Delhi Garbage Charges: दिल्ली में अब घर-घर जाकर कचरा उठाने की सेवा मुफ्त नहीं रहेगी। दिल्ली नगर निगम (MCD) ने इस सेवा के लिए अब उपयोगकर्ता शुल्क वसूलने का निर्णय लिया है, जिसे संपत्ति कर के साथ जोड़ दिया जाएगा। यह कदम सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स लागू होने के सात साल बाद उठाया गया है।
Delhi Garbage Charges नागरिकों पर पड़ेगा वित्तीय बोझ-
दिल्ली नगर निगम द्वारा निर्धारित किए गए इस नए शुल्क के अनुसार, आवासीय संपत्तियों के आकार के आधार पर मासिक शुल्क अलग-अलग रखा गया है। 50 वर्ग मीटर तक की संपत्तियों के लिए ₹50, 50 से 200 वर्ग मीटर तक की संपत्तियों के लिए ₹100 और 200 वर्ग मीटर से अधिक की संपत्तियों के लिए ₹200 प्रति माह का शुल्क निर्धारित किया गया है। स्ट्रीट वेंडर्स को भी इस सेवा के लिए ₹100 प्रति माह देना होगा।
इस नए शुल्क से दिल्ली के घर मालिकों पर सालाना ₹600 से ₹2,400 तक का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। दिल्ली के लाखों निवासियों को इस नए नियम का सामना करना पड़ेगा।
"पहले तो हम पहले से ही महंगाई से परेशान हैं, और अब यह नया टैक्स! सरकार को हमारी जेब पर और बोझ नहीं डालना चाहिए," कहते हैं पश्चिम विहार के निवासी राकेश शर्मा, जिन्हें अब अपनी 150 वर्ग मीटर की प्रॉपर्टी के लिए हर महीने ₹100 अतिरिक्त देने होंगे।
Delhi Garbage Charges व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए ज्यादा शुल्क-
व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और संस्थानों के लिए शुल्क काफी अधिक निर्धारित किया गया है। दुकानों और छोटे खाने-पीने वाले स्थानों को ₹500 प्रति माह, गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं को ₹2,000 प्रति माह, 50 से अधिक सीटों वाले रेस्तरां को ₹3,000 प्रति माह देना होगा।
लग्जरी होटल (3-स्टार और उससे ऊपर) के लिए शुल्क ₹5,000 प्रति माह निर्धारित किया गया है। चिकित्सा संस्थानों जैसे क्लीनिक और लैब्स जिनमें 50 से अधिक बेड हैं, उन्हें ₹4,000 प्रति माह का भुगतान करना होगा। बैंक और कोचिंग सेंटर्स को ₹2,000, शादी हॉल को ₹5,000 और खतरनाक कचरा उत्पन्न करने वाले छोटे उद्योगों को ₹3,000 प्रति माह का भुगतान करना होगा।
MCD को उम्मीद है कि इन शुल्कों से प्रति वर्ष लगभग ₹150 करोड़ तक का राजस्व प्राप्त होगा, जिसका उपयोग शहर में स्वच्छता सेवाओं को बेहतर बनाने में किया जाएगा।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विरोध-
इस नए शुल्क के विरुद्ध राजनीतिक विरोध भी शुरू हो गया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस कदम का विरोध करते हुए इसे "मनमाना" बताया है। पार्टी का तर्क है कि यह शुल्क नगर निगम की हाउस द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है। दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने MCD कमिश्नर को पत्र लिखकर इस निर्णय की वैधानिकता पर सवाल उठाए हैं।
"निगम प्रशासन ने बिना हाउस की मंजूरी के यह निर्णय लिया है, जो अपने आप में गैरकानूनी है। नागरिकों पर इस तरह का अतिरिक्त बोझ डालने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए था," मेयर ओबेरॉय ने अपने पत्र में लिखा है।
नीति का इतिहास और पृष्ठभूमि-
केंद्र सरकार ने सबसे पहले 2016 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स को अधिसूचित किया था। दिल्ली सरकार ने जनवरी 2018 में इन नियमों को अपनाया था। उस समय, दिल्ली के तीनों नगर निकायों ने, जो भाजपा के नियंत्रण में थे, इस योजना का विरोध किया था। अब एकीकृत MCD इस नीति को आगे बढ़ा रहा है।
"यह कदम शहर में कचरा प्रबंधन की समस्या को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। लेकिन नागरिकों के हित में यह जरूरी है कि शुल्क उचित हो और इससे इकट्ठा किए गए पैसे का सही उपयोग हो," कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ अनुज गुप्ता।
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क्या होगा आगे?
MCD के अधिकारियों का कहना है, कि इस शुल्क से एकत्र किए गए पैसे का उपयोग कचरा प्रबंधन की बुनियादी संरचना को मजबूत करने और सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने में किया जाएगा। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह शुल्क कब से लागू होगा और इसकी वसूली का तंत्र क्या होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि केवल शुल्क लगाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि शहर में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। "कचरे का प्रबंधन सिर्फ उसे उठाने तक सीमित नहीं है। हमें सोर्स सेग्रिगेशन, रीसाइक्लिंग और कम्पोस्टिंग पर भी ध्यान देना होगा," कहते हैं स्वच्छ भारत अभियान से जुड़े कार्यकर्ता रवि शंकर। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा, कि MCD इस शुल्क को लागू करने के लिए कौन सी रणनीति अपनाता है और नागरिकों के विरोध को कैसे संबोधित करता है। फिलहाल, दिल्ली के निवासियों को जल्द ही अपने बजट में इस नए खर्च को शामिल करने के लिए तैयार रहना होगा।
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