Himalayan Earthquake: सोमवार की सुबह दिल्ली-एनसीआर में महसूस किए गए 4.0 तीव्रता के भूकंप ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र में आने वाले बड़े भूकंप की चिंताओं को हवा दे दी है। इसके बाद बिहार, ओडिशा और सिक्किम तक में छोटे-छोटे झटके महसूस किए गए। प्रमुख भूभौतिकीविद् रोजर बिलहम का कहना है कि यह सवाल 'क्या' का नहीं बल्कि 'कब' का है। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि पिछले 2,000 वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में नियमित अंतराल पर कई भूकंप आए हैं, जिनमें से अधिकतर की तीव्रता 8.7 मैग्निट्यूड की थी।
Himalayan Earthquake पिछले 70 वर्षों का इतिहास-
विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 70 वर्षों में हिमालय में 8 से अधिक तीव्रता का कोई भूकंप नहीं आया है। 2015 में नेपाल में आए 7.8 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप में 9,000 लोगों की जान गई थी और काठमांडू का बड़ा हिस्सा तबाह हो गया था।
Himalayan Earthquake वैज्ञानिक कारण-
हिमालयी क्षेत्र में भूकंप तब आते हैं जब भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराती है। ये टेक्टोनिक टक्करें बड़े भूवैज्ञानिक तनाव के साथ फॉल्ट लाइन बनाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल एक बड़ा भूकंप ही इस तनाव को कम कर सकता है।
Himalayan Earthquake भारतीय शोधकर्ताओं की भविष्यवाणी-
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने 2018 में एक अध्ययन में भविष्यवाणी की थी कि अगला बड़ा हिमालयी भूकंप देहरादून और पश्चिमी नेपाल के बीच आ सकता है।
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दिल्ली का जोखिम-
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली भारत के भूकंपीय मानचित्र के जोन IV में आता है। दिल्ली का भूकंपीय जोखिम दिल्ली-हरिद्वार रिज की उपस्थिति के कारण है।
भूकंपविदों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में आने वाला अगला बड़ा भूकंप विशेष रूप से विनाशकारी होगा क्योंकि यह सीधे भूमि को प्रभावित करेगा। इससे 30 करोड़ से अधिक लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है। शहरी बुनियादी ढांचा मेगा-क्वेक की स्थिति में हिंसक कंपन के प्रति अधिक संवेदनशील है।
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