Labor Story
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    Labor Story: ऐसा कहा जाता है कि अगर आपके दिल में किसी काम को करने का जूनून औक जज़्बा है, तो आपको मंजिल मिलना आसान हो जाता है। कुछ ऐसा ही रायबरेली के जनपद में रहने वाले प्रदीप कुमार के साथ हुआ है। वह युवाओं के लिए मिसाल बन चुके हैं। आज हम आपको रायबरेली के जनपद के एक देहाड़ी मज़दूर से मिलाने जा रहे हैं। दरअसल रायबरेली जनपद शिवगढ़ थाना क्षेत्र में कुंभी गांव के रहने वाले प्रदीप कुमार बहुत गरीब परिवार से हैं और उनके पिता कड़ी मेहनत मजदूरी करके परिवार का भरण पोषण करते थे।

    पढ़ाई का खर्च नहीं-

    इसी के कारण वह अपनी पढ़ाई का खर्च नहीं कर सके। इसलिए उन्होंने सरकारी स्कूल में आठवीं तक पढ़ाई पूरी की और घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। प्रदीप कुमार के मुताबिक, जब वह आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके, तो उनके पिता ने अपने साथ मजदूरी के काम में लगा लिया। मजदूरी के दौरान एक दिन उनकी मुलाकात कुलदीप कुमार नाम के एक शख्स से हुई। कुलदीप कुमार ने प्रदीप को एक आईडिया दिया और सूअर पालन के बारे में जानकारी दी। जिससे वह आज लाखों रुपए कमा रहा है।

    60 से 70 हज़ार रुपए की लागत-

    प्रदीप कुमार का कहना है कि बीते 10 सालों से वह यह काम कर रहा है। जिसमें 60 से 70 हज़ार रुपए की लागत आती है। लेकिन मुनाफा भी बहुत होता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि सूअर एक बार में कई बच्चों को जन्म देते हैं। उनकी देखभाल के लिए कई तरह के सुविधाओं का प्रबंध करना पड़ता है। वह उनके खाने के लिए चावचून चोकर और चावल की पॉलिश की व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ही उनका स्वास्थ्य सही रहे, इसके लिए वह समय-समय पर उनका स्वास्थ्य परीक्षण भी करवाते हैं।

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    7 से 8 लाख रुपए तक की कमाई-

    समाचार वेबसाइट न्यूज 18 के मुताबिक, प्रदीप कुमार का कहना है कि सूअर पालन का व्यवसाय अन्य व्यवसाययों की तुलना में काफी अच्छा है। क्योंकि इसमें लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है। वह कहते हैं की आठवीं तक पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उनकी पढ़ाई छुटी तो उन्हें ऐसा लगा कि अब हमें नौकरी भी नहीं मिलेगी। इसीलिए वह अपने पिता के साथ मजदूर बन गए। लेकिन उसके दोस्त कुलदीप कुमार ने सलाह दी तो उससे उनका जीवन बदल गया। अब वह सालाना 7 से 8 लाख रुपए तक की कमाई आसानी से कर पाते हैं। आगे की जानकारी देते उन्होंने कहा कि सूअर की बिक्री के लिए उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ता, उनके बाड़े में आकर ही लोग सूअर खरीद कर ले जाते हैं।

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