West Bengal Name Change: राज्यसभा में एक बार फिर पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर 'बांग्ला' करने की मांग उठी है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद रितब्रत बनर्जी ने 4 फरवरी को सदन में यह मुद्दा उठाते हुए कहा, कि राज्य की जनता की भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। यह मामला पिछले कई वर्षों से लंबित है, जिस पर अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।
West Bengal Name Change ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति-
पश्चिम बंगाल विधानसभा ने जुलाई 2018 में राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस बदलाव की मांग की थी। उनका कहना था कि यह बदलाव राज्य की संस्कृति, इतिहास और पहचान के अनुरूप होगा। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से अभी तक इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली है।
West Bengal Name Change नाम परिवर्तन का इतिहास-
भारत में राज्यों और शहरों के नाम बदलने का सिलसिला नया नहीं है। 2011 में उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा किया गया। इससे पहले कई प्रमुख शहरों के नाम बदले गए - 1995 में बॉम्बे का मुंबई, 1996 में मद्रास का चेन्नई, 2001 में कलकत्ता का कोलकाता और 2014 में बैंगलोर का बेंगलुरु। हाल ही में उत्तर प्रदेश में भी कई स्थानों के नाम बदले गए हैं, जैसे मुगलसराय का पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर, इलाहाबाद का प्रयागराज और फैजाबाद जिले का अयोध्या।
बंगाल विभाजन और नाम की कहानी-
"पश्चिम बंगाल" नाम की कहानी 1905 के बंगाल विभाजन से जुड़ी है। ब्रिटिश शासन ने बंगाल को धार्मिक आधार पर दो भागों में बांटा - पूर्वी बंगाल (मुस्लिम बहुल) और पश्चिमी बंगाल (हिंदू बहुल)। हालांकि 1911 में यह विभाजन रद्द कर दिया गया, लेकिन "पश्चिम बंगाल" नाम बना रहा।
1947 में एक बार फिर बंगाल का विभाजन हुआ। भारतीय हिस्सा पश्चिम बंगाल बना, जबकि दूसरा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान ने स्वतंत्रता प्राप्त की और बांग्लादेश का जन्म हुआ।
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नाम परिवर्तन की ज़रुरत-
कई लोगों का मानना है कि "पश्चिम बंगाल" नाम अब प्रासंगिक नहीं रह गया है, क्योंकि "पूर्वी बंगाल" अब मौजूद नहीं है (फुटबॉल को छोड़कर)। इसके अलावा, एक व्यावहारिक कारण भी है। प्रशासनिक बैठकों में वर्णमाला क्रम के कारण पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों को अक्सर अंत में बोलने का मौका मिलता है, जब श्रोता लंबी बैठकों से थक चुके होते हैं।
नाम परिवर्तन की यह मांग केवल भावनात्मक नहीं है, बल्कि इसके पीछे व्यावहारिक कारण भी हैं। टीएमसी का कहना है कि यह बदलाव राज्य की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मदद करेगा। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस मांग पर क्या निर्णय लेती है।
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