Kidney Health: किडनी हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण ऑर्गन्स में से हैं, लेकिन अक्सर हम इनकी हेल्थ को लेकर बेपरवाह रहते हैं। ये छोटे से दिखने वाले ऑर्गन्स दरअसल हमारे शरीर के लिए एक पावरफुल मशीन का काम करते हैं। हर दिन ये 180 लीटर खून को फिल्टर करके वेस्ट मैटेरियल्स को बाहर निकालते हैं, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करते हैं और हमारे शरीर में पानी और मिनरल्स का बैलेंस बनाए रखते हैं।
चुपचाप बढ़ता गुर्दों का रोग-
क्रॉनिक किडनी डिजीज यानी सीकेडी एक ऐसी बीमारी है, जो बिल्कुल साइलेंट किलर की तरह काम करती है। शुरुआती स्टेजेस में इसके कोई खास सिम्टम्स नजर नहीं आते, जिसकी वजह से पेशेंट्स को पता ही नहीं चलता, कि उनकी किडनीज में कोई प्रॉब्लम है। मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अगर समय रहते इन वार्निंग साइन्स को पहचान लिया जाए, तो किडनी फेलियर जैसी सीरियस कंडीशन से बचा जा सकता है।
पहला संकेत-
जब गुर्दे प्रॉपरली काम नहीं करते, तो शरीर में टॉक्सिक सब्सटेंसेस जमा होने लगते हैं। इससे व्यक्ति को हमेशा टायर्डनेस महसूस होती है। साथ ही गुर्दे एरिथ्रोपोएटिन नामक हॉर्मोन भी बनाते हैं, जो रेड ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन में हेल्प करता है। जब यह हॉर्मोन कम बनता है, तो एनीमिया हो जाता है। इस वजह से पेशेंट्स को कॉन्स्टेंट फेटीग, कॉन्सेंट्रेशन की कमी और हल्की सी एक्टिविटी में भी सांस फूलने की प्रॉब्लम होती है। ज्यादातर लोग इसे नॉर्मल एग्जॉस्चन या बढ़ती उम्र का असर समझकर इग्नोर कर देते हैं।
दूसरा संकेत-
पेशाब की फ्रीक्वेंसी, कलर या अपीयरेंस में चेंजेस अक्सर किडनी प्रॉब्लम्स के पहले इंडिकेटर्स होते हैं, लेकिन इन्हें सीरियसली नहीं लिया जाता। रात में बार-बार बाथरूम जाना (नॉक्चुरिया), फोमी या बुलबुले वाला यूरिन (जो प्रोटीन लॉस को इंडिकेट करता है), पेशाब में ब्लड आना (हेमाटुरिया), या बहुत डार्क कलर का यूरिन, ये सभी पॉसिबल किडनी डैमेज के साइन्स हैं। इन सीमिंगली माइनर चेंजेस को इग्नोर करना डिजीज को क्वाइटली बढ़ने देता है।
तीसरा संकेत-
जब किडनीज एक्सेस सोडियम और फ्लूइड को बॉडी से प्रॉपरली रिमूव नहीं कर पातीं, तो स्वेलिंग (एडिमा) होने लगती है। यह स्पेशली पैरों में और आंखों के अराउंड क्लियरली दिखाई देती है। पेशेंट्स अक्सर इस स्वेलिंग को लॉन्ग टाइम तक खड़े रहने या गलत ईटिंग हैबिट्स का रिजल्ट मानते हैं, लेकिन यह फेलिंग किडनीज का एविडेंस हो सकता है। जल्दी डिटेक्शन और टेस्टिंग बेहद जरूरी है।
चौथा संकेत-
किडनी डैमेज का एक लेसर-नोन साइन है, पर्सिस्टेंट इचिंग (प्रूरिटस)। यह ब्लड में वेस्ट प्रोडक्ट्स के एक्यूमुलेशन और कैल्शियम-फॉस्फोरस जैसे मिनरल्स के इम्बैलेंस की वजह से होता है। ड्राई, फ्लेकी स्किन और बिना किसी स्किन कंडीशन के नैगिंग डिजायर टू स्क्रैच को रीनल चेक-अप के साथ इवैल्यूएट करना चाहिए।
पांचवा संकेत-
जैसे-जैसे किडनी फंक्शन वर्स होता जाता है, शरीर में यूरेमिक टॉक्सिन्स का एक्यूमुलेशन होता है। इससे मुंह में मेटैलिक टेस्ट, सांस में बैड स्मेल (यूरेमिक फेटर), नॉजिया या एपेटाइट लॉस जैसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिम्टम्स आती हैं। ये सिम्टम्स यूजुअली डाइजेस्टिव इश्यूज समझकर मिसडायग्नोस हो जाते हैं, जिससे प्रॉपर ट्रीटमेंट में डिले होती है।
कब करें डॉक्टर से कॉन्टैक्ट-
अगर आप या आपके फैमिली मेम्बर्स में से कोई इन सिम्टम्स को एक्सपीरियंस कर रहा है, एस्पेशली अगर डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी डिजीज की फैमिली हिस्ट्री या पेन मेडिकेशन्स का लॉन्ग-टर्म यूज है, तो तुरंत हेल्थकेयर प्रोवाइडर से किडनी फंक्शन टेस्ट कराएं। अर्ली डिटेक्शन के लिए रेगुलर ब्लड टेस्ट्स (क्रिएटिनिन, ईजीएफआर) और यूरिन टेस्ट्स (एल्ब्यूमिन) कराना बेहद जरूरी है।
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जरूरी बात-
किडनी हेल्थ मेंटेन करने का सीक्रेट है अवेयरनेस और टाइमली एक्शन। अपने शरीर के सबटल सिग्नल्स को सीरियसली लें, हो सकता है, आपकी किडनीज चुपचाप हेल्प के लिए पुकार रही हों। प्रिवेंशन हमेशा क्योर से बेटर होता है, इसलिए इन वार्निंग साइन्स को कभी भी लाइट में न लें। रेगुलर चेकअप्स और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर आप अपनी किडनीज को लॉन्ग टर्म तक हेल्दी रख सकते हैं।
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