Property Law India: भारत में प्रॉपर्टी कानून का एक ऐसा पहलू है, जो अक्सर मकान मालिकों और किराएदारों दोनों को हैरान कर देता है। दरअसल, कुछ खास कानूनी परिस्थितियों में एक किराएदार बिना, किसी सेल डीड के मकान की मालिकाना हक का दावा कर सकता है। यह संभावना भारतीय सीमा अधिनियम 1963 से उत्पन्न होती है, जो संपत्ति विवादों के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित करता है।
जब कोई प्रॉपर्टी ओनर एक निश्चित अवधि तक अपने अधिकारों का दावा नहीं करता, तो कानून लंबे समय तक कब्जे को स्वामित्व के रूप में मान्यता दे सकता है। यह कानूनी अवधारणा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों सहित न्यायिक व्याख्याओं से विकसित हुई है। लेकिन याद रखें, सिर्फ सालों तक घर में रहना काफी नहीं है। कोर्ट को यह साबित करना होता है, कि कब्जा निरंतर, दृश्यमान, विशिष्ट और मालिक के हितों के विपरीत था।
एडवर्स पजेशन यानी प्रतिकूल कब्जा क्या है-
एडवर्स पजेशन एक ऐसा कानूनी सिद्धांत है, जो किसी व्यक्ति को संपत्ति पर खुले तौर पर और लगातार कब्जा करके उसका कानूनी स्वामित्व हासिल करने की अनुमति देता है। यह कब्जा मालिक की सहमति के बिना एक निर्धारित अवधि तक होना चाहिए। सीधे शब्दों में कहें, तो अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक किसी जमीन या मकान को अपना मानकर उपयोग करता है और असली मालिक इसे वापस लेने के लिए कुछ नहीं करता, तो स्वामित्व के अधिकार बदल सकते हैं।
सीमा अधिनियम 1963 कैसे लागू होता है-
सीमा अधिनियम का अनुच्छेद 65 निजी अचल संपत्ति पर कब्जा वापस पाने के लिए मुकदमा दायर करने की 12 साल की विंडो निर्धारित करता है। एक बार यह अवधि समाप्त होने पर, धारा 27 मूल मालिक के अधिकार को समाप्त कर देती है। हालांकि सरकारी जमीन के मामले में यह समय सीमा 30 साल तक बढ़ जाती है। यह अंतर सार्वजनिक भूमि से जुड़े प्रॉपर्टी डिस्प्यूट को काफी प्रभावित करता है।
किराएदारी और प्रतिकूल कब्जे में फर्क-
एक टेनेंट मकान मालिक की सहमति से प्रॉपर्टी पर रहता है, आमतौर पर रेंटल एग्रीमेंट के तहत। दूसरी ओर, एडवर्स पजेशन के लिए ऐसा कब्जा जरूरी है, जो मालिक के टाइटल के विरुद्ध हो। कोर्ट ने बार-बार स्पष्ट किया है कि अनुमति-आधारित कब्जा अपने आप शत्रुतापूर्ण कब्जे में नहीं बदल सकता। किसी किराएदार के लिए ऐसा बदलाव साबित करना बेहद मुश्किल है और इसके लिए स्पष्ट कार्रवाई और सबूत की जरूरत होती है।
किराएदार को क्या साबित करना होगा-
सफल होने के लिए, दावेदार को पूरी वैधानिक अवधि के लिए निर्बाध कब्जा प्रदर्शित करना होगा। कोई भी ब्रेक, नोटिस या मालिक की कानूनी कार्रवाई दावे को खारिज कर देती है। इसके अलावा कब्जा वास्तविक, विशिष्ट और स्पष्ट रूप से दृश्यमान होना चाहिए। कोर्ट मजबूत दस्तावेज की अपेक्षा करती है, जिसमें लंबी अवधि के यूटिलिटी बिल, टैक्स पेमेंट, फोटोग्राफ और विश्वसनीय गवाह शामिल हैं। इन सबूतों के बिना एडवर्स पजेशन के दावे शायद ही कभी न्यायिक जांच में टिकते हैं।
कोर्ट ने क्या फैसले दिए हैं-
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट ने लगातार यह माना है, कि लंबी अवधि की किराएदारी स्वामित्व अधिकार नहीं बनाती। 2020 से 2025 के बीच दिए गए, हालिया जजमेंट ने फिर से पुष्टि की है, कि अनुमति-आधारित कब्जा केवल समय बीतने से प्रतिकूल नहीं बन सकता।
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मकान मालिकों के लिए सुरक्षा उपाय-
लैंडलॉर्ड लीज़ एग्रीमेंट रजिस्टर करके, नोटिस के साथ नियमित निरीक्षण करके और अनधिकृत कब्जे के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करके जोखिम कम कर सकते हैं। मॉडल टेनेंसी एक्ट 2021 मकान मालिक की सुरक्षा को और मजबूत करता है और ओवरस्टे करने वाले किराएदारों को दंडित करता है, जो भारत में टेनेंट राइट्स में स्पष्टता को बढ़ावा देता है।
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