Delhi Mid-Day Meal
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    Delhi Mid-Day Meal: दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों के लिए एक अच्छी खबर है। दिल्ली सरकार ने इस शैक्षणिक सत्र के लिए मिड-डे मील के मेन्यू में बड़ा बदलाव किया है। अब बच्चों को सिर्फ पूरी-सब्ज़ी या चावल-दाल नहीं, बल्कि मिलेट यानी मोटे अनाज से बने पौष्टिक व्यंजन भी मिलेंगे। ये बदलाव बच्चों की सेहत को ध्यान में रखते हुए किया गया है, ताकि उन्हें ज्यादा न्यूट्रिशन मिल सके और वो स्वस्थ रहें।

    डायरेक्टोरेट ऑफ एजुकेशन यानी शिक्षा निदेशालय ने बताया है, कि नया मेन्यू सिक्स-डे रोटेशन पर चलेगा। इसका मतलब है, कि हर छह दिन में मेन्यू बदलता रहेगा और बच्चों को अलग अलग तरह के खाने का मज़ा आएगा। इस नए मेन्यू में रागी और गेहूं के आटे से बना हलवा मसाला चना के साथ, सीज़नल मिलेट बेस्ड दलिया जैसे डिशेज़ शामिल होंगी।

    फूड सेफ्टी को लेकर सख्त रुख-

    पिछले कुछ समय में मिड-डे मील को लेकर कई चिंताजनक घटनाएं सामने आई थीं। कुछ एनजीओ द्वारा सप्लाई किए गए खाने में छिपकली, कीड़े, फंगस या छोटे जानवर तक मिल गए थे। ये बात सुनने में ही कितनी भयानक लगती है और सोचिए उन मासूम बच्चों पर क्या बीतती होगी जो ऐसा खाना खाते हैं। इन घटनाओं ने माता-पिता और शिक्षकों के बीच गंभीर चिंता पैदा की थी।

    इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा निदेशालय ने साफ कहा है, कि मिड-डे मील स्कीम एक संवेदनशील मामला है। क्योंकि इसका सीधा संबंध बच्चों की सेहत से है। डिपार्टमेंट ने कहा, कि अगर किसी स्कूल के प्रिंसिपल ने रिपोर्ट किया, कि खाने में कोई कंटैमिनेशन यानी मिलावट या गंदगी है, तो वो तुरंत उस एनजीओ या सप्लायर के साथ समझौता खत्म कर देंगे। ये कदम बिल्कुल सही है क्योंकि बच्चों की सेहत से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

    न्यूट्रिशन स्टैंडर्ड्स पर कोई छूट नहीं-

    डायरेक्टोरेट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जो भी संगठन या एनजीओ खाना सप्लाई कर रहे हैं उन्हें प्रिस्क्राइब्ड कैलोरी, प्रोटीन और माइक्रोन्यूट्रिएंट नॉर्म्स को स्ट्रिक्टली फॉलो करना होगा। इसका मतलब है, कि खाने में कितनी कैलोरी, कितना प्रोटीन और कौन-कौन से विटामिन्स और मिनरल्स होने चाहिए, ये सब तय है और इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। अप्रूव्ड डिशेज़ को भी बिना परमिशन के बदला नहीं जा सकता। ये नियम इसलिए बनाए गए हैं ताकि बच्चों को बराबर और सही पोषण मिलता रहे।

    मिलेट का महत्व और फायदे-

    मिलेट यानी मोटे अनाज जैसे रागी, बाजरा, ज्वार जैसे अनाजों को भारतीय खानपान में सदियों से इस्तेमाल किया जाता रहा है। हमारे दादा-दादी के ज़माने में ये रोज़ाना खाने का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन धीरे धीरे गेहूं और चावल ने इनकी जगह ले ली। अब फिर से लोग मिलेट की तरफ लौट रहे हैं, क्योंकि ये सुपरफूड हैं। मिलेट में फाइबर, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और दूसरे ज़रूरी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। ये बच्चों की हड्डियों को मजबूत बनाते हैं, दिमाग को तेज़ करते हैं और एनर्जी देते हैं। इसलिए स्कूल के मेन्यू में इनका शामिल होना एक बेहतरीन फैसला है।

    अधिकारियों ने कहा कि मिलेट से बने व्यंजन रेगुलर गेहूं और चावल से बनी डिशेज़ के साथ सर्व किए जाएंगे ताकि हफ्ते भर का मेन्यू बैलेंस्ड और वैराइड रहे। इससे बच्चों को अलग अलग तरह के खाने का स्वाद भी मिलेगा और उन्हें बोरियत भी नहीं होगी।

    पुराने मेन्यू में क्या होता था-

    शिक्षा निदेशालय के मुताबिक, पिछले सालों में मिड-डे मील में ज्यादातर आटे या बेसन की पूरी आलू की सब्ज़ी या मिक्स वेजिटेबल के साथ, पूरी छोले के साथ, वेजिटेबल पौष्टिक दलिया और चावल छोले, सांभर या कढ़ी के साथ दिया जाता था। एनजीओ कभी कभी सीज़नल फ्रूट्स, खीर या बिस्किट भी बांटते थे। ये सब तो अच्छा था लेकिन हर दिन वही चीज़ें मिलने से बच्चे बोर हो जाते थे और कई बार पूरा खाना नहीं खाते थे।

    इस बैकग्राउंड में मिलेट बेस्ड डिशेज़ का शामिल होना एक सिग्निफिकेंट एडिशन यानी महत्वपूर्ण जोड़ है। अधिकारियों ने कहा कि ये सिर्फ एक बदलाव नहीं बल्कि बच्चों के पोषण को बेहतर बनाने की दिशा में एक ब्रॉडर एफर्ट यानी बड़ी कोशिश का हिस्सा है।

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    मिड-डे मील का महत्व-

    मिड-डे मील स्कीम सिर्फ खाना देने की योजना नहीं है। ये गरीब बच्चों को स्कूल में रोकने का एक ज़रिया भी है। बहुत से बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जहां घर में ढंग का खाना नहीं मिल पाता। स्कूल में मिलने वाला खाना उनके लिए दिन का मुख्य भोजन होता है। अगर स्कूल में अच्छा खाना मिले तो माता-पिता भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। इससे एजुकेशन रेट बढ़ती है और बच्चों का फ्यूचर बनता है।

    इसलिए मिड-डे मील की क्वालिटी और न्यूट्रिशन पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। दिल्ली सरकार का ये कदम सराहनीय है और उम्मीद है कि दूसरे राज्य भी इससे प्रेरणा लेंगे और अपने यहां भी बच्चों के खाने में सुधार करेंगे। बच्चे देश का भविष्य हैं और अगर हम उन्हें सही पोषण देंगे तो वो स्वस्थ और मजबूत बनेंगे और देश को आगे ले जाएंगे।

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