Property Rights
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    Property Rights: हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है, कि दादा-दादी की जायदाद में पोते या पोती अपने हिस्सा नहीं मांग जब तक माता-पिता जिंदा है। यह फैसला बहुत सारे परिवारों की गलतफहमी दूर करता है। न्यायाधीश पुरुषैन्द्र कुमार कौरव ने यह निर्णय सुनाया है। इस फैसले से उन सभी परिवारों को मदद मिलेगी, जो जायदाद के झगड़ों में फंसे हुए हैं। अब सभी को पता चल गया है, कि कौन सी बात सही है और कौन सी गलत।

    कृतिका जैन का मामला और अदालत का फैसला-

    यह मामला कृतिका जैन नाम की एक महिला से शुरू हुआ था। उसने अपने पिता राकेश जैन और चाची नीना जैन पर मुकदमा किया था। कृतिका का कहना था, कि दिल्ली की एक जायदाद में उसका चौथाई हिस्सा है। यह जायदाद उसके दादा पवन कुमार जैन की थी। लेकिन अदालत ने कृतिका की बात नहीं मानी। न्यायाधीश ने कहा, कि उसके दावे में कोई दम नहीं है। अदालत ने समझाया, कि जब तक माता-पिता जिंदा हैं, तब तक बच्चों के बच्चे यानी पोते-पोतियां पहली श्रेणी के वारिस नहीं माने जाते।

    हिंदू वारिस कानून की सफाई-

    अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 का हवाला दिया। इस कानून की आठवीं धारा के मुताबिक, पवन कुमार जैन की खरीदी गई। जायदाद सिर्फ उनकी पत्नी और बेटे-बेटियों में ही बांटी जा सकती है। पोते-पोतियों का कोई सीधा हक नहीं बनता, जब तक उनके मां-बाप जिंदा हैं। अदालत ने यह भी बताया, कि 1956 के बाद से पहली श्रेणी के वारिस की जायदाद उनकी निजी संपत्ति मानी जाती है। इसका मतलब यह है, कि यह जायदाद अब पूरे खानदान की नहीं, बल्कि उस व्यक्ति की अपनी होती है।

    समाज की गलत सोच का इलाज-

    यह फैसला समाज में फैली एक बड़ी गलत सोच को ठीक करता है। बहुत से लोग मानते थे, कि पोते-पोतियों का अपने दादा-दादी की जायदाद पर अपने आप हक हो जाता है। चाहे उनके मां-बाप जिंदा हों या न हों। अदालत के इस फैसले से अब सब कुछ साफ हो गया है। वारिस बनने का एक सही क्रम होता है। पहले मां-बाप को जायदाद मिलती है, फिर उनके बाद उनके बच्चों को। यह तरीका झगड़े कम करता है और सबको अपना हक साफ-साफ पता चल जाता है।

    परिवारों पर असर-

    इस फैसले का फायदा सिर्फ कानून में नहीं, बल्कि समाज में भी होगा। अब परिवारों में साफ बात हो जाएगी और बेकार की लड़ाई नहीं होगी। लोगों को पता चल गया है, कि वारिस कैसे बनते हैं और कब किसका हक बनता है। यह फैसला उन परिवारों के लिए बहुत काम का है, जहां कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं। अक्सर इन परिवारों में जायदाद को लेकर उलझन रहती है। अब सभी को मालूम है, कि असली वारिस कौन है।

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    जायदाद बांटने के नए नियम-

    इस फैसले से एक बात और साफ हुई है। अगर कोई व्यक्ति अपनी जायदाद को लेकर कोई वसीयत नहीं छोड़ता, तो उसकी संपत्ति कानून के हिसाब से बांटी जाती है। पहले उसकी पत्नी और बच्चों का हक बनता है। उसके बाद ही दूसरे रिश्तेदारों की बारी आती है। यह व्यवस्था बहुत सोच-समझकर बनाई गई है। इससे यह पक्का होता है, कि जिन लोगों पर मृत व्यक्ति की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी थी, उन्हें पहले हक मिले। यह तरीका न्याय के हिसाब से भी सही है।

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