Bula Chaudhary
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    Bula Chaudhary: क्या आपने कभी सोचा है, कि पश्चिम बंगाल के एक साधारण गांव की छोटी सी बच्ची कैसे भारत की स्विमिंग लीजेंड बन गई? कैसे उसने समुद्रों को पार किया और पद्मश्री तक का सफर तय किया? बुला चौधरी की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं है। गांव के कीचड़ भरे तालाबों से लेकर महाद्वीपों के पार इतिहास रचने तक, उन्होंने हर मुश्किल को अपनी ताकत बनाया और हिम्मत को कामयाबी में बदल दिया।

    कौन हैं बुला चौधरी?

    बुला चौधरी भारत की सबसे प्रसिद्ध लॉन्ग डिस्टेंस स्विमर हैं, जिन्होंने देश का नाम दुनिया भर में रोशन किया है। वह पांच महाद्वीपों में समुद्री चैनलों को तैरकर पार करने वाली पहली महिला हैं और इसी उपलब्धि के लिए उन्हें “सात समुद्र पार करने वाली पहली महिला” के खिताब से जाना जाता है। 1970 में पश्चिम बंगाल के हुगली में जन्मी बुला को बचपन से ही तैराकी का शौक था, लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी। समुद्री पानी से एलर्जी और कान में इंफेक्शन की समस्या के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

    उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, पद्मश्री और तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड से सम्मानित किया है। बुला चौधरी न केवल एक महान एथलीट हैं, बल्कि वह लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं, जो सीमित संसाधनों के बीच अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं।

    गांव के पानी से समुद्र के सपने तक का सफर-

    1970 में पश्चिम बंगाल के हुगली में जन्मी बुला का पानी से पहला नाता तीन साल की उम्र में अपने पिता के मार्गदर्शन में शुरू हुआ। घर के पास के तालाब, स्थानीय नदियां और बाद में स्विमिंग पूल, सभी उनका खेल का मैदान बन गए। लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था। डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी, कि उन्हें समुद्र के खारे पानी से एलर्जी है, हां आप सही सुन रहे हैं, उन्हें सी वॉटर से एलर्जी थी। फिर भी उन्होंने अपने पैशन को छोड़ने से इनकार कर दिया।

    उनका बचपन चुनौतियों से भरा था। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके एक कान में छेद था, जिससे बार-बार इंफेक्शन होता था। डॉक्टरों ने उन्हें पानी से दूर रहने की सलाह दी, लेकिन बुला ने हार नहीं मानी। उनकी पहली बड़ी कामयाबी तब मिली, जब वह सिर्फ नौ साल की थीं। अपनी पहली नेशनल कॉम्पिटिशन में उन्होंने अपनी एज ग्रुप में छह इवेंट्स में छह गोल्ड मेडल जीते। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। एक छोटी सी बच्ची जो गांव में कॉटन की फ्रॉक पहनकर तैरना सीख रही थी, वह अचानक देश की नजरों में आ गई।

    लॉन्ग डिस्टेंस और ओपन वॉटर स्विमिंग-

    टीनेज में पहुंचते-पहुंचते बुला बटरफ्लाई और फ्रीस्टाइल इवेंट्स में रिकॉर्ड्स तोड़ रही थीं। समय के साथ उनकी महत्वाकांक्षाएं स्विमिंग पूल से निकलकर खुले समुद्रों तक फैल गईं। 1989 में उन्होंने इंग्लिश चैनल तैर कर पार किया, जिसे ओपन वॉटर स्विमिंग का “माउंट एवरेस्ट” माना जाता है। यह कोई आसान काम नहीं था, लेकिन बुला ने इसे अंजाम दिया और फिर 1999 में उन्होंने इसे दोबारा किया।

    2005 में उन्होंने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल की। वह पांच महाद्वीपों में समुद्री चैनलों को तैरकर पार करने वाली पहली महिला बन गईं और इस तरह उन्हें “सात समुद्र पार करने वाली पहली महिला” का खिताब मिला। उनकी उल्लेखनीय स्विम्स में शामिल हैं, स्ट्रेट ऑफ जिब्राल्टर, टायरेनियन सागर, कुक स्ट्रेट, कैटालिना चैनल और केप टाउन के पास थ्री एंकर बे से रॉबेन आइलैंड तक का सफर। 2004 में उन्होंने पाक स्ट्रेट को पार करते हुए तलाईमन्नार श्रीलंका से धनुषकोडी तमिलनाडु तक लगभग 30 किलोमीटर की दूरी करीब 14 घंटे में तैरकर पूरी की।

    इन सभी उपलब्धियों के पीछे एक बड़ी सच्चाई थी, जिसे बुला हमेशा छुपा नहीं सकती थीं। हर बार जब वह समुद्र में उतरती थीं, उनकी त्वचा जलने लगती थी। खारे पानी से एलर्जी की वजह से उन्हें पूरी रात खुजली और दर्द सहना पड़ता था। लेकिन वह हार मानने वाली नहीं थीं। उनके अपने शब्दों में, “मेरी त्वचा जलती थी और पूरी रात खुजली होती थी, लेकिन मैं इसे अपने रास्ते में रुकावट नहीं बनने देना चाहती थी।”

    सम्मान, पुरस्कार और उससे आगे-

    बुला की शानदार उपलब्धियां अनदेखी नहीं रहीं। 1990 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और बाद में पद्मश्री से भी नवाजा गया। 2002 में उन्हें तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड भी मिला। यह सम्मान उनकी मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प का प्रतीक थे।

    बुला ने केवल स्विमिंग पूल और समुद्र तक अपने आप को सीमित नहीं रखा। बाद में उन्होंने पब्लिक लाइफ में भी कदम रखा। 2006 से 2011 तक वह पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्य रहीं और नंदनपुर का प्रतिनिधित्व किया। इससे पता चलता है, कि वह न केवल एक महान एथलीट थीं, बल्कि समाज सेवा में भी उनकी गहरी रुचि थी।

    क्या बनाता है उनकी यात्रा को इतना असाधारण?

    बुला की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो परिस्थितियों से लड़ रहा है। उनकी जिंदगी में ऐसी कई चीजें थीं, जो किसी और को हार मानने पर मजबूर कर देतीं। समुद्र के खारे पानी से एलर्जी का मतलब था, कि हर बार तैरने के बाद उन्हें जलन और असहनीय खुजली का सामना करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। एक छोटे से गांव में सीमित संसाधनों के साथ बड़ी होना, जहां कभी-कभी प्रोपर स्विमवियर भी उपलब्ध नहीं था, वहां से शुरुआत करके वह दुनिया भर में अपना नाम रोशन करने निकलीं।

    कान में छेद की वजह से बार-बार होने वाले इंफेक्शन ने उन्हें कभी पीछे नहीं हटाया। हर चुनौती ने उनके दृढ़ संकल्प को और मजबूत किया। पूल कॉम्पिटिशन हो, लॉन्ग डिस्टेंस स्विम हो, ईयर इंफेक्शन हो या साल्ट वॉटर की रिएक्शन, सबने उनके अंदर की फाइटर को और मजबूत बनाया।

    बुला ने सिर्फ भारतीय समुद्रों में ही नहीं तैरा। उन्होंने पांच महाद्वीपों और कई आइकॉनिक चैनलों में अपनी छाप छोड़ी। उनकी ग्लोबल रीच ने उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय स्टार बनाया। आज भी वह कोचिंग के जरिए और एक रोल मॉडल के रूप में युवा तैराकों को प्रेरित करती हैं, खासकर भारत में।

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    उनके अपने शब्दों में-

    बुला चौधरी कहती हैं, “कहते हैं पानी ही जीवन है और यह बात मेरे लिए प्रोफेशनली भी सच है।” उनका यह कथन उनकी पूरी जिंदगी को बयान करता है। एक ऐसी महिला जिसने असुविधा को गले लगाया, आसानी की जगह दृढ़ता को चुना और अपने परिवेश से बड़ा सपना देखने की हिम्मत की।

    उनकी कहानी हर उस लड़की और लड़के के लिए है जो सोचते हैं, कि उनकी परिस्थितियां उन्हें सफल नहीं होने देंगी। बुला चौधरी ने साबित किया, कि अगर इरादे बुलंद हों और दिल में जुनून हो, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। वह भारत की पहली महिला हैं, जिन्होंने सात समुद्रों को पार किया और उनकी यह उपलब्धि हमेशा इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखी रहेगी।

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