शन चक्र मुख्य आकर्षण का केंद्र रहेगा। इन रथों को देखकर दिल्लीवासियों को पुरी जैसा ही अनुभव मिलेगा। यह रथयात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। जब पूरा समुदाय एक साथ आकर इस पावन अवसर को मनाता है, तो यह दिखाता है कि धर्म और आस्था कैसे लोगों को जोड़ने का काम करते हैं।

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