Paush Putrada Ekadashi 2025
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    Paush Putrada Ekadashi 2025: सनातन धर्म में अनेक व्रत और त्योहार हैं, जो हमारे जीवन में खुशियां और समृद्धि लाते हैं। इनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, पौष पुत्रदा एकादशी, जो विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए वरदान समान है, जो संतान सुख की कामना करते हैं। यह व्रत न केवल संतान प्राप्ति में सहायक माना जाता है, बल्कि परिवार में शांति, समृद्धि और सुख-सौभाग्य भी लाता है। पौष माह की यह एकादशी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है और इसे अत्यंत फलदायी माना जाता है।

    पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व और विशेषता-

    हिंदू शास्त्रों में एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का सबसे प्रिय दिन बताया गया है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है, एक बार श्रावण मास में और दूसरी बार पौष मास में। दोनों ही एकादशी अपने आप में बेहद खास हैं, लेकिन पौष माह की पुत्रदा एकादशी को विशेष महत्व दिया जाता है क्योंकि यह अत्यंत शुभ और पवित्र माह में पड़ती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को करने से पिछले जन्मों के पाप धुल जाते हैं और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

    पौष पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि और मुहूर्त-

    हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में पौष पुत्रदा एकादशी 30 दिसंबर 2025 को सुबह 7 बजकर 50 मिनट पर शुरू होगी और 31 दिसंबर 2025 को सुबह 5 बजे समाप्त होगी। व्रत रखने के लिए दो परंपराएं प्रचलित हैं जिन्हें भक्त अपनी आस्था और परंपरा के अनुसार फॉलो करते हैं। सामान्य रूप से व्रत रखने वालों के लिए यह व्रत 30 दिसंबर को रखा जाएगा, जबकि वैष्णव परंपरा का पालन करने वाले भक्तों के लिए एकादशी का व्रत 31 दिसंबर को होगा।

    पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि-

    पौष पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। पवित्र स्नान के बाद साफ और शुद्ध वस्त्र धारण करें। फिर दृढ़ संकल्प लेकर व्रत का आरंभ करें। संकल्प लेना बहुत जरूरी है क्योंकि यह हमारे मन को एकाग्र करता है और व्रत की पवित्रता बनाए रखने में मदद करता है। संकल्प लेते समय अपने मन में भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत रखने का उद्देश्य स्पष्ट करें।

    भगवान विष्णु की पूजा के लिए पीले चंदन, रोली, अक्षत, पीले फूल, फल और मिठाई का उपयोग करना चाहिए। पीला रंग इस दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह शुभता, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। घी का दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि घी की लौ नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और घर में सकारात्मकता लाती है। आरती करते समय पूरे मन से भगवान का आह्वान करें और उनसे अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें।

    व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें-

    पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत में केवल उपवास रखना ही काफी नहीं है, बल्कि मन की शुद्धता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। पूरे दिन भर अपने मन को शुद्ध और सकारात्मक रखना चाहिए। क्रोध, कपट, ईर्ष्या, निंदा या किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए। याद रखें कि भगवान हमारे मन की भावनाओं को देखते हैं, इसलिए केवल बाहरी पूजा-पाठ करना काफी नहीं है। मन से सच्चे भक्त बनें और हर किसी के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखें।

    इस दिन झूठ बोलना, किसी को ठेस पहुंचाना, किसी की बुराई करना या कोई भी ऐसा कार्य करना जो अनैतिक हो, बिल्कुल वर्जित है। सात्विक आचरण करें और सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। यदि पूर्ण उपवास रखना संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं, लेकिन अनाज और दालों से बिल्कुल दूर रहना चाहिए। संभव हो तो पूरे दिन भगवान विष्णु के भजन सुनें या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इससे मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।

    व्रत के लाभ और आशीर्वाद-

    पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत सच्चे मन और श्रद्धा से करने पर अद्भुत परिणाम देता है। यह व्रत न केवल संतान प्राप्ति में सहायक है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि और प्रगति लाता है। इस व्रत से पिछले जन्मों के कर्मों का नाश होता है और वर्तमान जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।

    पौष पुत्रदा एकादशी की कथा का महत्व-

    व्रत के दिन पौष पुत्रदा एकादशी की कथा सुनना या पढ़ना भी बहुत महत्वपूर्ण है। कथा हमें व्रत के महत्व को समझाती है और हमारी आस्था को मजबूत करती है। इस कथा में बताया गया है कि कैसे इस व्रत को करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति हुई और उनके जीवन में खुशियां आईं। कथा सुनने से मन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और विश्वास दृढ़ होता है कि भगवान हमारी सुनते हैं और हमारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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    समापन और आशीर्वाद-

    पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा देने और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है। यह व्रत हमें सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा, विश्वास और पवित्रता से की गई आराधना कभी निष्फल नहीं जाती। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से न केवल संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि आती है। इस बार 30 दिसंबर को आने वाली इस पवित्र एकादशी को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से मनाएं और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करें। याद रखें कि मन की पवित्रता और सच्ची भक्ति ही इस व्रत की असली शक्ति है।

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