CREA Report
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    CREA Report: फिनलैंड स्थित स्वतंत्र थिंक टैंक CREA (सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर) की नवीनतम रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से अब तक यूरोपीय संघ के देशों का रूस के जीवाश्म ईंधन निर्यात से मिलने वाली आय में 23 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि भारत का हिस्सा केवल 13 प्रतिशत है। इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है, कि G7+ टैंकरों द्वारा वर्तमान में इन बैरलों का आधे से ज़्यादा परिवहन किया जा रहा है।

    भारतीय सरकारी सूत्रों ने कहा, कि यह आंकड़े पश्चिमी दोहरेपन को और भी स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। पश्चिमी देश भारत को अपने ऊर्जा हितों की सुरक्षा के लिए निशाना बना रहे हैं, जबकि अन्य देशों की समान कार्रवाइयों को नजरअंदाज कर रहे हैं। यूरोपीय संघ केवल ऊर्जा ही नहीं, बल्कि उर्वरक, रसायन, लोहा, इस्पात और परिवहन उपकरण भी रूस से खरीद रहा है।

    भारत की स्थिति का बचाव-

    गुमनामी की शर्त पर एक सूत्र ने कहा, “ये आंकड़े केवल भारत के इस जोर को सही ठहराते हैं, कि उसके नागरिकों के लिए नियमित और किफायती ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना जरूरी है।” यह बयान उस समय आया है, जब अमेरिका ने बुधवार को भारत पर शुल्क दोगुना करके 50 प्रतिशत कर दिया है। अमेरिका का आरोप है, कि भारत रूसी तेल खरीदकर “रूसी युद्ध मशीन को ईंधन” दे रहा है।

    पिछले महीने यूरोपीय संघ ने भारतीय रिफाइनिंग कंपनी नयारा एनर्जी पर प्रतिबंध लगाया था। इस पृष्ठभूमि में देखा जाए, तो CREA की यह रिपोर्ट उस “दोहरे मानदंड” को उजागर करती है, जिसका नई दिल्ली आरोप लगाती रही है। भारत का कहना है, कि पश्चिमी देश भारत को अकेले निशाना बना रहे हैं।

    रिपोर्ट के मुख्य आंकड़े-

    रिपोर्ट के अनुसार, मास्को ने अब तक तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, रिफाइंड ईंधन और मध्यवर्ती उत्पादों जैसे जीवाश्म ईंधन निर्यात से 923 अरब यूरो (92,300 करोड़ रुपए) की कमाई की है। इसमें से 212 अरब यूरो (21,200 करोड़ रुपए) यूरोपीय संघ के देशों से आया, जबकि भारत से 121 अरब यूरो (12,100 करोड़ रुपए) आया। चीन रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार बना रहा, जिसने 200 अरब यूरो (20,000 करोड़ रुपए) से अधिक का भुगतान किया। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं, कि यूरोपीय संघ का योगदान भारत से लगभग दोगुना है। फिर भी पश्चिमी देश मुख्य रूप से भारत को ही निशाना बना रहे हैं, जो उनके दोहरे मानदंडों को दर्शाता है।

    G7 टैंकरों की बढ़ती भूमिका-

    रिपोर्ट में G7 टैंकरों की बढ़ती भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया है। यूरोपीय संघ के जून के प्रतिबंधों के बाद से रूसी तेल के परिवहन में इन टैंकरों की भूमिका बढ़ रही है। यह पश्चिमी नीति और व्यवहार के बीच के अंतर को रेखांकित करता है, जिसकी ओर नई दिल्ली ध्यान दिलाती रही है। रिपोर्ट के अनुसार, “जनवरी से रूसी तेल परिवहन में G7+ का हिस्सा 36 प्रतिशत से बढ़कर 56 प्रतिशत हो गया है।” जून में रूसी समुद्री तेल निर्यात का आधे से अधिक हिस्सा G7+ टैंकरों में परिवहन हुआ, जो मई की तुलना में छह प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। पश्चिमी टैंकरों के इस्तेमाल का मतलब यह था, कि वे शिपमेंट मूल्य कैप और प्रतिबंधों की अन्य शर्तों के अनुपालन में थे। यह स्थिति पश्चिमी देशों की नीति और व्यवहार के बीच के विरोधाभास को स्पष्ट रूप से दिखाती है।

    भारत का तर्क और वैश्विक तेल बाजार-

    भारत का तर्क है, कि उसने रूसी तेल खरीदकर तेल की कीमतों में उछाल को रोकने में मदद की है। रूसी तेल दैनिक वैश्विक आपूर्ति का लगभग 9 प्रतिशत है। यह भी एक प्रमुख विचार था, जिसने अमेरिका और यूरोपीय संघ को तेल बाजारों को हिलाए बिना मास्को के युद्ध प्रयासों के लिए फंडिंग को रोकने के लिए प्रतिबंधों के साथ प्रवाह को रोकने के बजाय मूल्य कैप का विकल्प चुनने पर मजबूर किया। भारत की यह दलील वाजिब लगती है, कि उसने वैश्विक ऊर्जा स्थिरता में योगदान दिया है। अगर भारत रूसी तेल नहीं खरीदता, तो वैश्विक तेल की कीमतें और भी अधिक बढ़ सकती थीं, जिससे दुनिया भर के आम लोगों को नुकसान होता।

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    रूसी आय में गिरावट के संकेत-

    हालांकि रिपोर्ट यह भी कहती है, कि “2025 की दूसरी तिमाही में रूसी जीवाश्म ईंधन राजस्व साल-दर-साल 18 प्रतिशत गिर गया है, यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से यह एक तिमाही में सबसे कम है।” यह 2025 की पहली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में निर्यातित मात्रा में 8 प्रतिशत वृद्धि के बावजूद हुआ। यह आंकड़े दिखाते हैं, कि प्रतिबंधों का कुछ प्रभाव हो रहा है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट है, कि पश्चिमी देश अभी भी रूसी ऊर्जा के महत्वपूर्ण खरीदार बने हुए हैं।

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