Chai-Biscuit Danger
    Photo Source - Google

    Chai-Biscuit Danger: भारतीय घरों में चाय का समय बिस्कुट के बिना अधूरा लगता है। चाहे वो ग्लूकोस बिस्कुट हो, मैरी गोल्ड हो या फिर क्रीम वाले बिस्कुट हों, ये सभी हमारी रोजमर्रा की चाय के साथी बन गए हैं। कुछ मीठे होते हैं, कुछ नमकीन, लेकिन सभी को जरूरत से ज्यादा खाना बहुत आसान है। लेकिन अब सरकार ने इस छोटी सी आदत को लेकर बड़ी चेतावनी दी है। मोटापा, मधुमेह और दिल की बीमारियों से जूझ रहे देश में अब ये रोजाना का नाश्ता भी सवालों के घेरे में आ गया है।

    सालों से बिस्कुट की दुकानों में लाइट और डाइट वर्जन, ओट्स वाले बिस्कुट, मल्टीग्रेन और डाइजेस्टिव ऑप्शन भी आ गए हैं। लेकिन इन सभी लेबलों के बावजूद भी ज्यादातर बिस्कुट में रिफाइंड आटा, चीनी और प्रोसेसड फैट का इस्तेमाल होता है। अब सवाल यह है, कि क्या हमारी रोजाना की ये छोटी खुशी वाकई में हमारी सेहत के लिए खतरनाक है?

    सरकार ने शुरू की नई जागरूकता मुहिम-

    अंग्रेज़ी समाचार वेबसाइट इंडिया टूडे के मुताबिक, भारत सरकार ने AIIMS नागपुर में एक नई जन जागरूकता मुहिम शुरू की है। यहां लोकप्रिय स्नैक काउंटरों के पास सिगरेट की तरह चेतावनी बोर्ड लगाए गए हैं। समोसा, जलेबी, पकौड़े और चाय के बिस्कुट जैसे खाने की चीजों को उनमें मौजूद तेल, चीनी और ट्रांस फैट की वजह से फ्लैग किया गया है। इस पहल का मकसद इन खाने की चीजों पर पाबंदी लगाना नहीं है, बल्कि लोगों को रुकने पर मजबूर करना है और सोचने पर मजबूर करना है, कि वे रोजाना क्या खा रहे हैं। यह एक तरह से लोगों को अपनी खाने की आदतों के बारे में सचेत करने का प्रयास है।

    बिस्कुट दिखते हैं हल्के, लेकिन हैं भारी-

    ज्यादातर चाय के साथ खाए जाने वाले बिस्कुट, खासकर ग्लूकोस और मैरी किस्म के बिस्कुट रिफाइंड आटे, अतिरिक्त चीनी और प्रोसेसड फैट से बने होते हैं। इनमें फाइबर और पोषक तत्व बहुत कम होते हैं, जिसका मतलब है, कि ये कैलोरी तो देते हैं, लेकिन पोषण बहुत कम मिलता है। मुंबई सेंट्रल के वॉकहार्ट हॉस्पिटल की हेड डाइटीशियन और न्यूट्रिशनिस्ट डॉ अमरीन शेख कहती हैं, कि ये चाय के साथ खाए जाने वाले बिस्कुट रिफाइंड आटे से बने होते हैं और इनमें फाइबर कम और पोषक तत्व नाम मात्र के होते हैं। ये अतिरिक्त चीनी और खराब क्वालिटी के फैट से भरे होते हैं, जो इन्हें खाली कैलोरी बनाता है। इसलिए इन्हें नियमित रूप से खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है।

    सादे बिस्कुट बनाम क्रीम बिस्कुट?

    बहुत से लोग मानते हैं, कि सादे बिस्कुट क्रीम वाले बिस्कुट से बेहतर विकल्प हैं। डॉ शेख स्पष्ट करती हैं, कि हालांकि ये कम नुकसानदायक हो सकते हैं, लेकिन सादे विकल्प भी मेटाबॉलिक हेल्थ के लिए अच्छे नहीं हैं। मेटाबॉलिक हेल्थ का मतलब है, कि आपका शरीर कितनी अच्छी तरह से ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और फैट को संभालता है। डॉक्टर का कहना है, कि यह इन्हें खाने का विकल्प नहीं बनाता। मतलब यह है, कि सादे हों या क्रीम वाले, दोनों ही तरह के बिस्कुट सेहत के लिए हानिकारक हैं।

    रोजाना की आदत जो बन जाती है बड़ी समस्या-

    जब बिस्कुट रोजाना खाए जाते हैं, अक्सर दिन में एक से ज्यादा बार, तो ये वजन बढ़ने, हाई कोलेस्ट्रॉल और बढ़े हुए ब्लड शुगर में योगदान दे सकते हैं। डॉ शेख कहती हैं, कि रोजाना बिस्कुट खाना सीधे तौर पर आपकी मेटाबॉलिक हेल्थ को प्रभावित करता है। वे नियमित सेवन को मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों से जोड़ती हैं। इसकी वजह बिस्कुट में मौजूद हाई ट्रांस फैट, सिंपल शुगर, हाई कार्बोहाइड्रेट और कम फाइबर है। यह खासकर उन लोगों के लिए चिंता की बात है जो दिन में दो-तीन बार चाय के साथ बिस्कुट खाते हैं।

    बिस्कुट का लेबल कैसे पढ़ें-

    एक हेल्दी बिस्कुट चुनना संभव है, लेकिन इसके लिए लेबल पर ध्यान देना जरूरी है। डॉ शेख सलाह देती हैं, कि पहले तीन इंग्रीडिएंट्स को चेक करें। अगर उनमें रिफाइंड आटा, हाइड्रोजिनेटेड फैट या चीनी शामिल है, तो यह एक रेड फ्लैग है। उनकी सलाह है, कि हाई फाइबर, होल ग्रेन या मिलेट्स से बने और शुगर फ्री विकल्प तलाशें। हालांकि ऐसे विकल्प बाजार में कम मिलते हैं और महंगे भी होते हैं, लेकिन सेहत के लिए यह निवेश फायदेमंद है।

    ये भी पढ़ें- Hariyali Teej 2025: हरियाली तीज पर क्यों पहनती हैं महिलाएं हरी चुड़ियां? जानिए कारण

    जागरूकता की दिशा में एक कदम-

    सरकार का फूड काउंटरों पर हेल्थ वॉर्निंग लगाने का फैसला छोटा लग सकता है। लेकिन यह रोकथाम जागरूकता की दिशा में एक बदलाव का संकेत है, खासकर जब बात रोजाना खाई जाने वाली चीजों की हो। डॉ शेख कहती हैं, कि जागरूकता निश्चित रूप से जनता को शिक्षित करने में मदद करेगी। उनका मानना है, कि स्कूलों, कॉलेजों और ऑफिसों में अधिक आक्रामक अभियान, स्वस्थ विकल्पों के साथ, एक स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं। लेकिन सिर्फ चेतावनी से काम नहीं चलेगा, लोगों को अच्छे विकल्प भी उपलब्ध कराने होंगे।

    क्या हैं बेहतर विकल्प-

    डॉक्टरों और न्यूट्रिशनिस्ट का सुझाव है, कि चाय के साथ बिस्कुट की बजाय मुट्ठी भर नट्स, रोस्टेड चना, खजूर या फिर घर का बना रस्क खाया जा सकता है। ये विकल्प न सिर्फ ज्यादा पौष्टिक हैं, बल्कि फाइबर और प्रोटीन भी देते हैं। अगर बिस्कुट खाना ही है, तो होल व्हीट या ओट्स से बने बिस्कुट चुनें जिनमें चीनी कम हो। लेकिन इन्हें भी सीमित मात्रा में ही खाना चाहिए।

    ये भी पढ़ें- Meaning of Dream: सपने में क्यों आते हैं मृत लोग? जानिए क्या कहता है विज्ञान और अध्यात्म