Cough Syrup Death
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    Cough Syrup Death: राजस्थान में पिछले कुछ दिनों से एक ऐसी खबर आ रही है, जो हर माता-पिता के दिल को दहला देने वाली है। एक साधारण खांसी की दवा जो बच्चों को राहत देने के लिए दी जाती है, वही दवा कई मासूमों की जान की दुश्मन बन गई है। पिछले पांच से छह दिनों में भरतपुर से लेकर सीकर और जयपुर से लेकर बांसवाड़ा तक, राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ने के मामले सामने आए हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है, कि इन सभी मामलों में एक चीज कॉमन है और वह है डेक्सट्रोमिथोरफन कफ सिरप।

    मासूमों की मौत का सिलसिला-

    अंग्रेज़ी समाचार वेबसाइट न्यूज़पॉइंट के मुताबिक, परिवार के लोगों का दावा है, कि सरकारी अस्पतालों और क्लिनिक्स से मिली इस खांसी की दवा का सेवन करने के बाद ही बच्चों की हालत गंभीर हो गई। सीकर और भरतपुर में तो दो मासूमों ने अपनी जान तक गंवा दी। इन नन्हीं जानों की उम्र 6 साल से भी कम थी। जयपुर में कई बच्चों की तबीयत बिगड़ी और बांसवाड़ा में आठ बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इन सभी बच्चों की उम्र 5 साल से कम बताई जा रही है। इस पूरे मामले ने स्वास्थ्य विभाग को हिलाकर रख दिया है और सरकार ने तत्काल प्रभाव से इस कफ सिरप की सप्लाई रोक दी है।

    क्या यह दवा बच्चों के लिए सुरक्षित है?

    अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है, कि आखिर यह दवा बच्चों के लिए सुरक्षित है भी या नहीं? जब इन सभी मामलों का विश्लेषण करते हैं, तो एक बात साफ हो जाती है, कि ज्यादातर पीड़ित 6 साल से कम उम्र के बच्चे हैं। मेडिकल रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है, कि कुछ मामलों में बच्चों को सांस लेने में दिक्कत हुई और रेस्पिरेटरी फेलियर भी हुआ। यह स्थिति किसी भी माता-पिता के लिए सबसे बुरे सपने से कम नहीं है। मेडिकल डिपार्टमेंट ने हालांकि इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बना दी है, लेकिन सवाल यह है, कि क्या यह कदम बहुत देर से नहीं उठाया गया?

    मध्य प्रदेश में-

    दिल्ली का 2021 का मामला: दिल्ली में भी 2021 में इसी डेक्सट्रोमिथोरफन कफ सिरप से तीन बच्चों की मौत हो गई थी, जिसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे बच्चों पर इस्तेमाल करने से बैन कर दिया था।

    दिल्ली में बैन, राजस्थान में इस्तेमाल क्यों?

    अब यहां सबसे गंभीर और चिंताजनक सवाल सामने आता है। साल 2021 में दिल्ली के कलावती सरन चिल्ड्रन हॉस्पिटल में एक दर्दनाक घटना हुई थी। वहां सोलह बच्चे इसी डेक्सट्रोमिथोरफन कफ सिरप का सेवन करने के बाद बीमार पड़ गए थे। इनमें से तीन मासूमों ने तो दम ही तोड़ दिया। इस घटना के बाद जांच हुई और पता चला, कि बच्चों की मौत डेक्सट्रोमिथोरफन कफ सिरप पॉइजनिंग के कारण हुई थी। तुरंत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज ने दिल्ली में बच्चों पर इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी।

    14 दिसंबर 2021 का वह खत-

    14 दिसंबर 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के डायरेक्टर ऑफ हेल्थ सर्विसेज को एक पत्र लिखा। इस पत्र में साफ-साफ लिखा गया था, कि तीन बच्चों की मौत की जांच में डेक्सट्रोमिथोरफन पॉइजनिंग का मामला सामने आया है। ऐसी स्थिति में दिल्ली सरकार के डीजीएचएस को निर्देश दिया गया, कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सभी डिस्पेंसरियों और मोहल्ला क्लीनिक्स को हिदायत दें, कि 4 साल से कम उम्र के बच्चों को डेक्सट्रोमिथोरफन कफ सिरप न दी जाए। साथ ही ओमेगा फार्मा द्वारा बनाई गई, इस दवा को जनहित में वापस मंगाने के भी आदेश दिए गए थे।

    राजस्थान के बच्चे अलग हैं क्या?

    अब सबसे बड़ा और सबसे दर्दनाक सवाल यह है, कि जब यह दवा दिल्ली में 4 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बैन कर दी गई थी, तो क्या राजस्थान के बच्चे दिल्ली के बच्चों से अलग हैं? क्या उनकी जान की कीमत कम है? यह सवाल सिर्फ राजस्थान सरकार से नहीं बल्कि पूरी हेल्थ सिस्टम से पूछा जाना चाहिए। आखिर क्यों इस बैनिंग लेटर को सिर्फ दिल्ली सरकार तक सीमित रखा गया? क्यों इसे पूरे देश में लागू नहीं किया गया? और अगर यह दवा दिल्ली में बच्चों के लिए खतरनाक थी, तो क्या राजस्थान के डॉक्टरों को अपनी मेडिकल प्रैक्टिस में इस बात का ध्यान नहीं रखना चाहिए था?

    सिस्टम पर उठते हैं कई सवाल-

    यह पूरी घटना हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करती है। सवाल यह है, कि क्या विभिन्न राज्यों के बीच मेडिकल इंफॉर्मेशन शेयरिंग का कोई सिस्टम नहीं है? क्या एक राज्य में हुई मेडिकल इमरजेंसी से दूसरे राज्य कोई सीख नहीं लेते? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अगर दिल्ली में इस दवा को बैन किया था, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए था, कि यह बैन पूरे देश में लागू हो। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजा हमारे सामने है। राजस्थान में दो मासूमों ने अपनी जान गंवा दी और कई अन्य बच्चे मौत के मुंह में जाते-जाते बचे।

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    माता-पिता के लिए चेतावनी-

    इस घटना से सभी माता-पिता को भी एक सीख लेनी चाहिए। बच्चों को कोई भी दवा देने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल करें। डॉक्टर से दवा का नाम, उसके साइड इफेक्ट्स और उम्र के हिसाब से उसकी उपयुक्तता के बारे में जरूर पूछें। अगर कोई दवा सरकारी डिस्पेंसरी या क्लिनिक से मिल रही है, तो यह मान लेना, कि वह पूरी तरह सुरक्षित है, एक बड़ी भूल हो सकती है। इस घटना ने यह साबित कर दिया है, कि कई बार सिस्टम में खामियां होती हैं और हमें अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए खुद सतर्क रहना होगा।

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