Patna-Gaya Highway: पटना-गया राज्य राजमार्ग इन दिनों एक अजीब वजह से सुर्खियों में है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में दिख रहा है, कि सड़क के बीचों-बीच पेड़ टेढ़े-मेढ़े तरीके से खड़े हैं, जिससे यात्रियों को भारी परेशानी हो रही है। यह नजारा देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है।
इस 7.8 किलोमीटर लंबे हिस्से को हाल ही में 100 करोड़ रुपए की भारी लागत से चौड़ा किया गया है, लेकिन पेड़ों को हटाया नहीं गया। नतीजा यह हुआ है कि यात्रियों को इन पेड़ों के बीच से टेढ़े-मेढ़े रास्ते से गुजरना पड़ रहा है। यह स्थिति न सिर्फ खतरनाक है बल्कि यातायात व्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
Patna-Gaya Highway आखिर हुआ क्या था?
इस अजीब स्थिति के पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले इंजीनियरों के पास कोई विकल्प नहीं था। उनका कहना है कि वन विभाग ने पेड़ों को काटने के लिए एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं दी थी। इसके अलावा, जिला प्रशासन ने भी वृक्षारोपण के बदले में मांगी गई 14 हेक्टेयर गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं कराई।
Trees in the middle of the road- again a civil engineering marvels- Jehanabad’s road worth a ₹100 crore, 7.5 km road widening project on the #Patna - #Gaya highway. They sought permission from the forest dept to remove trees, but it was denied. This was the only option left pic.twitter.com/loWQNkXWJs
— Utkarsh Singh (@utkarshs88) July 1, 2025
इन सभी अनसुलझे मुद्दों के बावजूद चौड़ीकरण का काम कुछ समय तक जारी रहा, लेकिन अब इसे रोक दिया गया है। यह पूरा मामला दिखाता है कि कैसे अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल की कमी से जनता को नुकसान उठाना पड़ता है।
Patna-Gaya Highway अधिकारियों की सफाई-
आरसीडी के कार्यकारी अभियंता धनंजय कुमार ने मंगलवार को टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वन विभाग से पेड़ हटाने की मंजूरी मिलने के बाद ही सड़क चौड़ीकरण का काम दोबारा शुरू होगा। उन्होंने कहा, "मैंने जिला प्रशासन और आरसीडी दोनों को मंजूरी लेने की जरूरत के बारे में जानकारी दी है।"
रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि वन विभाग ने 100 करोड़ रुपए की इस सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत पेड़ हटाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। विभाग ने मुआवजे के रूप में 14 हेक्टेयर गैर-वन भूमि की मांग की थी, लेकिन जिला प्रशासन इस शर्त को पूरा करने में नाकाम रहा।
सुरक्षा की चिंता-
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी चिंता यात्रियों की सुरक्षा की है। सड़क के बीच में खड़े पेड़ों के कारण रात के समय दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है। इस समस्या को देखते हुए अधिकारियों ने पेड़ों पर रेडियम रिफ्लेक्टर लगाने के निर्देश दिए हैं ताकि रात में गाड़ी चलाने वाले लोगों को पेड़ दिख सकें और दुर्घटनाएं न हों। उप-खंड अधिकारी राजीव रंजन ने पुष्टि की है कि वन विभाग से जरूरी एनओसी अभी तक नहीं मिली है। यह स्थिति दिखाती है कि कैसे नौकरशाही की लाल फीताशाही आम लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना देती है।
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परियोजना की वर्तमान स्थिति-
मूल रूप से यह परियोजना इस साल अप्रैल तक पूरी होने वाली थी, लेकिन वन विभाग की मंजूरी न मिलने के कारण अभी तक केवल 30 प्रतिशत काम ही पूरा हो सका है। यह स्थिति न सिर्फ सरकारी पैसे की बर्बादी है बल्कि यात्रियों की परेशानी का कारण भी बनी हुई है।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है, कि क्या परियोजना शुरू करने से पहले सभी जरूरी अनुमतियां नहीं लेनी चाहिए थीं? यह घटना दिखाती है कि कैसे योजना बनाने में कमी और विभागों के बीच समन्वय की कमी से करोड़ों रुपए का नुकसान हो सकता है। अब सवाल यह है, कि कब तक यात्रियों को इस अजीब स्थिति से गुजरना पड़ेगा और कब इस समस्या का स्थायी समाधान निकलेगा। उम्मीद है कि जल्द ही सभी विभाग मिलकर इस मुद्दे को सुलझाएंगे और यात्रियों को राहत मिलेगी।
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