Sikander Film Boycott
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    Sikander Film Boycott: मुंबई के वकील और कार्यकर्ता शेख फैयाज आलम ने इस ईद पर ए आर मुरुगदोस की फिल्म 'सिकंदर' का बहिष्कार करने की अपील की है। उन्होंने निर्देशक के पिछले काम, विशेष रूप से फिल्म 'थुप्पक्की' में इस्लामोफोबिक तत्वों का हवाला दिया है।

    Sikander Film Boycott मनोरंजन नहीं, मानवता का समय-

    "यह उत्सव मनाने का समय नहीं, बल्कि त्याग का समय है," आलम कहते हैं। उनका मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में, मुसलमानों को मनोरंजन पर खर्च करने के बजाय गाजा में मानवीय सहायता, मुस्लिम शिक्षा, कानूनी सहायता और राजनीतिक सशक्तिकरण में निवेश करना चाहिए। आलम ने कहा, "जब गाजा में हमारे भाई-बहन अभूतपूर्व संकट से गुजर रहे हैं, तो क्या सिनेमाघरों में जाकर मनोरंजन करना उचित है? हमें अपने संसाधनों का उपयोग समुदाय को मजबूत करने और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए करना चाहिए।"

    Sikander Film Boycott वक़्फ़ संशोधन विधेयक की चिंता-

    आलम ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक पर भी चिंता व्यक्त की, जिसे संसद में पेश किया जाना है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे नेता मुसलमानों के साथ खड़े होंगे या उन्हें धोखा देंगे। "वक़्फ़ संपत्तियों पर हमला मुस्लिम पहचान और संस्कृति पर हमला है," उन्होंने कहा। "हमें अपने समुदाय के लिए लड़ने वाले नेताओं का समर्थन करना चाहिए और उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहिए जो हमारे हितों की रक्षा नहीं करते।"

    Sikander Film Boycott इज़राइली उत्पादों का बहिष्कार-

    अपने संबोधन में, आलम ने इज़राइली उत्पादों के बहिष्कार का भी आह्वान किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि फिलिस्तीन की रक्षा करना इस्लाम की रक्षा करना है। "हमें समझना होगा कि हमारी खरीदारी के निर्णय राजनीतिक बयान हैं," उन्होंने कहा। "जब हम इज़राइली उत्पाद खरीदते हैं, तो हम अप्रत्यक्ष रूप से उन नीतियों का समर्थन करते हैं जो हमारे भाई-बहनों को नुकसान पहुंचाती हैं।"

    'सिकंदर' फिल्म विवाद-

    'सिकंदर' फिल्म, जिसमें सलमान खान मुख्य भूमिका में हैं, इस ईद पर रिलीज होने वाली है। लेकिन निर्देशक ए आर मुरुगदोस के पिछले काम, विशेष रूप से 'थुप्पक्की' में मुस्लिम पात्रों के चित्रण ने समुदाय में नाराजगी पैदा की है। "'थुप्पक्की' में आतंकवादियों को एकतरफा मुस्लिम के रूप में दिखाया गया था, जो एक खतरनाक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देता है," आलम ने विस्तार से बताया। "ऐसे निर्देशकों को समर्थन देकर, हम उन कहानियों को प्रोत्साहित करते हैं जो हमारे समुदाय को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।"

    समुदाय के लिए आह्वान-

    आलम ने मुस्लिम समुदाय से सामूहिक कार्रवाई करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में एकजुटता और लक्षित निवेश की आवश्यकता है। "हमें अपनी प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करना होगा," उन्होंने कहा। "हमारे बच्चों के लिए शिक्षा, न्याय तक पहुंच और राजनीतिक प्रतिनिधित्व - ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां हमारे संसाधनों की सबसे अधिक आवश्यकता है।" उन्होंने समुदाय से गाजा में मानवीय संकट के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने का भी आह्वान किया। "हमारी आवाज और हमारी क्रियाएं महत्वपूर्ण हैं," उन्होंने कहा।

    बॉलीवुड और सामाजिक जिम्मेदारी-

    आलम के आह्वान ने फिल्म उद्योग और सामाजिक जिम्मेदारी पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। कई समीक्षकों ने तर्क दिया है कि फिल्म निर्माताओं को अपने काम के सामाजिक प्रभाव के प्रति अधिक जागरूक होना चाहिए। "बॉलीवुड की बहुत बड़ी पहुंच है, और इसके साथ बड़ी जिम्मेदारी आती है," फिल्म समीक्षक रशीद खान कहते हैं। "समुदायों को एकतरफा या रूढ़िवादी तरीके से चित्रित करना, विशेष रूप से वर्तमान राजनीतिक माहौल में, बेहद प्रॉब्लेमैटिक है।"

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    क्या फिल्मों का बहिष्कार प्रभावी है?

    हालांकि, कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या फिल्मों का बहिष्कार वास्तव में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। कुछ का मानना है कि संवाद और आलोचनात्मक जुड़ाव अधिक प्रभावी हो सकता है। "बहिष्कार से जागरूकता बढ़ सकती है, लेकिन यह फिल्म निर्माताओं के साथ बातचीत को सीमित भी कर सकता है," मीडिया विशेषज्ञ सारा शेख कहती हैं। "शायद हमें उद्योग के भीतर अधिक प्रतिनिधित्व और विविधता के लिए पैरवी करने की आवश्यकता है।" इस बीच, 'सिकंदर' के निर्माताओं ने अभी तक इन आरोपों पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह देखना बाकी है कि क्या यह बहिष्कार आह्वान फिल्म के प्रदर्शन को प्रभावित करेगा।

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