DNA Diets: आज के जमाने में हेल्दी खाना और वजन कम करना हर किसी की प्राथमिकता बन गई है। Mediterranean डाइट से लेकर Vegan डाइट तक, लोग तरह-तरह के फूड ट्रेंड्स को फॉलो कर रहे हैं। कभी फैट कम करो, कभी कार्ब्स बंद करो, कभी फास्टिंग करो - यह सब करते-करते अब एक नया कॉन्सेप्ट आया है 'बायोहैकिंग'। यह एक DIY प्रैक्टिस है जिसमें साइंटिफिक एविडेंस के जरिए अपनी लाइफस्टाइल को बेहतर हेल्थ के लिए मॉडिफाई किया जाता है। लेकिन अब बायोहैकिंग सिर्फ फैंसी डाइट्स तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह मेडिकल साइंस की गहराइयों से निकलकर एक रिवोल्यूशन बन गई है।
DNA Diets न्यूट्रिजेनोमिक्स-
अंग्रेज़ी समाचार वेबसाइट इंडिया टूडे के मुताबिक, जेनेटिक डायग्नोस्टिक्स में हुई अविश्वसनीय प्रगति ने न्यूट्रिजेनोमिक्स नाम का एक नया फील्ड खोला है। यह डिसिप्लिन इस बात पर फोकस करती है कि खाना हमारे जीन्स के साथ कैसे इंटरैक्ट करता है और जीन्स हमारे शरीर की फूड रिस्पॉन्स को कैसे प्रभावित करते हैं। इसकी मदद से हाइपर-पर्सनलाइज्ड बायोहैकिंग की जा सकती है, यानी किसी व्यक्ति के जेनेटिक प्रोफाइल के आधार पर उसके लिए न्यूट्रिशन प्लान तैयार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी के जीन्स लैक्टोज इनटॉलेरेंस इंडिकेट करते हैं तो उसे डेयरी प्रोडक्ट्स अवॉइड करने की सलाह दी जा सकती है। वहीं किसी दूसरे व्यक्ति को चावल खाने के लिए एंकरेज किया जा सकता है क्योंकि मेडिकल प्रूफ दिखाता है कि उसका शरीर इस अनाज को बेहतर तरीके से यूज करता है।
DNA Diets एपिजेनेटिक्स-
जीन्स और हेल्थ आउटकम्स के बीच का इंटरप्ले एक दशक से भी ज्यादा समय से थियोरेटिकली जाना जाता है। 2013 में Nature Reviews Genetics जर्नल में पब्लिश हुई स्टडी के अनुसार, न्यूट्रिएंट्स जीन एक्सप्रेशन को मॉड्यूलेट कर सकते हैं। यह प्रोसेस DNA methylation जैसे मैकेनिज्म के जरिए होती है, जहाम DNA में methyl groups जोड़कर जीन एक्सप्रेशन को बदला जाता है। इस तरह के मैकेनिज्म्स और न्यूट्रिएंट्स तथा मेडिसिन्स के जरिए जीन एक्सप्रेशन में चेंजेस की स्टडी को एपिजेनेटिक्स कहते हैं। जीन एक्सप्रेशन में चेंजेस इस बात को प्रभावित करते हैं कि सेल्स जीन्स को कैसे रीड और यूज करते हैं, जिससे बायोलॉजिकल प्रोसेसेज प्रभावित होती हैं।
टेक्नोलॉजी ने बनाया आसान और एक्यूरेट-
पिछले दशक में DNA सीक्वेंसिंग टेक्नोलॉजीज जैसे next-generation sequencing (NGS) और exome sequencing में हुई प्रगति ने न्यूट्रिजेनोमिक टेस्टिंग की एक्यूरेसी को बेहतर बनाया है। ये टेस्ट्स उन जीन वेरिएंट्स को असेस करते हैं जो शरीर की न्यूट्रिएंट्स के प्रति रिस्पॉन्स, मेटाबॉलिज्म और बीमारियों के प्रति सस्सेप्टिबिलिटी को प्रभावित करते हैं। IMARC मार्केट रिसर्च फर्म के अनुसार, भारतीय जेनेटिक टेस्टिंग मार्केट की वैल्यू 2024 में 1.8 बिलियन डॉलर यानी 15,400 करोड़ रुपए से अधिक थी। हालांकि, HaystackAnalytics की डायरेक्टर मेडिकल जेनेटिक्स डॉ अपर्णा भानुशाली का कहना है कि टेक्निकल लेवल पर एक्यूरेसी बहुत हाई है, लेकिन न्यूट्रिशन के कॉन्टेक्स्ट में इन वेरिएंट्स की क्लिनिकल इंटरप्रिटेशन अभी भी एक इमर्जिंग एरिया है।
रियल लाइफ में मिल रहे हैं नतीजे-
न्यूट्रिजेनोमिक टेस्टिंग के जरिए जानना कि शरीर किसी न्यूट्रिएंट को कैसे यूज करता है, यह सिर्फ आधी बात है। दूसरा हिस्सा है इस इन्फॉर्मेशन को बेहतर हेल्थ के लिए यूज करना। यह न सिर्फ टार्गेटेड न्यूट्रिएंट्स से होता है बल्कि एपिजेनेटिक मेडिसिन से भी, जो एपिजेनेटिक मैकेनिज्म्स को टार्गेट करके जीन एक्सप्रेशन को मॉडिफाई करती है और स्पेसिफिक डिजीजेज का इलाज करती है। हेल्थ टेक स्टार्टअप Vieroots के फाउंडर और चेयरमैन साजीव नायर कहते हैं कि उनके EPLIMO प्रोग्राम से 10,000 से अधिक लोगों ने फायदा उठाया है। तीन महीने बाद ब्लड वर्क में उनके हेल्थ मार्कर्स में अमेजिंग इम्प्रूवमेंट देखी गई है, जो प्रूव करता है कि बायोहैकिंग मेजरेबल है।
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सक्सेस स्टोरीज और केस स्टडीज-
बेंगलुरु के 38 साल के फिटनेस एंथूजिएस्ट रोहित जब Haystack Analytics में जेनोमिक हेल्थ असेसमेंट के लिए गए, तो उन्हें कुछ खास उम्मीद नहीं थी। लेकिन रिजल्ट्स ने उनके हेल्थ अप्रोच को बदल दिया। टेस्ट में Graves' disease का हाइटेंड जेनेटिक रिस्क मिला, जो एक ऑटोइम्यून कंडिशन है जो थायरॉइड को प्रभावित करती है। वहीं बेंगलुरु के 41 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर साहिल मल्होत्रा को 10 किलो वजन कम करना था। MapMyGenome के जरिए उनका जेनेटिक प्रोफाइल निकालने के बाद पता चला कि वह प्रोटीन को अच्छी तरह डाइजेस्ट नहीं कर पाते, इसीलिए हाई-प्रोटीन डाइट्स फेल हो रहीं थीं। यह रिजल्ट समझ में आया क्योंकि उनका परिवार ओरिजिनली वेजिटेरियन था।
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