Dakor Annakut Festival: खेड़ा जिले के डाकोर में स्थित प्रसिद्ध रणछोड़रायजी मंदिर में अन्नकूट महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार गुजरात की धार्मिक परंपराओं का एक अहम हिस्सा है और हर साल दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। इस बार मंदिर में भगवान रणछोड़रायजी को पूरे 151 मन अन्नकूट का भोग लगाया गया। यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं बल्कि भक्ति, आस्था और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। मंदिर परिसर में उमड़ी भक्तों की भीड़ और प्रसाद वितरण की अनूठी परंपरा ने इस त्योहार को और भी खास बना दिया।
क्या है अन्नकूट महोत्सव?
अन्नकूट शब्द का शाब्दिक अर्थ है “भोजन का पहाड़”। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान को तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है और फिर उसे प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है। यह त्योहार खासतौर पर वैष्णव परंपराओं में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है और अक्सर इसे गोवर्धन पूजा और गुजराती नववर्ष के साथ भी मनाया जाता है।
अन्नकूट का त्योहार सिर्फ भोजन चढ़ाने भर तक सीमित नहीं है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने, कृष्ण की लीला को याद करने और समुदाय के साथ मिलकर उत्सव मनाने का दिन है। गुजरात के डाकोर में यह परंपरा पिछले 250 सालों से चली आ रही है और हर साल हजारों श्रद्धालु इस महोत्सव में शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
Kheda, Gujarat: In Dakor, Gujarat, a centuries-old tradition sees over 3,000 kg of Annakut offered to Lord Ranchhodrai on Diwali’s second day. Villagers from 80 nearby villages “loot” the prasad, ensuring safety with police, then share it among themselves pic.twitter.com/yZXni1HoPw
— IANS (@ians_india) October 21, 2025
गोवर्धन पूजा और श्री कृष्ण की कहानी-
अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत एक पौराणिक कथा से जुड़ी है। कहा जाता है, कि वृंदावन के लोग अच्छी फसल के लिए बारिश के देवता इंद्र की पूजा करते थे। लेकिन बालक श्री कृष्ण ने ग्रामीणों को समझाया, कि उन्हें इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यही पर्वत उनके जीवन का असली आधार है। यहीं से उन्हें चारा, पानी और जीवन यापन के सभी साधन मिलते हैं।
इस बात से इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने गांव पर भारी बारिश और तूफान का कहर बरपा दिया। तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिन और सात रात तक ग्रामीणों और उनके मवेशियों को सुरक्षा प्रदान की। आखिरकार इंद्र का घमंड टूट गया और उन्होंने कृष्ण के सामने सिर झुका दिया। इस खुशी में ग्रामीणों ने भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत के लिए एक भव्य भोज यानी अन्नकूट तैयार किया। यही परंपरा आज तक चली आ रही है।
151 मन प्रसाद और 80 गांवों का सामूहिक उत्सव-
डाकोर के रणछोड़रायजी मंदिर में आज 151 मन अन्नकूट का भोग लगाया गया। यह सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। मंदिर की परंपरा के अनुसार, आसपास के 80 गांवों के भक्तों को लिखित रूप से आमंत्रित किया जाता है। इन गांवों के लोग इस प्रसाद को बांटने और ग्रहण करने आते हैं।
अन्नकूट की खास बात यह है, कि इसे वितरित करना अनिवार्य माना जाता है। मंदिर में सुबह गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत होती है। दोपहर 12 बजे भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर महाआरती की जाती है। इसके बाद दोपहर 1:30 से 2:00 बजे के बीच आमंत्रित ग्रामीणों को प्रसाद वितरित किया जाता है। ऐसी मान्यता है, कि इस प्रसाद का सेवन करने से पूरे साल स्वस्थ रहा जा सकता है।
केसर, मोहनथाल और शुद्ध घी से बने व्यंजन-
अन्नकूट में विभिन्न प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं। इस साल केसर, चावल, बेसन, सहजन और शुद्ध घी से बने कई पकवान तैयार किए गए। बूंदी, मोहनथाल, मैसूर पाक जैसी मिठाइयों के साथ-साथ दाल, सब्जी और अन्य व्यंजन भी भगवान को अर्पित किए गए। सबसे ऊपर 1.5 किलो का बूंदी लड्डू सजाया जाता है, जिसे शुद्ध देसी घी से सजाया जाता है। इसके बाद श्रीजी महाराज को तुलसी की माला पहनाई जाती है और भोजन अर्पित किया जाता है।
मंदिर के पुजारी जनक महाराज के अनुसार, यह परंपरा मौजूदा मंदिर के निर्माण के समय से यानी पिछले 250 सालों से चली आ रही है। उन्होंने बताया, कि भगवान के लिए अन्नकूट का विशेष महत्व है। हालांकि भगवान को हर दिन भोग लगाया जाता है, लेकिन अन्नकूट एक खास अर्पण है।
अन्नकूट चुराने की अनोखी परंपरा-
डाकोर मंदिर की सबसे दिलचस्प परंपरा है अन्नकूट चुराने की रस्म। जी हां, आपने सही पढ़ा! यह साल का एकमात्र दिन है, जब लोग मंदिर में आकर भगवान का प्रसाद चुराते हैं। दोपहर 12 बजे भोग लगाने के बाद, 1:30 से 2:00 बजे के बीच आमंत्रित ग्रामीण आते हैं और अन्नकूट को चुराकर खाते हैं। यह परंपरा सालों और दशकों से चली आ रही है।
पुजारी जनक महाराज बताते हैं, कि इस परंपरा का खास महत्व है। यह एक तरह से भगवान की लीला का ही हिस्सा है, जहां भक्त प्रसाद को चुराकर खाते हैं और इसे बेहद शुभ माना जाता है। यह परंपरा श्री कृष्ण के माखन चुराने की लीला की याद दिलाती है और भक्तों को भगवान के करीब लाती है।
आस्था और परंपरा का संगम-
डाकोर का अन्नकूट महोत्सव सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह गुजरात की सांस्कृतिक विरासत और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। 80 गांवों के लोगों का एक साथ आना, 151 मन प्रसाद तैयार करना और फिर उसे मिलकर बांटना, यह सब भारतीय संस्कृति की उस भावना को दर्शाता है, जहां सामूहिकता और साझेदारी को सर्वोपरि माना जाता है।
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इस साल भी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। लोगों ने पूरी आस्था के साथ दर्शन किए और प्रसाद ग्रहण किया। यह त्योहार न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह लोगों को उनकी जड़ों से भी जोड़ता है। 250 साल पुरानी यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
डाकोर के रणछोड़रायजी मंदिर में मनाया गया। अन्नकूट महोत्सव भारतीय परंपराओं की समृद्धि और जीवंतता का एक बेहतरीन उदाहरण है। 151 मन प्रसाद, 80 गांवों की सहभागिता और 250 साल पुरानी परंपरा, यह सब मिलकर इस त्योहार को अविस्मरणीय बनाते हैं। अन्नकूट सिर्फ भोजन का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, भगवान के प्रति समर्पण और समुदाय के साथ एकता का उत्सव है। हर साल यह परंपरा लाखों लोगों को आस्था की डोर से बांधती है और उन्हें अपनी संस्कृति के करीब लाती है।
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