Waqf Bill: केंद्र सरकार वक्फ संशोधन विधेयक पर विपक्ष को ज्यादा रियायत देने के मूड में नहीं दिख रही है। सरकार इस विधेयक को जल्द ही कानून का जामा पहनाने की पूरी तैयारी में है। इस विधेयक का मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों द्वारा जोरदार विरोध किया जा रहा है, लेकिन सरकार अपने इरादों पर कायम है और इसे जल्द से जल्द पारित कराने की कोशिश में है।
Waqf Bill विधेयक की संसदीय यात्रा-
सूत्रों के अनुसार, सरकार ने बुधवार को लोकसभा में इस विधेयक को पेश करने का निर्णय लिया है। इसके बाद गुरुवार को इसे राज्यसभा में पारित कराने का प्लान है। विपक्षी दलों के कड़े विरोध के बीच, संसद में इस विधेयक पर तीखी बहस होने की संभावना है। विपक्ष ने पहले ही इसे संविधान विरोधी और अल्पसंख्यक विरोधी बताकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस महत्वपूर्ण विधेयक पर लंबी और विस्तृत चर्चा की मांग की थी, लेकिन सरकार ने मात्र आठ घंटे की बहस का समय निर्धारित किया है। इस फैसले से नाराज होने के बावजूद, विपक्ष ने संसद की कार्यवाही का बहिष्कार करने के बजाय पूरी ताकत से बहस में हिस्सा लेने का रणनीतिक निर्णय लिया है।
वक़्फ़ के पास इतनी प्रॉपर्टी है कि केवल मुसलमानों की ही नहीं बल्कि देश की भी तकदीर बदल सकती है...#WaqfAmendmentBill pic.twitter.com/5fN4py6fL9
— Bhagirath Choudhary (@mpbhagirathbjp) April 2, 2025
Waqf Bill संख्या बल और पारित होने की संभावना-
संसदीय गणित की बात करें तो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास लोकसभा में 293 सांसदों का समर्थन है, जो बहुमत से काफी अधिक है। राज्यसभा में भी एनडीए के पास पर्याप्त संख्या बल है, जिससे विधेयक का पारित होना लगभग तय माना जा रहा है।
शुरुआती दौर में टीडीपी, जेडीयू और एलजेपी जैसे सहयोगी दलों ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, सरकार द्वारा उनके सुझावों को शामिल करने के बाद इन दलों ने भी विधेयक का समर्थन करने का फैसला कर लिया है। इससे विधेयक को पारित कराने में सरकार की स्थिति और मजबूत हो गई है।
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मुस्लिम समुदाय का विरोध-
देश भर के मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक का खुलकर विरोध किया है। हाल ही में, कई मुस्लिम संगठनों ने ईद की नमाज के दौरान ब्लैक आर्मबैंड पहनकर अपना विरोध प्रदर्शित किया। उनका कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता को खत्म करने और सरकारी नियंत्रण को बढ़ाने का प्रयास है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के अनुसार, सरकार वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कटौती करके मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है। उनका आरोप है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है और इससे धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा।
विपक्ष के तर्क-
विपक्षी दलों का मानना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों पर सरकारी दखल को बढ़ावा देगा। उनका तर्क है कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। विपक्ष ने इसे धार्मिक विभाजन बढ़ाने वाला कानून बताया है और कहा है कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था, "यह विधेयक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक और हमला है। हम इसका पूरी ताकत से विरोध करेंगे।" वहीं TMC और समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने भी इस विधेयक को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है।
सरकार का पक्ष-
दूसरी ओर, सरकार इस विधेयक को वक्फ प्रशासन में पारदर्शिता और सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बता रही है। सरकार का दावा है कि इससे वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा और इनका बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित होगा।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने कहा है, "यह विधेयक किसी धर्म विशेष को निशाना बनाने के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों के कामकाज में सुधार लाना और पारदर्शिता बढ़ाना है। इससे वक्फ संपत्तियों का उपयोग समुदाय के कल्याण के लिए सुनिश्चित किया जा सकेगा।"
विधेयक पास होने पर होंगे ये बदलाव-
इस विधेयक के संसद से पारित होने के बाद वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में कई महत्वपूर्ण बदलाव होंगे। सूत्रों के अनुसार, इसमें निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान हैं:
- वक्फ बोर्डों में महिलाओं और गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान।
- वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में बदलाव।
- वक्फ संपत्तियों के विवादों के निपटारे के लिए न्यायिक प्रक्रिया में संशोधन।
- वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए डिजिटलीकरण।
- वक्फ संपत्तियों के रखरखाव और उपयोग पर सख्त निगरानी।
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सरकार का दावा है कि इन बदलावों से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन होगा और इनका फायदा मुस्लिम समुदाय को मिलेगा। लेकिन विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इससे सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा और धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित होगी।
अब देखना यह है कि संसद में इस विधेयक पर बहस कितनी गहराई से होती है और क्या सरकार विपक्ष के सुझावों को शामिल करने के लिए तैयार होगी या अपने बहुमत का उपयोग करके विधेयक को मूल रूप में ही पारित करा देगी। निश्चित रूप से, यह विधेयक आने वाले दिनों में राजनीतिक और धार्मिक बहस का केंद्र बना रहेगा।
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