Maharashtra Corruption
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    Maharashtra Corruption: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है, जो आने वाले दिनों में सियासी गलियारों में तूफान मचा सकता है। राज्य में कैबिनेट मंत्रियों को आवंटित सरकारी बंगलों के रेनोवेशन में करीब 30 करोड़ रुपये की अनियमितता का खुलासा हुआ है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है, कि जांच में पता चला है, कि ज्यादातर काम सिर्फ कागजों पर ही पूरा हुआ है, जमीन पर कुछ नहीं हुआ। यह मामला जनता के पैसों के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

    नासिक विजिलेंस एंड क्वालिटी कंट्रोल बोर्ड की जांच रिपोर्ट ने इस पूरे घोटाले का पर्दाफाश किया है। सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर केपी पाटिल की अगुवाई में हुई, इस जांच में बंगलों के रेनोवेशन प्रोसेस में बड़े पैमाने पर हुई गड़बड़ियों का खुलासा किया गया है। जो काम मामूली मरम्मत और रखरखाव के नाम पर होना था, वह सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए किया गया।

    कैसे हुआ घोटाला-

    जांच में सामने आया है, कि इस पूरे स्कैम में पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट यानी PWD के इंजीनियर्स, अधिकारी और स्टाफ सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। बंगलों में बिना जरूरत के स्ट्रक्चरल बदलाव किए गए, फर्नीचर की खरीद में ओवरप्राइसिंग की गई और जो काम पहले ही पूरा हो चुका था, उसके लिए दोबारा बिल बना दिए गए। यह सब कुछ बड़ी चालाकी से प्लान किया गया था।

    व्हिसलब्लोअर वेंकटेश पाटिल ने शिकायत दर्ज कराते हुए बताया, कि कॉन्ट्रैक्टर्स और इंजीनियर्स ने मिलकर यह कथित घोटाला अंजाम दिया। उन्होंने पुराने कामों को नया बताकर उसके लिए ताजा बिल बना दिए। सबसे हैरान करने वाली बात यह है, कि कुल काम का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ कागजों पर ही मौजूद है, जबकि बाकी प्रोजेक्ट्स की कॉस्ट एस्टिमेट लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ा दी गई।

    30 करोड़ के फर्जी बिल-

    सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इंजीनियर्स ने सरकारी बंगलों की मरम्मत और रेनोवेशन के नाम पर लगभग 30 करोड़ रुपये के बिल जारी किए। पूरा सिस्टम इतनी चालाकी से डिजाइन किया गया था, कि एक ही काम के लिए अलग-अलग टेंडर फ्लोट किए गए। मसलन, परिसर की पेंटिंग का प्रोजेक्ट रेनोवेशन से अलग बिल किया गया। मंत्रालय के पास स्थित बंगलों की दोबारा पेंटिंग के लिए 1.05 करोड़ रुपये के ताजा टेंडर जारी किए गए।

    दिलचस्प बात यह है, कि पब्लिक वर्क्स मिनिस्टर रविंद्र चव्हाण के आधिकारिक निवास के लिए मरम्मत के नाम पर 75 लाख रुपये और स्टेशनरी सप्लाई के लिए 57 लाख रुपये के टेंडर जारी किए गए, जो संदेह पैदा करता है। इसी तरह ‘तोरणा’ बंगले को मार्च 2023 में रेनोवेशन के लिए 4.16 करोड़ रुपये मिले और फिर जनवरी 2024 में फ्रेश 4.64 करोड़ रुपये का टेंडर जारी किया गया।

    रिपोर्ट आने के बाद भी कोई एक्शन नहीं-

    जांच रिपोर्ट में इन इंजीनियर्स, अफसरों और स्टाफ के खिलाफ डिसिप्लिनरी एक्शन और चार्जशीट दाखिल करने की सिफारिश की गई थी। लेकिन हैरानी की बात यह है, कि रिपोर्ट जुलाई में राज्य सरकार को सौंपे जाने के बावजूद किसी भी अधिकारी को उनके पद से नहीं हटाया गया है। इसके बजाय, दोषी पाए गए लोगों से स्पष्टीकरण मांगने के लिए कथित तौर पर एक रिव्यू कमेटी बना दी गई है।

    व्हिसलब्लोअर वेंकटेश पाटिल ने सभी संबंधित टेंडर्स को तुरंत कैंसिल करने, दोषी इंजीनियर्स को सस्पेंड करने और दुरुपयोग किए गए सार्वजनिक फंड की रिकवरी की मांग की है। उन्होंने कहा, “इन अधिकारियों को सेवा में बने रहने देना उनकी भ्रष्ट प्रथाओं को मंजूरी देने के बराबर है।”

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    जनता का पैसा-

    यह पूरा मामला यह साबित करता है, कि किस तरह से आम जनता की मेहनत की कमाई से इकट्ठा हुए टैक्स के पैसे का दुरुपयोग किया जाता है। जो पैसा स्कूलों, अस्पतालों और सड़कों के निर्माण में लगना चाहिए, वह मंत्रियों के बंगलों की फर्जी मरम्मत में लुटाया जा रहा है और जब पकड़े जाते हैं, तो भी कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती।

    अब देखना यह होगा. कि विपक्ष इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से उठाता है और सरकार इस पर क्या एक्शन लेती है। अधिकारियों से उम्मीद की जा रही है, कि वे आने वाले दिनों में इस मामले में और डिटेल्स शेयर करेंगे। लेकिन सवाल यह है, कि क्या सच में कोई कार्रवाई होगी या यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा?

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