Trisha Thosar
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    Trisha Thosar: 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के बेहतरीन कलाकारों को सम्मानित किया, तो वहां मोहनलाल, शाहरुख खान, विकांत मैस्सी और रानी मुखर्जी जैसे बड़े नाम मौजूद थे। लेकिन असली चर्चा का विषय बनी एक छोटी सी 4 साल की बच्ची, जिसने अपनी मासूमियत और प्रतिभा से सबका दिल जीत लिया।

    छोटी सी परी ने मचाया धमाल-

    त्रिशा थोसर नाम की यह नन्ही सी कलाकार मराठी फिल्म ‘नाल 2’ से प्रसिद्ध हुई है। जब इस 4 साल की बच्ची को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का खिताब मिला, तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। समारोह के दौरान जब उद्घोषक ने त्रिशा का परिचय दिया तो कहा, “यह चार साल की बच्ची है, जिसकी सहजता, मासूमियत और अभिव्यक्ति की शक्ति ने कहानी को एक नई ऊंचाई दी है।” यह वाक्य सुनकर पूरे हॉल में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया और फिर जोरदार तालियां गूंज उठीं।

    सुनहरी साड़ी में दिखी छोटी राजकुमारी-

    पुरस्कार लेते वक्त त्रिशा ने एक खूबसूरत सुनहरी साड़ी पहनी थी। उसके माथे पर छोटी सी बिंदी और बालों में मोतियों की सजावट देखकर लग रहा था, जैसे कोई छोटी सी परी धरती पर उतर आई हो। जब राष्ट्रपति मुर्मू ने उसे पुरस्कार दिया, तो त्रिशा ने बड़ी ही विनम्रता से झुककर सम्मान स्वीकार किया। इस पूरे समारोह की तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर तेजी से फैल गए हैं।

    कम उम्र, बड़ा हुनर-

    त्रिशा इस साल के सबसे कम उम्र के पुरस्कार विजेताओं में से एक बनी है। उसके साथ श्रीनिवास पोकले, भार्गव जगताप, कबीर खंडारे और सुकृति वेणी बंद्रेड्डी को भी पुरस्कार मिले हैं। लेकिन सबसे छोटी होने के कारण त्रिशा की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। सिर्फ 4 साल की उम्र में त्रिशा ने कई फिल्मों में काम किया है और अपनी पहचान एक बाल कलाकार के रूप में बनाई है। ‘नाल 2’ के अलावा उसने ‘पुन्हा शिवाजी राजे भोसले’, ‘मानवत मर्डर्स’ और ‘पेट पुराण’ जैसी फिल्मों में भी अपना जलवा बिखेरा है। यह बात काफी हैरान करने वाली है, कि इतनी छोटी बच्ची ने इतने सारे काम किए हैं।

    ‘नाल 2’ वह फिल्म जिसने बनाया तारा-

    मराठी फिल्म ‘नाल 2’ वह फिल्म है, जिसने त्रिशा को प्रसिद्धि दिलाई। यह फिल्म इंसानी रिश्तों, पारिवारिक बंधन और प्यार की ताकत के बारे में है। कहानी चैतू नाम के एक लड़के के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी असली मां से मिलता है और अपने चचेरे भाई-बहन चिमी और मानी से भी मुलाकात करता है। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, परिवार के छुपे हुए राज सामने आते हैं जो पूरे परिवार की नींव हिला देते हैं। इस संवेदनशील विषय को संभालना किसी भी बच्चे के लिए आसान नहीं था, लेकिन त्रिशा ने इसे बड़ी ही खूबसूरती से निभाया।

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    बॉलीवुड से लेकर प्रादेशिक सिनेमा तक का सफर-

    इस साल के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में प्रादेशिक सिनेमा की झलक साफ दिखी। त्रिशा जैसी प्रतिभाएं यह साबित करती हैं, कि अच्छी कहानी और बेहतरीन अभिनय किसी भी भाषा में हो, लोग उसे सराहते हैं। मराठी, तमिल, तेलुगु और दूसरी प्रादेशिक भाषाओं की फिल्में आज राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पा रही हैं।

    त्रिशा की सफलता की कहानी छोटे शहरों और गांवों के बच्चों के लिए एक प्रेरणा है। यह बताती है, कि प्रतिभा को पहचानने के लिए कोई भाषा या क्षेत्र की बाध्यता नहीं है। अगर आपके अंदर हुनर है, तो वह कहीं न कहीं जरूर चमकेगा।

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