Delhi Air Pollution
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    Delhi Air Pollution: दिल्ली की हवा एक बार फिर जहर बनकर लोगों की सांसों को घोंट रही है। शुक्रवार को राजधानी की हवा और भी जहरीली हो गई, जब कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी AQI ‘severe’ यानी गंभीर श्रेणी से नीचे गिर गया। सबसे चौंकाने वाली बात यह है, कि दिल्ली-NCR के लगभग 80 प्रतिशत परिवारों में पिछले एक महीने में कम से कम एक व्यक्ति जहरीली हवा के कारण बीमार पड़ा है। यह आंकड़े किसी आपदा से कम नहीं हैं और इन्हें देखते हुए विशेषज्ञों ने इसे ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ करार दिया है।

    एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अब इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, कि प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि जीवन प्रत्याशा यानी उम्र को भी घटाता है। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि हालांकि मास्क और एयर प्यूरिफायर कुछ हद तक सुरक्षा देते हैं, लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए साल भर की पॉलिसी में बदलाव की सख्त जरूरत है। न कि सिर्फ सर्दियों में हड़कंप मचाने की।

    लगातार आठवें दिन ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दिल्ली की हवा-

    अंग्रज़ी समाचार वेबसाइट हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक, शुक्रवार सुबह 9 बजे दिल्ली का 24 घंटे का औसत AQI 370 दर्ज किया गया, जो सरकारी समीर ऐप के अनुसार है। यह लगातार आठवां दिन है जब दिल्ली का AQI ‘very poor’ यानी बहुत खराब श्रेणी में बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, बुधवार को AQI स्तर 392, मंगलवार को 374 और सोमवार को 351 था, जो सप्ताह भर में तेज वृद्धि को दर्शाता है। यानी हालात सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।

    सबसे चिंताजनक बात यह है, कि 18 से अधिक मॉनिटरिंग स्टेशनों पर AQI 400 से ऊपर पहुंच गया। इनमें चांदनी चौक, आनंद विहार, मुंडका, बवाना, नरेला, DTU और वजीरपुर जैसे इलाके शामिल हैं। इनमें से कई स्टेशनों पर AQI लगातार 400-450 की रेंज को पार कर रहा है। यह वह संख्या है जहां सांस लेना भी खतरनाक हो जाता है।

    आने वाले दिनों में और बिगड़ेंगे हालात-

    पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम ने बताया है, कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता ‘severe’ यानी गंभीर श्रेणी में फिसलने की उम्मीद है और अगले छह दिनों तक ‘very poor’ से ‘severe’ जोन में बनी रह सकती है। इसकी मुख्य वजह ठहरी हुई हवाएं और सर्दियों का इन्वर्जन यानी वह मौसम की स्थिति है जब ठंडी हवा जमीन के पास फंस जाती है और प्रदूषण को और गाढ़ा बना देती है।

    प्रदूषण का कारण क्या है?

    IIT मौसम विज्ञान विभाग के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम ने अनुमान लगाया कि गुरुवार को वाहनों के उत्सर्जन ने PM2.5 प्रदूषण में 17.3 प्रतिशत का योगदान दिया, जबकि पराली जलाने का योगदान 2.8 प्रतिशत था। शुक्रवार के लिए इनके क्रमशः 16.2 प्रतिशत और 1.8 प्रतिशत तक थोड़ा कम होने की उम्मीद है। हालांकि सैटेलाइट डेटा ने बुधवार को पंजाब में 16, हरियाणा में 11 और उत्तर प्रदेश में 115 खेतों में आग का पता लगाया। संख्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन सर्दियों की ठहरी परिस्थितियों में यह पृष्ठभूमि प्रदूषण को बढ़ाने के लिए काफी है।

    AIIMS के डॉक्टरों ने बजाई खतरे की घंटी-

    एम्स के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण अब ‘मेडिकल इमरजेंसी’ के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है, और अस्पतालों में श्वसन और प्रदूषण से जुड़े मामलों में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है। एम्स के डॉक्टर अनंत मोहन ने कहा कि यहां का प्रदूषण बिल्कुल गंभीर और जानलेवा है। यह स्थिति पिछले दस साल से चल रही है। हम हर बार कुछ करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वास्तविकता में जमीनी स्तर पर मुझे ज्यादा बदलाव नजर नहीं आता। जिम्मेदार एजेंसियों को समय के साथ कठोर कदम उठाने चाहिए।

    डॉ मोहन ने आगे कहा कि अब यह सिर्फ श्वसन तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह अन्य अंगों को भी प्रभावित कर रहा है। कई लोग जीवन के लिए खतरनाक स्थितियों का सामना कर रहे हैं। आउट पेशेंट और इमरजेंसी रूम दोनों में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है। कई लोगों को तो वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ रहा है। इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की तरह treat किया जाना चाहिए।

    डॉ मोहन ने बताया कि प्रदूषण दिल, दिमाग, मानसिक स्वास्थ्य यानी हर शारीरिक प्रणाली को नुकसान पहुंचाता है। यह गर्भ में पल रहे बच्चों और बुजुर्गों को प्रभावित करता है। अब हमारे पास स्पष्ट सबूत हैं कि यह जीवन प्रत्याशा को कम करता है। वार्ड घरघराहट, सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और तेजी से बिगड़ते COPD से पीड़ित लोगों से भरे पड़े हैं।

    एम्स के डॉ सौरभ मित्तल ने कहा कि दिल्ली एक बड़ी गलती करती है जब वह प्रदूषण को सिर्फ नवंबर का मुद्दा मानती है। पानी के स्प्रिंकलर और सड़क पर छिड़काव केवल मामूली लाभ प्रदान करते हैं। शहर को साल भर की कार्रवाई की जरूरत है, न कि मौसमी घबराहट की।

    क्या मास्क और एयर प्यूरिफायर से बचाव हो सकता है?

    डॉक्टरों ने जोर देकर कहा कि मास्क और प्यूरिफायर सीमित व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान करते हैं और सिस्टमेटिक समाधान की जगह नहीं ले सकते। यानी व्यक्तिगत स्तर पर आप कुछ भी कर लें, असली समाधान तो नीतिगत बदलाव में ही है।

    80 प्रतिशत घरों में कोई न कोई बीमार-

    LocalCircles के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि दिल्ली-NCR में 10 में से 8 परिवारों में पिछले एक महीने में कम से कम एक सदस्य जहरीली हवा के कारण बीमार पड़ा। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 36 प्रतिशत परिवारों में चार या अधिक सदस्यों को श्वसन या प्रदूषण से जुड़े लक्षणों का सामना करना पड़ा। निवासी लगातार खांसी, आंखों में जलन, सिरदर्द, कंजेशन और बढ़ी हुई अस्थमा की रिपोर्ट कर रहे हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में रहना किसी धीमे जहर के बीच जीने के बराबर हो गया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने भी उठाई आवाज-

    इस हफ्ते की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने CAQM यानी वायु गुणवत्ता आयोग से आग्रह किया, कि वह नवंबर-दिसंबर के लिए नियोजित स्कूल स्पोर्ट्स इवेंट्स को टालने पर विचार करे। कोर्ट ने कहा कि अभी आउटडोर गतिविधियां करवाना बच्चों को गैस चैंबर में ट्रेनिंग करवाने जैसा है। कोर्ट ने वायु प्रदूषण शमन की मासिक निगरानी पर भी जोर दिया और राज्यों से पराली जलाने पर CAQM के दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करने को कहा।

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    लोगों में बढ़ रहा गुस्सा, सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी-

    छोटे बच्चों और माता-पिता सहित निवासी इंडिया गेट और जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और तत्काल सरकारी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। कई लोगों ने कहा कि बिगड़ता प्रदूषण और साल भर की राजनीतिक निष्क्रियता ने उन्हें सड़कों पर उतरने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा। प्रदर्शनकारियों ने शिकायत की कि GRAP के तहत प्रतिबंध मजदूरों को कड़ी टक्कर देते हैं, लेकिन खराब प्रवर्तन और दीर्घकालिक योजना की कमी के कारण प्रदूषण उच्च बना हुआ है।

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    दिल्ली की हवा अब सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं रह गई है, यह एक मानवीय त्रासदी बन चुकी है। जब तक सरकार और नागरिक मिलकर साल भर की ठोस योजना नहीं बनाते, तब तक हर सर्दी में यही कहानी दोहराई जाती रहेगी।