Sarbartho Mani
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    Sarbartho Mani: भारतीय शतरंज में एक और युवा सितारा तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। कोलकाता के नन्हें खिलाड़ी सरबार्थो मनी ने एक बार फिर साबित किया है, कि उम्र सिर्फ एक नंबर है, जब बात प्रतिभा और मेहनत की आती है। हाल ही में कजाकिस्तान के अल्माटी में आयोजित वर्ल्ड कैडेट चेस चैंपियनशिप में मनी ने अंडर-10 ओपन सेक्शन में कांस्य पदक अपने नाम किया है। यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है।

    साल में दूसरी बड़ी कामयाबी-

    इस साल यह सरबार्थो की दूसरी अंतरराष्ट्रीय पोडियम फिनिश है। जुलाई महीने में जॉर्जिया के बाटुमी में आयोजित वर्ल्ड कैडेट चेस कप में उन्होंने अंडर-10 ओपन सेक्शन में गोल्ड मेडल जीतकर सभी को चौंका दिया था। उस समय भी मनी ने अपने दमदार खेल से विरोधियों को मात दी थी और शीर्ष पर पहुंचे थे। अब महज कुछ महीनों बाद ही वह एक और बड़े टूर्नामेंट में मेडल लेकर लौटे हैं।

    दस साल से कम उम्र के इस खिलाड़ी ने साबित कर दिया है, कि भारतीय शतरंज का भविष्य उज्ज्वल है। विश्वनाथन आनंद और अब प्रज्ञानानंद जैसे खिलाड़ियों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, मनी जैसे युवा खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

    गोल्ड से चूके, लेकिन हार नहीं मानी-

    अल्माटी चैंपियनशिप में सरबार्थो की शुरुआत शानदार रही थी। उन्होंने शुरुआती छह राउंड लगातार जीतकर सबको यह एहसास करा दिया था कि वह गोल्ड के प्रबल दावेदार हैं। टूर्नामेंट में उनका खेल इतना प्रभावशाली था कि हर कोई उन्हें विजेता के तौर पर देख रहा था। लेकिन शतरंज एक ऐसा खेल है जहां एक गलती पूरी स्थिति बदल सकती है।

    दसवें राउंड में रूस के एडन गफुरोव के खिलाफ मैच में एक रूक एंडगेम में हुई गलती ने मनी को महंगी पड़ी। इस हार से वह लीडरबोर्ड पर पीछे खिसक गए और गोल्ड की उम्मीदें कम हो गईं। यह मैच उनके लिए एक learning experience साबित हुआ, जो आगे चलकर उन्हें और मजबूत बनाएगा।

    कांस्य पदक की कहानी-

    हालांकि दसवें राउंड की हार ने मनी को झटका दिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। यह टूर्नामेंट में उनकी एकमात्र हार थी। इसके बाद के पांच राउंड में उन्होंने 2.5 अंक हासिल किए और कुल 11 राउंड के टूर्नामेंट में 8.5 अंक के साथ फिनिश किया। यह स्कोर सर्बिया के लियोनिड इवानोविक और श्रीलंका के एपी चेनिथा करुसेना के बराबर था।

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    तीनों खिलाड़ियों के बीच पदक का फैसला टाई-ब्रेक्स से होना था। यहां मनी ने अपनी बेहतर परफॉर्मेंस के दम पर दोनों को पीछे छोड़ दिया और कांस्य पदक अपने नाम किया। टाई-ब्रेक सिस्टम में विभिन्न मापदंडों जैसे ऑपोनेंट की रैंकिंग, बुखोल्ज स्कोर और पर्फोर्मेंस रेटिंग को देखा जाता है और इन सभी में मनी आगे रहे।

    सरबार्थो मनी की यह सफलता कोलकाता और पूरे देश के युवा शतरंज खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है। दस साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार अच्छा प्रदर्शन करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए कड़ी मेहनत, अनुशासन और पूरे परिवार के सपोर्ट की जरूरत होती है।

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