Delhi Dhaba Business Story: दिल्ली के सफदरजंग इलाके की एक छोटी सी गली में छुपा हुआ एक ऐसा ढाबा है, जो आज 100 करोड़ से भी ज्यादा का साम्राज्य बन चुका है। इस सफलता की सबसे खास बात यह है, कि यहां कभी कोई चमकदार प्रचार नहीं किया गया, न ही कोई बड़े निवेशक लगाए गए। आज भी राजिंदर दा ढाबा में रोज हजारों लोग सिर्फ एक वजह से आते हैं, यहां का बेमिसाल स्वाद।
यह ढाबा अपने बटर चिकन और गलौटी कबाब के लिए मशहूर है। 1968 में शुरू हुई इस जगह ने दिल्ली के खाने के नक्शे पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। जो चीज इसकी कहानी को और भी दिलचस्प बनाती है, वो है इसकी विनम्र शुरुआत। मछली फ्राई और अंडे बेचने से शुरू हुआ, यह छोटा सा स्टॉल आज कई सफल दुकानों का चेन बन चुका है।
एक छोटे खाने के ठेले की शुरुआत-
न्यूज़18 के मुताबिक, लगभग 40 साल पहले राजिंदर ने दिल्ली के सफदरजंग बाजार में एक छोटा सा खाने का ठेला शुरू किया था। उनके पास सिर्फ 500 रुपये थे और वे मछली फ्राई और अंडे जैसी सादी चीजें बेचते थे। न कोई निवेशक था, न कोई विज्ञापन। धीरे-धीरे लोगों को स्वाद पसंद आने लगा और ग्राहक आने लगे। हाल ही में व्यापारिक कहानियां साझा करने वाले रॉकी सग्गू कैपिटल ने एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने बताया, कि कैसे यह छोटा सा ठेला करोड़ों के कारोबार में बदल गया। रॉकी ने अपने वीडियो में कहा, “सिर्फ बटर चिकन और गलौटी कबाब बेचकर करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर दिया। न निवेशक, न विज्ञापन, न कोई आधुनिक तरीके।”
ग्राहकों की सुनकर बना कारोबार-
जैसे-जैसे मांग बढ़ी, वैसे-वैसे चुनौतियां भी आईं। लंबे इंतजार के समय से ग्राहक परेशान होने लगे। तब टीम ने एक साहसिक फैसला लिया। उन्होंने कोई ऐप लॉन्च नहीं किया, बल्कि एक व्यवस्थित तरीका बनाया। रॉकी ने समझाया, “ग्राहक ने बोला ज्यादा चाहिए, मेन्यू बढ़ा दिया। बोला समय लगता है समय बचाया।” बाजार सर्वेक्षण करने के बजाय, उन्होंने सीधे ग्राहकों की राय सुनी। रॉकी ने आगे कहा, “आलोचकों ने सुधारा, ग्राहकों ने बढ़ाया।” यही दृष्टिकोण उनकी सफलता का राज बना।
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि राजिंदर दा ढाबा ने कभी भी अपने ग्राहकों को नजरअंदाज नहीं किया। जब लोगों ने कहा, कि विविधता चाहिए तो मेन्यू बढ़ाया, जब बोला कि जल्दी चाहिए, तो सेवा की गति सुधारी। यह ग्राहक-प्रधान दृष्टिकोण ही उनकी सफलता की नींव है।
तीन ब्रांड, एक ही विचार-
आज राजिंदर दा ढाबा तीन अलग तरीकों से काम करता है। पहला है राजिंदर दा ढाबा, दूसरा राजिंदर एक्सप्रेस और तीसरा आरडीएक्स रेस्टो एंड बार। रॉकी ने बताया, “आज यह सिर्फ एक ढाबा नहीं है, बल्कि दिल्ली का सांस्कृतिक स्थल है।” यह विस्तार बेतरतीब नहीं हुआ। हर नया ब्रांड एक अलग ग्राहक समूह को ध्यान में रखकर बनाया गया। राजिंदर दा ढाबा पारंपरिक स्वाद चाहने वालों के लिए है, एक्सप्रेस उन लोगों के लिए, जिन्हें जल्दी खाना चाहिए और रेस्टो बार उन युवाओं के लिए, जो आधुनिक माहौल में खाना पसंद करते हैं।
रसोई की कुशलता-
उनकी सफलता सिर्फ व्यंजनों के बारे में नहीं है, बल्कि संचालन के बारे में भी है। बड़े पैमाने पर मैरिनेशन से लेकर पहले से तैयार ग्रेवी रखने तक, उन्होंने रसोई की गति को इंजीनियर किया है, बिना स्वाद से समझौता किए। रॉकी ने बताया, “रसोई को एक व्यवस्था की तरह चलाया, लेकिन खाने को फास्ट फूड नहीं बनने दिया।” बैठने की जगह नहीं होने पर भी उन्होंने एक अनूठा “कार डाइनिंग” अनुभव बनाया। लोग अपनी गाड़ियों में बैठकर खाना खाते हैं और यही इसकी खासियत बन गई। रॉकी ने जोड़ा, “पहले ऑर्डर का समय 20 मिनट था, अब सिर्फ 2-3 मिनट रह गया है।”
ब्रांड का विस्तार-
इस ब्रांड ने सिर्फ दो व्यंजनों को परफेक्ट करके शुरुआत की थी, बटर चिकन और गलौटी रोल। एक बार जब ये हिट हो गए, तो धीरे-धीरे विस्तार किया। रॉकी ने कहा, “स्वचालन किया। एक-एक व्यंजन को परफेक्ट करते चले गए।” यहां की भीड़ तब से कम नहीं हुई है। चाहे कोई सप्ताह के दिन की शाम हो या सप्ताहांत की रात, यह जगह हमेशा चहल-पहल से भरी रहती है। रॉकी के शब्दों में, “करोड़ का साम्राज्य सिर्फ एक वजह से बना – ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण।”
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पारंपरिक स्वाद, आधुनिक तरीके-
राजिंदर दा ढाबा की सफलता इस बात में भी है, कि उन्होंने पारंपरिक स्वाद को बरकरार रखते हुए आधुनिक तरीकों को अपनाया। उन्होंने कभी अपने मूल व्यंजनों से समझौता नहीं किया, लेकिन सेवा में नवाचार लाते रहे। आज भी वहां की चिकन करी और गलौटी कबाब का स्वाद वैसा ही है जैसा 40 साल पहले था। लेकिन अब ग्राहकों को घंटों इंतजार नहीं करना पड़ता। यह संतुलन ही उनकी सफलता का मुख्य कारण है।
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