PMAY Scam: शुक्रवार की रात जब पूरी दिल्ली सो रही थी, तब पटियाला हाउस कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शेफाली बर्नाला टंडन के घर पर तड़के 3 बजे एक असाधारण कोर्ट की कार्यवाही हुई। यह कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि एक बड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस की हकीकत थी, जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आम लोगों को मिलने वाले फ्लैट्स को अवैध तरीके से बेचने का आरोप है। इस मामले में Ocean Seven Buildtech Pvt Ltd के प्रमोटर स्वराज सिंह यादव को Enforcement Directorate (ED) ने गिरफ्तार किया और उन्हें तुरंत कोर्ट के सामने पेश करने की जरूरत थी।
आधी रात को क्यों लगी कोर्ट?
यह सवाल स्वाभाविक है, कि आखिर रात के 3 बजे कोर्ट लगाने की क्या जरूरत थी? दरअसल, ED ने अपनी दलील में बताया, कि स्वराज सिंह यादव की तलाश सुबह 6:55 बजे शुरू हुई थी और सुप्रीम कोर्ट तथा विभिन्न हाई कोर्ट्स की गाइडलाइन्स के मुताबिक, किसी भी आरोपी को सर्च शुरू होने के 24 घंटे के भीतर कोर्ट के सामने पेश करना जरूरी है। यानी टाइम लिमिट खत्म होने से पहले उन्हें कोर्ट में पेश करना था, इसलिए जज साहिबा को उनके घर पर ही कोर्ट लगानी पड़ी।
जब तड़के 3:05 बजे कार्यवाही शुरू हुई, तो आरोपी के वकील अभी रास्ते में ही थे। दोनों पक्षों की दलीलें सुबह 6:30 बजे तक चलती रहीं, जिसके बाद जज ने स्वराज यादव को 28 नवंबर तक ED की कस्टडी में भेज दिया और निर्देश दिया, कि उन्हें उसी दिन दोपहर 2 बजे बिना किसी चूक के कोर्ट में पेश किया जाए।
PM आवास योजना के नाम पर धोखाधड़ी का खेल-
स्वराज सिंह यादव पर आरोप है, कि उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत गुरुग्राम में मिलने वाले फ्लैट्स को कैश लेकर अवैध तरीके से बेचा। यह योजना गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को सस्ते में घर देने के लिए बनाई गई थी, लेकिन कुछ बेईमान बिल्डरों ने इसे अपनी जेब भरने का जरिया बना लिया। ED के मुताबिक, स्वराज यादव ने होमबायर्स से जमा किए गए फंड्स को कई प्रोजेक्ट्स में लॉन्डर किया और डायवर्ट किया। यानी जो पैसा लोगों ने अपना घर बनाने के सपने के साथ दिया था, उसे यादव ने गलत तरीके से इस्तेमाल किया।
ED की financial probe agency ने 13 नवंबर को दिल्ली-NCR और अन्य जगहों पर नौ लोकेशन्स पर सर्च ऑपरेशन किया। Prevention of Money Laundering Act (PMLA), 2002 के तहत चल रही जांच के दौरान यह कार्रवाई की गई। सर्च के दौरान ED ने 86 लाख रुपये कैश बरामद किया, जिसे Proceeds of Crime (POC) से जुड़ा माना जा रहा है। इसके अलावा कई आपत्तिजनक दस्तावेज और डिजिटल सबूत भी मिले जो इस केस में अहम हैं।
86 लाख कैश कहां से आया?
PMLA की धारा 17 के तहत किए गए सर्च में ED ने बताया, कि 86 लाख रुपये कैश स्वराज सिंह के एक रिश्तेदार के पास से बरामद हुआ, जो राजस्थान में जमीन की बिक्री से आया था। यह रिकवरी साबित करती है, कि स्वराज ने Proceeds of Crime को अपने कब्जे में रखा और छिपाया। लेकिन सवाल यह है, कि अगर यह पैसा जमीन की बिक्री से आया था, तो इसे छिपाने की क्या जरूरत थी? ED का मानना है, कि यह पैसा असल में अवैध कमाई का हिस्सा है, जिसे लीगल दिखाने के लिए जमीन बिक्री का बहाना बनाया गया।
ED की जांच से पता चला है, कि स्वराज सिंह ने हाल के सालों में गुरुग्राम, महाराष्ट्र और राजस्थान में अपनी और अपनी कंपनी की संपत्तियों को तेजी से बेचा है, ताकि अवैध कमाई को ऐसे रूप में बदला जा सके, जिसे आसानी से निपटाया जा सके।
परिवार अमेरिका भेज दिया, संपत्ति बेची-
ED ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया है। स्वराज सिंह की पत्नी और बच्चे अमेरिका शिफ्ट हो चुके हैं और तेजी से संपत्ति बेचने से साफ है, कि वह कानूनी कार्रवाई से बचने की कोशिश कर रहे थे। यह strategy अक्सर वे लोग अपनाते हैं, जो जानते हैं, कि उनके खिलाफ जांच हो सकती है। परिवार को पहले safe जगह भेज दो और फिर संपत्ति बेचकर पैसा transfer कर दो। ED को यही डर था, कि अगर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो स्वराज भी देश छोड़ सकते हैं।
ED के अनुसार, “उनकी पत्नी और बच्चे USA में रीलोकेट हो चुके हैं और तेजी से संपत्तियों की बिक्री यह दिखाती है कि वह संपत्ति को खत्म करने और कानूनी कार्रवाई से बचने की कोशिश कर रहे थे।”
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कैसे काम करता था यह घोटाला?
ED ने एक खास modus operandi का खुलासा किया है, जो बेहद चालाकी भरा है। स्वराज सिंह यादव प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत allot किए गए फ्लैट्स को झूठे बहाने बनाकर कैंसिल कर देते थे और फिर उन्हीं यूनिट्स को ऊंची कीमत पर फिर से बेच देते थे। दिलचस्प बात यह है, कि पहले वाले खरीदारों का पैसा रिफंड नहीं किया जाता था, इस तरह वह दोहरी कमाई कर लेते थे। एक तरफ पहले खरीदार का पैसा उनके पास रह जाता और दूसरी तरफ नए खरीदार से और पैसा वसूल लिया जाता।
यही नहीं, बैंकिंग चैनल्स के जरिए मिलने वाले पैसे के अलावा, स्वराज कैश में भी मोटी रकम वसूलते थे। यह उनकी काली कमाई का मुख्य जरिया था। ED का कहना है, कि वह इनमें कैश-बेस्ड कलेक्शन को कंट्रोल करते थे, जो बैंकिंग चैनल से मिलने वाले पैसे के अलावा होता था।
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