UCC: हाल ही में विधानसभा में ऐतिहासिक यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को पेश किया गया है। उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड में तलाक, शादी और उत्तराधिकारी पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें शादी की उम्र 18 साल 21 साल ही रखी गई है। लिव-इन में जन्मे बच्चे के उत्तराधिकार का प्रावधान भी इसमें किया जाएगा। इसके अलावा इसमें तलाक को लेकर विशेष प्रावधान किए गए हैं। मैरिज एक्ट पर भी चर्चा की गई है। बिना रजिस्ट्रेशन शादी को अमान्य घोषित किया जाएगा।
शादी के 1 साल तक तलाक की अर्जी नहीं दी जा सकेगी। हर शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी हो जाएगा और शादी के समय महिला और पुरुष के शादीशुदा ना होने की बात कही गई है। इस प्रकार से प्रदेश में बहु विवाह पर रोक लगाया जाएगा और एक शादी के बाद दूसरी शादी के लिए तलाक जरूरी हो जाएगा। जनजातीय समुदाय को इससे पूरी तरह से बाहर कर दिया गया है।
शादी की न्यूनतम उम्र-
दरअसल शादी को लेकर उत्तराखंड में एक बड़ा निर्णय लिया गया है शादी की न्यूनतम उम्र के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। लड़कों की शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़कियों की आयु 18 ही रखी गई है। लेकिन लड़की लड़के की शादी का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो जाएगा। एक बार फिर से शादी के बाद लड़का या लड़की को दूसरी शादी की तब तक इजाजत नहीं होगी, जब तक पहली शादि अमान्य नहीं हो जाती। अगर पत्नी या पति की मृत्यु हो जाती है तो माता-पिता का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है। शादी के रजिस्ट्रेशन को आसान किया गया है। बिना रजिस्ट्रेशन वाली शादी को मान्यता नहीं होगी। यह मुस्लिम, हिंदू और सभी धर्मों पर लागू होगा।
तलाक के नियम-
तलाक के नियमों की बात की जाए तो इसे लेकर बहुत से कड़े प्रावधान किए गए हैं। किसी भी लड़का या लड़की को शादी के तुरंत बाद तलाक नहीं मिलेगा। शादी के 1 साल बाद ही कोई तलाक के लिए अर्जी दे पाएगा। मुस्लिम समाज में तीन तलाक जैसी व्यवस्था को खत्म कर दिया जाएगा और कानूनी तौर पर तलाक के लिए मुस्लिम और हिंदू सभी वर्ग को एक समान तरीके की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। पहले से शादीशुदा व्यक्ति को बिना तलाक लिए दूसरी शादी की इजाजत नहीं होगी और अगर कोई शादी करता है तो उसे योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा।
माता-पिता की देखरेख की जिम्मेदारी-
उत्तराधिकारी के बारे में बात की जाए तो इसमें विशेष प्रावधान हुआ है। मुस्लिम महिला भी अपने बच्चों को गोद ले पाएंगी। वहीं अगर सिंगल गर्ल चाइल्ड वाली लड़की की मौत शादी के बाद होती है तो उसके माता-पिता की देखरेख की जिम्मेदारी पति की होगी। इसके अलावा गोद लिए गए बच्चे को भी संपत्ति का एक समान अधिकार होगा। जैविक संतानों और कानूनी रूप से गोद दिए गए बच्चों में कोई फर्क नहीं कर पाएगा। लड़कियों का भी पैतृक संपत्ति में अधिकार होगा और बुजर्ग माता-पिता की देखरेख को लेकर उच्च विशेष की प्रावधान किए गए हैं।
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लिव-इन में रहना-
लिव-इन में रहने वालों को अपनी पूरी जानकारी देनी होगी और जोड़े को अपने माता-पिता से एनओसी लेना जरूरी हो जाएगा। इसके बाद से नजदीकी थाने में भी इस संबंध में जानकारी देनी पड़ेगी। इस तरह की जानकारी देने वालों को कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा। अगर बच्चे होते हैं तो उसका भी माता-पिता की पूरी संपत्ति का अधिकार होगा। इससे लिव-इन में रहने वाले जोड़े एक दूसरे को धोखा नहीं दे पाएंगे।
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