Electoral Bonds: आज चुनावी बांड का पूरा डाटा साझा नहीं करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक को सुप्रीम कोर्ट की ओर से फटकार लगाई गई है। यह एक ऐसी योजना जो की व्यक्तियों और व्यवसियों को राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से दान करने की अनुमति देता है। अदालत ने इस योजना को रद्द कर दिया है और बैंक को पिछले 5 सालों में किए गए दान पर सभी विवरण साझा करने के निर्देश दिए थे। चुनाव आयोग की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपलब्ध कराया गया डाटा अधूरा है।
पांच न्यायाधीशों की पीठ-
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में एसबीआई को पहले से साझा किए गए, डाटा के अलावा चुनावी बांड संख्या का भी खुलासा करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश डिवाइस चंद्रचूड़ ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि भारतीय स्टेट बैंक की ओर से कौन पेश हो रहा है।
उन्होंने बॉन्ड संख्या का खुलासा नहीं किया। इसका खुलासा भारतीय स्टेट बैंक को करना होगा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने SBI को अपने नोटिस में बैंक से 18 मार्च को अगली सुनवाई के दौरान निश्चितता के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए कहा है। चुनावी बॉन्ड संख्या दानदाताओं और राजनीतिक दलों के बीच संबंध स्थापित करने में मदद करेगी।
राजनीतिक दलों को दान करने की अनुमति-
चुनावी बॉन्ड ने व्यक्तियों और व्यवसायों को बिना घोषणा किए राजनीतिक दलों को दान करने की अनुमति देती है। उन्हें 2018 में बीजेपी सरकार द्वारा नगद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने की पहल के रूप में पेश किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इस योजना को असंवैधानिक कहते हुए इसे चिंता के साथ खारिज कर दिया कि इससे बदले की भावना पैदा हो सकती है।
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Electoral Bonds सभी विवरण-
अदालत ने एसबीआई से चुनाव आयोग के साथ बॉन्ड की खरीद और मोचन के बारे में सभी विवरण साझा करने के आग्रह किया। अपनी याचिका में चुनाव आयोग ने कहा कि 11 मार्च के आदेश में कहा गया था कि यह सुनवाई के दौरान सील बंद लिफाफे में उनके द्वारा अदालत में जमा किए गए। दस्तावेजों की प्रति चुनाव आयोग के कार्यालय में रखी जाएंगी। चुनाव आयोग ने कहा कि उसने दस्तावेजों की कोई प्रति नहीं रखी और कहा कि वह उन्हें वापस किया जा सकता है, जिससे वह अदालत के निर्देशों का पालन कर सकें।
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