Medicine Price Hike: भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर एक और बड़ा झटका लगने वाला है। सरकार द्वारा नियंत्रित महत्वपूर्ण दवाओं की कीमतों में जल्द ही 1.7% की वृद्धि होने जा रही है। यह बदलाव देश के लाखों मरीजों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और अन्य जीवन रक्षक एंटीबायोटिक दवाएं अब और भी महंगी हो जाएंगी, जिससे आम नागरिकों पर आर्थिक बोझ बढ़ने की आशंका है।
Medicine Price Hike ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन-
ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (AIOCD) के महासचिव राजीव सिंघल ने इस मुद्दे पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि फार्मास्युटिकल उद्योग पिछले कुछ वर्षों से कच्चे माल और उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि का सामना कर रहा है। कोविड-19 महामारी के बाद से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आए व्यवधान और मुद्रास्फीति ने दवा निर्माताओं की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। इस परिस्थिति में, 1.7% की कीमत वृद्धि फार्मा कंपनियों को कुछ राहत प्रदान कर सकती है।
Medicine Price Hike नई दवा कीमतें-
सिंघल ने यह भी स्पष्ट किया, कि नई दवा कीमतें बाजार में तुरंत नहीं आएंगी। उनके अनुसार, वर्तमान में बाजार में लगभग 90 दिनों के लिए दवाइयां पहले से मौजूद हैं। इसलिए नए मूल्य निर्धारण को लागू होने में 2-3 महीने का समय लग सकता है। यह समय फार्मा कंपनियों और थोक व्यापारियों को नई कीमतों के लिए तैयारी करने में मदद करेगा।
Medicine Price Hike कीमत वृद्धि का सबसे अधिक असर-
हालांकि, इस कीमत वृद्धि का सबसे अधिक असर मरीजों पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, डायबिटीज और हृदय रोग के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं की कीमत में वृद्धि से निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा। कई ऐसे परिवार हैं जो पहले से ही अपनी बचत का बड़ा हिस्सा चिकित्सा पर खर्च कर रहे हैं।
नियमों के उल्लंघन पर चिंता-
संसदीय समिति की एक हालिया रिपोर्ट ने फार्मा कंपनियों द्वारा दवा कीमत नियमों के उल्लंघन पर चिंता जताई है। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने 307 अलग-अलग उल्लंघन के मामले पाए हैं। ये उल्लंघन मुख्य रूप से अनुमत मूल्य वृद्धि सीमा से अधिक कीमतें वसूलने के संबंध में थे। इससे स्पष्ट होता है कि नियामक निकायों को फार्मा कंपनियों पर अधिक कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है।
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केमिकल और फर्टिलाइजर मंत्रालय-
एक उत्साहजनक बात यह है कि केमिकल और फर्टिलाइजर मंत्रालय का दावा है कि राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची (2022) में कीमत सीमा के कारण मरीजों को लगभग 3,788 करोड़ रुपये की बचत हुई है। यह सरकार के उन प्रयासों को दर्शाता है जो स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक सस्ता और सुलभ बनाने की दिशा में किए जा रहे हैं। मरीजों के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है। वे विभिन्न रणनीतियां अपना सकते हैं जैसे जेनेरिक दवाओं का उपयोग करना, सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना, व्यापक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेना और अपने डॉक्टर से विस्तृत परामर्श लेना। इन उपायों से वे महंगाई के बोझ को कम कर सकते हैं।
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यह कीमत वृद्धि भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। यह न केवल मरीजों बल्कि पूरे स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगा। नीति निर्माताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस परिवर्तन के दीर्घकालिक परिणामों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।