Mahakumbh Mela
    Photo Source - X

    Mahakumbh Mela: प्रयागराज के महाकुंभ मेला 2025 में एक अनोखी पहल ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। मेला प्रशासन ने "घर से स्नान" की सुविधा शुरू की है, जिसमें श्रद्धालु मात्र 500 रुपये में घर बैठे त्रिवेणी संगम का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

    Mahakumbh Mela क्या है यह अनोखी पहल?

    इस योजना के तहत, जो श्रद्धालु किसी कारणवश महाकुंभ में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो सकते, वे अपनी फोटो और निर्धारित शुल्क भेजकर पवित्र स्नान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। आयोजकों का दावा है कि वे श्रद्धालुओं की फोटो को गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम में डुबोएंगे, जिससे उन्हें और उनके पूर्वजों को आशीर्वाद प्राप्त होगा।

    Mahakumbh Mela सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं-

    इस विज्ञापन ने सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं जगाई हैं। कुछ लोगों ने इसे आधुनिक समय की मांग बताते हुए सराहा है, तो कुछ ने इस पर व्यंग्य किया है। एक यूजर ने लिखा, "वर्क फ्रॉम होम तो सुना था, अब डिप फ्रॉम होम! हद हो गई।" वहीं दूसरे यूजर ने मजाकिया अंदाज में पूछा, "ग्रुप फोटो भी एक्सेप्ट करते हैं?"

    आधुनिकता बनाम परंपरा-

    इस पहल ने पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं और आधुनिक सुविधाओं के बीच संतुलन पर एक बहस छेड़ दी है। जहां कुछ लोग इसे धार्मिक परंपराओं का व्यवसायीकरण मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे दूर रह रहे श्रद्धालुओं के लिए एक अच्छा विकल्प बता रहे हैं।

    महाकुंभ की तैयारियां-

    महाकुंभ मेले में इस बार लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। मेला प्रशासन पारंपरिक व्यवस्थाओं के साथ-साथ आधुनिक सुविधाएं भी प्रदान कर रहा है। "घर से स्नान" की यह पहल उन्हीं आधुनिक प्रयासों का हिस्सा है।

    ये भी पढ़ें- महाकुंभ में श्रद्धालुओं का रेला, इतने दिनों के लिए संगम स्टेशन पर लगा ताला, यहां जानें क्यों

    धार्मिक विशेषज्ञों का कहना है कि भावना की दृष्टि से यह अच्छी पहल हो सकती है, लेकिन इसकी वैधता पर सवाल उठ सकते हैं। कुछ पंडितों का मानना है कि व्यक्तिगत उपस्थिति और स्नान का महत्व अलग है, जिसे वर्चुअल माध्यम से पूरी तरह प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।

    पारंपरिक धार्मिक प्रथा-

    यह पहल आधुनिक तकनीक और पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं के मिश्रण का एक अनूठा उदाहरण है। भले ही इस पर विभिन्न मत हों, लेकिन यह निश्चित रूप से धार्मिक प्रथाओं के डिजिटलीकरण की ओर एक कदम है।

    ये भी पढ़ें- बिहार के 7 युवा नाव से पहुंचे महाकुंभ, जानिए कैसे किया ये अनोखा सफर