Pawan Verma: बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने एक बड़ा आरोप लगाया है, जिसने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। पार्टी के प्रवक्ता पवन वर्मा ने दावा किया है, कि NDA गठबंधन ने विश्व बैंक से मिले फंड्स को दूसरे प्रोजेक्ट से डायवर्ट करके चुनाव के दौरान महिला वोटरों में बांट दिया। यह आरोप उस समय सामने आया है, जब जन सुराज पार्टी को चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली और प्रशांत किशोर की राजनीतिक रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं।
10,000 रुपये का खेल महिला सशक्तिकरण या वोट बैंक?
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत बिहार की 1.25 करोड़ महिला वोटरों के खाते में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए गए थे। सरकार ने इसे महिला सशक्तिकरण का कदम बताया था, लेकिन जन सुराज का आरोप है, कि यह पैसा असल में विश्व बैंक से किसी दूसरे प्रोजेक्ट के लिए आया था, जिसे चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल कर लिया गया। पवन वर्मा ने ANI को दिए इंटरव्यू में कहा, कि 21,000 करोड़ रुपये का यह फंड विश्व बैंक से किसी और योजना के लिए आया था, लेकिन इसे महिलाओं को देने में लगा दिया गया।
#WATCH | Delhi | Jan Suraaj spokesperson Pavan Verma says, "The Prime Minister himself criticised the 'Rewari'… And now what happened in Bihar?… Currently, Bihar's public debt is approximately Rs 4,06,000 crores. Its daily interest is Rs 63 crores… We have information,… pic.twitter.com/kcqOno1ZTE
— ANI (@ANI) November 16, 2025
वर्मा ने आरोप लगाते हुए कहा, “चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से एक घंटे पहले 14,000 करोड़ रुपये निकाले गए और राज्य की 1.25 करोड़ महिलाओं में बांट दिए गए।” यह टाइमिंग काफी संदिग्ध बताई जा रही है, क्योंकि आचार संहिता लागू होने के बाद ऐसी किसी भी घोषणा या पैसे के ट्रांसफर पर रोक लगी होती है। लेकिन अगर यह आरोप सच है, तो यह एक बड़ा चुनावी घोटाला हो सकता है।
बिहार का खाली खजाना और 63 करोड़ रोज का ब्याज-
पवन वर्मा ने बिहार की आर्थिक स्थिति पर भी चौंकाने वाले खुलासे किए। उन्होंने कहा, कि इस समय बिहार पर 4,06,000 करोड़ रुपये का सार्वजनिक कर्ज है और हर दिन 63 करोड़ रुपये का ब्याज चुकाना पड़ता है। उनका दावा है, कि राज्य का खजाना खाली है और ऐसे में इतनी बड़ी रकम महिलाओं में बांटना सवालों के घेरे में है। अगर राज्य का खजाना वाकई खाली है, तो यह पैसा कहां से आया? क्या यह विश्व बैंक के उस लोन का हिस्सा था जो किसी विकास परियोजना के लिए लिया गया था?
वर्मा ने यह भी कहा, कि सरकार फंड्स को डायरेक्ट कर सकती है और चुनाव के बाद इसकी व्याख्या दे सकती है। “आप वादे करते हैं और दूसरी पार्टी पैसा देती है,” उन्होंने जन सुराज की चुनावी रणनीति और NDA की नीतियों के बीच के फर्क को बताते हुए कहा। जन सुराज ने चुनाव में कई वादे किए थे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई, जबकि NDA ने सीधे पैसा बांटकर वोटर्स को अपनी तरफ कर लिया।
आरोप सच या झूठ? पवन वर्मा की दुविधा-
दिलचस्प बात यह है, कि पवन वर्मा खुद इस बात को लेकर कंफर्म नहीं हैं, कि उनका आरोप पूरी तरह सच है या नहीं। उन्होंने कहा, “जैसा कि मैंने कहा, यह हमारी जानकारी है। अगर यह गलत है, तो मैं माफी मांगता हूं। लेकिन अगर यह सच है, तो सवाल उठता है, कि यह कितना नैतिक है।”
लेकिन अगर यह आरोप सच निकला, तो यह बिहार की राजनीति में भूचाल ला सकता है। विश्व बैंक के फंड्स का इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए करना न सिर्फ अनैतिक है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी गलत हो सकता है। विश्व बैंक से मिलने वाला पैसा खास प्रोजेक्ट्स के लिए होता है और उसे किसी और काम में लगाना नियमों का उल्लंघन है।
NDA नहीं तो पैसा नहीं?
पवन वर्मा ने एक और गंभीर आरोप लगाया, कि चुनाव के दौरान यह अफवाह फैलाई गई थी, कि अगर NDA सत्ता में नहीं आई, तो बाकी महिलाओं को पैसा नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा, कि कुल चार करोड़ महिलाओं में से 2.5 करोड़ महिलाओं को अभी तक यह राशि नहीं मिली है और उन्हें लगा, कि अगर NDA सत्ता में नहीं आई, तो उन्हें यह लाभ नहीं मिलेगा। इस तरह के डर के माहौल का इस्तेमाल करके वोट मांगना एक खतरनाक ट्रेंड है, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
यह रणनीति बेहद चालाकी भरी थी, क्योंकि जिन महिलाओं को पहले से पैसा मिल चुका था, वे सरकार की तारीफ कर रही थीं और जिन्हें नहीं मिला था, वे डर से NDA को वोट दे रही थीं, ताकि उन्हें भी पैसा मिल सके। इस तरह दोनों तरफ से NDA को फायदा हुआ।
फ्रीबीज की राजनीति?
पवन वर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रीबीज पर किए गए बयान को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा, कि मोदी जी खुद फ्रीबीज देने की आलोचना करते रहे हैं, खासकर दिल्ली विधानसभा और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के संदर्भ में। “अब बिहार में क्या हुआ?” वर्मा ने सवाल किया। यह दोहरा मानदंड है या राजनीतिक जरूरत? जब विपक्ष फ्रीबीज देता है, तो वह गलत है, लेकिन जब NDA देती है, तो वह जनकल्याण है? यह सवाल न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति में उठ रहा है।
फ्रीबीज की राजनीति पर बहस कोई नई नहीं है, लेकिन बिहार में इसने एक नया आयाम ले लिया है। महिलाओं को सीधे पैसा देना इफैक्टिव साबित हुआ है, क्योंकि यह सीधे उनकी जेब में पहुंचता है और वे इसे अपने परिवार के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं।
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शराबबंदी का मुद्दा जन सुराज की हार की वजह?
कई लोगों ने यह भी कहा था, कि प्रशांत किशोर का शराबबंदी हटाने का वादा महिला वोटरों को नाराज कर गया और यही उनकी हार की वजह बनी। लेकिन पवन वर्मा ने इस दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, कि शराब तो राज्य के हर कोने में ऊंची कीमत पर बिक रही है। “क्या यह उन महिलाओं को प्रभावित नहीं करता, जिन्हें अपने घर चलाने हैं?” उन्होंने पूछा। उनका तर्क है, कि शराबबंदी सिर्फ कागजों पर है, असलियत में शराब मिल रही है और महिलाएं इसकी कीमत चुका रही हैं।
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वर्मा ने पार्टी की हार की जिम्मेदारी अन्य कारकों पर डाली, जिसमें आखिरी समय में 10,000 रुपये का ट्रांसफर और महिलाओं के प्रति सत्ताधारी पार्टी की नीतियां शामिल हैं। उनका मानना है, कि अगर NDA ने पैसा नहीं बांटा होता, तो चुनाव का नतीजा कुछ और होता।



