Atal Canteen Delhi: दिल्ली एक ऐसा शहर है, जहां खाने-पीने के ट्रेंड्स हर साल बदलते रहते हैं। कभी लेट नाइट पराठा लेन की बात होती है, तो कभी स्ट्रीट साइड खिचड़ी के ठेलों की। लेकिन बीच-बीच में कुछ ऐसी फीड स्टोरिज़ सामने आती हैं, जो सिर्फ ट्रेंडी नहीं, बल्कि इंसानियत से भरी होती हैं। दिल्ली सरकार की अटल कैंटीन योजना ऐसी ही एक कहानी है, जो दिल को छू जाती है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती के मौके पर राजधानी में 45 अटल कैंटीन लॉन्च की गई हैं। यहां सिर्फ पांच रुपये में पौष्टिक भोजन मिलता है, दिन में दो बार। ऐसे इलाकों में जहां लोगों के लिए अफोर्डेबिलिटी सबसे बड़ा मुद्दा है। दिल्ली जैसे शहर में जहां एक कप चाय भी 20-30 रुपये की मिलती है, वहां पूरी थाली पांच रुपये में मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। लेकिन यही अटल कैंटीन का वादा है। न कोई फैंसी ब्रांडिंग, न दिखावा, न कोई चैरिटी का ड्रामा। बस गर्म खाना, फिक्स टाइमिंग और एक ऐसी कीमत जो इज्जत के साथ जीने का मौका दे।
ऐसा खाना जो सच में पेट भरे-
द फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के अनुसार, नई लॉन्च की गई, अटल कैंटीन में पांच रुपये में भरपूर भोजन मिलता है। यह कीमत सिर्फ दिखावे के लिए नहीं है। यह जानबूझकर इतनी कम रखी गई है, कि दिहाड़ी मजदूर, सफाई कर्मचारी, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, रिक्शा चालक और फिक्स्ड इनकम पर जीने वाले बुजुर्ग लोग आसानी से खा सकें। दूसरी सब्सिडी स्कीम्स की तरह यहां कोई डॉक्यूमेंट या एलिजिबिटी की जरूरत नहीं है। फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व बेसिस पर कोई भी खा सकता है, बिना किसी शर्मिंदगी के।
ये कैंटीन दिल्ली के रिहायशी और वर्किंग क्लास इलाकों में रणनीतिक तरीके से खोली गई हैं। आरके पुरम, जंगपुरा, शालीमार बाग, ग्रेटर कैलाश, राजौरी गार्डन, नरेला, बवाना, बादली, आदर्श नगर, वजीरपुर और मंगोलपुरी जैसी जगहों पर ये कैंटीन मौजूद हैं। इसके अलावा तिमारपुर, मादीपुर, शकूर बस्ती, राजेंद्र नगर, मातियाला, नजफगढ़, महरौली, छतरपुर, पालम, संगम विहार, मालवीय नगर, शाहदरा और रोहतास नगर में भी सेंटर खुल चुके हैं।
इस मॉडल को चलाने वाली सबसे बड़ी चीज कंसिसटेंसी है। दोपहर का खाना 11 बजे से 4 बजे के बीच मिलता है, जबकि डिनर शाम 6:30 से रात 9:30 बजे तक उपलब्ध रहता है। ये टाइमिंग मजदूरों और शिफ्ट वर्कर्स के काम के घंटों से बिल्कुल मैच करती हैं।
पांच रुपये की थाली में मिलता है क्या-
सबसे बड़ा सवाल जो लोग पूछ रहे हैं, वो है, कि आखिर पांच रुपये में मिलता क्या है। हर थाली में दाल, चावल, चपाती, एक सीजनल सब्जी और अचार शामिल है। कोई एक्सोटिक चीज नहीं, कोई प्रोसेस्ड शॉर्टकट नहीं, बस पुराने जमाने का भारतीय कम्फर्ट फूड, जो पेट भरने के लिए बनाया गया है। न्यूट्रिशनिस्ट्स अक्सर कहते हैं, कि बैलेंस्ड इंडियन खाना महंगा होना जरूरी नहीं है। दाल प्रोटीन देती है, चावल और रोटी एनर्जी सप्लाई करते हैं, सीजनल सब्जियां फाइबर और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जोड़ती हैं और अचार भूख बढ़ाता है। कई मायनों में अटल कैंटीन की थाली वही है, जो हजारों भारतीय घरों में रोज बनता है।
डिजिटल टोकन और CCTV वाली रसोई-
अटल कैंटीन रोलआउट का सबसे दिलचस्प पहलू इसका ऑपरेशनल स्टर्क्चर है। खाना डिस्ट्रिब्यूट करने के लिए मैनुअल कूपन की जगह डिजिटल टोकन सिस्टम इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे लीकेज कम होता है, डुप्लीकेशन रुकता है और पीक आर्स में फेयर डिस्ट्रिब्यूशन सुनिश्चित होता है। हर कैंटीन CCTV कैमरों से मॉनिटर की जाती है, जो रियल टाइम ऑवरसाइट देता है। यहां सर्विलांस हाइजीन स्टैंडर्ड मेंटेन करने, मैनेज करने और पारदर्शिता बनाए रखने में प्रैक्टिकल रोल प्ले करता है।
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यह कैंटीन Delhi Urban Shelter Improvement Board की निगरानी में चलाई जा रही हैं, जो शहरी गरीब कल्याण और स्लम मैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार सरकारी निकाय है। अधिकारियों का अनुमान है, कि हर अटल कैंटीन रोजाना करीब 500 लोगों को खाना परोस सकती है। अगर पूरी तरह इस्तेमाल किया जाए, तो मौजूदा 45 कैंटीन हर दिन 22,000 से ज्यादा भोजन प्रदान कर सकती हैं। आने वाले महीनों में शहर भर में 55 और सेंटर खोलने की योजना है।
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