One Zone One Operator Project: दिल्ली के लाखों लोगों के लिए एक अहम खबर है, जो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर सकती है। राजधानी में पानी की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली जल बोर्ड ने एक बड़ा कदम उठाया है। यह कदम न सिर्फ पानी की गुणवत्ता को बेहतर करने, बल्कि 24 घंटे लगातार पानी की सप्लाई का भी वादा करता है। दिल्ली जल बोर्ड की इस नई योजना के मुताबिक, पूरी दिल्ली को आठ अलग-अलग जोन में बांटा जाएगा। यह बिल्कुल वैसा ही मॉडल है, जैसे आज हमारे घरों में बिजली की सप्लाई अलग-अलग कंपनियां करती हैं। इस बड़े बदलाव का मुख्य उद्देश्य है, पानी की होने वाली 50-52% बर्बादी को बहुत कम करना और सेवाओं को बेहतर बनाना।
क्या है One Zone One Operator–
दिल्ली के जल मंत्री प्रवेश वर्मा ने इस नई नीति को लेकर विस्तार से जानकारी देते हुए बताया है, कि इस सिस्टम में ‘एक जोन, एक ऑपरेटर’ का खास मॉडल अपनाया जाएगा। इसका मतलब यह है, कि हर जोन में सिर्फ एक निजी ऑपरेटर होगा, जो उस खास इलाके में पानी और सीवेज लाइनों की पूरी देखरेख करेगा।
यह ऑपरेटर न सिर्फ पानी की सप्लाई बनाए रखेगा, बल्कि बिलिंग सिस्टम, मरम्मत और सबसे जरूरी गैर-राजस्व जल को कम करने की भी जिम्मेदारी संभालेगा। वजीराबाद, चंद्रावल और हैदरपुर जैसे बड़े क्षेत्रों को अलग-अलग जोन में बांटा जाएगा। मंत्री वर्मा ने समझाते हुए कहा, “बिल्कुल वैसे ही जैसे आज BSES या टाटा पावर अपने तय किए गए, इलाकों में बिजली की सप्लाई करती हैं, वैसे ही ये ऑपरेटर अपने जोन में सभी सेवाएं देंगे। इससे पानी की बर्बादी में बहुत कमी आएगी और 24 घंटे लगातार सप्लाई मिल जाएगी।”
जल बोर्ड और निजी कंपनियों की साझेदारी-
इस नई व्यवस्था में दिल्ली जल बोर्ड का काम भी बदल जाएगा। अब तक जल बोर्ड पानी की खरीद, साफ-सफाई और वितरण का पूरा काम करता था। इसके साथ ही MCD इलाकों में पानी बांटने के साथ-साथ NDMC और दिल्ली छावनी बोर्ड को भी बड़ी मात्रा में पानी देना और दिल्ली में निकलने वाले सीवेज के इकट्ठा करने, ले जाने और साफ करने की भी पूरी जिम्मेदारी जल बोर्ड की थी।
लेकिन नई नीति के तहत, यह सभी महत्वपूर्ण काम निजी कंपनियों को सौंप दिए जाएंगे। हालांकि, जल बोर्ड अभी भी इन सभी गतिविधियों की सख्त निगरानी और देखरेख करेगा, जिससे गुणवत्ता और कुशलता बनी रहे। ये आठ ज़ोन हाइड्रॉलिक्स के वैज्ञानिक आधार पर तय किए जाएंगे। अभी मरम्मत और रखरखाव के लिए अलग-अलग टेंडर निकलते हैं, लेकिन इस नए सिस्टम में एक ही ऑपरेटर पूरे ज़ोन का काम संभालेगा।”
पुराने ढांचे की चुनौती-
दिल्ली के वॉटर सप्लाई सिस्टम की सबसे बड़ी चुनौती यह है, कि यहां का इन्फ्रास्ट्रक्चर काफी पुराना हो चुका है। दिल्ली जल बोर्ड के पास 15,600 किलोमीटर का विशाल वॉटर सप्लाई नेटवर्क है, जो नौ आधुनिक वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट से शुद्ध पानी 2.15 करोड़ लोगों तक पहुंचाता है। लेकिन इस बड़े नेटवर्क का लगभग 2,800 किलोमीटर हिस्सा 30 साल से भी ज्यादा पुराना है।
यह पुराना ढांचा तुरंत बदलने या पूरी तरह अपग्रेड करने की मांग कर रहा है। हालांकि दिल्ली के 93.5% हिस्से में पानी की आपूर्ति हो रही है, फिर भी चौंकाने वाली बात यह है कि 50-52% पानी नॉन रेवेन्यू वॉटर के रूप में बर्बाद हो रहा है। यह एक बहुत बड़ी बर्बादी है जो न सिर्फ संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि लोगों को भी पर्याप्त सप्लाई नहीं मिल पा रही। दिल्ली जल बोर्ड के पास फिलहाल सिर्फ 29 लाख पानी के कनेक्शन हैं और बिलिंग सिस्टम में भी कई खामियां हैं, जिससे रेवेन्यू जनरेशन में भी दिक्कत आ रही है।
कहां से होगी शुरुआत-
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वजीराबाद वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के क्षेत्र से होगी। 2 जुलाई को हुई बोर्ड की बैठक में वजीराबाद के सप्लाई नेटवर्क इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट को अधिकारिक मंजूरी मिल गई है। यह पायलेट प्रोजेक्ट 31.6 लाख लोगों को सीधा फायदा पहुंचाएगा, खासकर उन इलाकों में जहां पानी की लगातार कमी है। इस प्रोजेक्ट का मेन मकसद पानी की बर्बादी को कम से कम करना और 24 घंटे भरोसेमंद सप्लाई सुनिश्चित करना है। सफल होने के बाद बाकी सात ज़ोन में भी इसी तरह के प्रोजेक्ट को धीरे-धीरे लागू किया जाएगा।
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निजीकरण पर उठ रहे सवाल-
हालांकि यह पहल उम्मीदों से भरी लगती है, लेकिन निजीकरण का यह कदम सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए पूरी तरह स्वीकार्य नहीं है। यूनाइटेड RWA जॉइंट एक्शन के प्रमुख अतुल गोयल ने अपनी चिंताएं व्यक्त करते हुए कहा, “जल बोर्ड अधिकारियों की सही जवाबदेही तय होनी चाहिए। निजीकरण ही एकमात्र जादुई समाधान नहीं है।” उन्होंने बिजली क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा, “बिजली वितरण में निजीकरण के बाद शुरू में कुछ सुधार दिखे थे, लेकिन धीरे-धीरे हालात फिर से पुराने तरीके पर लौट रहे हैं।”
यमुना कार्यकर्ता और साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के सदस्य भीम सिंह रावत ने भी अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “DJB ने हमेशा सीवेज प्रबंधन को एक अतिरिक्त बोझ माना है। इसके लिए अलग संसाधन या समर्पित संस्था की जरूरत है।”
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