Explained: देश की राजधानी दिल्ली में जब सफाई की बात आती है, तो शर्मिंदगी का कारण बन जाती है। मुंबई, इंदौर, सूरत जैसे शहर स्वच्छता में टॉप 10 में जगह बनाते हैं, वहीं दिल्ली की महानगरीय कमेटी (एमसीडी) अपने खराब प्रदर्शन से लोगों को निराश कर रही है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में एमसीडी को केवल 31वां स्थान मिला है। यह आंकड़ा उस शहर के लिए चिंताजनक है, जो पूरे देश का दिल माना जाता है।
Explained हजारों करोड़ का खर्च, फिर भी खराब हालत-
समाचार वेबसाइट जागरण के मुताबिक, एमसीडी की सफाई व्यवस्था की तस्वीर देखें तो सच में हैरानी होती है। निगम के पास 55 हजार से अधिक सफाई कर्मचारियों की पूरी फौज है। सालाना 5 हजार करोड़ रुपये का बजट सफाई पर खर्च होता है। इतने संसाधन होने के बावजूद दिल्ली की सफाई का हाल यह है, कि टॉप 30 शहरों में भी इसकी जगह नहीं बन पाती। पिछले साल 446 शहरों में से 90वां स्थान मिला था, जो इस साल कुछ सुधार के साथ 31वें स्थान पर आ गया है। लेकिन यह सुधार काफी नहीं है।
दिल्ली के बाजारों में सुबह 10 बजे दुकानें खुलती हैं और दोपहर 12-1 बजे तक हालत यह हो जाते हैं, कि गंदगी के ढेर नजर आने लगते हैं। सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति तो और भी खराब है। ज्यादातर शौचालय इस्तेमाल के लायक ही नहीं रहते। लोगों को मजबूरी में गंदे और बदबूदार शौचालयों का इस्तेमाल करना पड़ता है।
रिहायशी इलाकों में गंदगी का राज़-
दिल्ली के रिहायशी इलाकों, खासकर अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी-झोपड़ी में सफाई की स्थिति और भी चिंताजनक है। यहां सफाई तो होती है, लेकिन गंदगी करने वालों पर सख्ती न होने की वजह से यह ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती। लोग जहां-तहां कचरा फेंकने में बिल्कुल नहीं हिचकिचाते। इसकी वजह यह है कि कार्रवाई का डर ही नहीं है। कचरे के संवेदनशील स्थानों पर कोई खास सुधार नहीं हो रहा। जहां गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग होना चाहिए, वहां केवल 56 प्रतिशत ही यह काम हो पा रहा है। यह आंकड़ा बताता है, कि कचरा प्रबंधन की बुनियादी बातों में भी एमसीडी फेल हो रही है।
कूड़े के निस्तारण में 50 प्रतिशत लक्ष्य-
कूड़े के उत्पादन और उसके निस्तारण में भी निगम सिर्फ 50 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर पाया है। नियोजित कॉलोनियों को छोड़ दें, तो अनधिकृत कॉलोनियों में मौजूद डलाव घरों के बाहर कूड़ेदान हमेशा भरे रहते हैं। इससे जगह-जगह कूड़ा फैल जाता है और बदबू का माहौल बन जाता है। सबसे दुखद बात यह है, कि बेसहारा गायें डलाव घरों से कूड़ा खाकर बीमार पड़ रही हैं। ये गायें कूड़ा फैलाने में भी योगदान देती हैं। तमाम शिकायतों के बाद भी निगम इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल पाया है।
जलाशयों की सफाई में भी नाकाम-
एमसीडी की नाकामी सिर्फ सड़कों और बाजारों तक सीमित नहीं है। जलाशयों की सफाई में भी यह संस्था फिसड्डी साबित हुई है। जलाशयों की सफाई सर्वेक्षण में एमसीडी को केवल 27 प्रतिशत अंक मिले हैं। यह पता होते हुए भी, कि स्वच्छ सर्वेक्षण होना है, फिर भी तालाबों और जलाशयों को साफ रखने में लापरवाही बरती गई। दिल्ली के तालाब और जलाशय न सिर्फ गंदे हैं बल्कि इनमें प्रदूषण का स्तर भी खतरनाक है। यमुना नदी की स्थिति तो और भी चिंताजनक है। पानी के स्रोतों की सफाई में कमी से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि लोगों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
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नागरिकों की जिम्मेदारी भी जरूरी-
एमसीडी की नाकामी के साथ-साथ दिल्ली के नागरिकों की भी कुछ जिम्मेदारी है। लोगों में सफाई को लेकर जागरूकता की कमी है। सड़कों पर, पार्कों में, बाजारों में कचरा फेंकना आम बात हो गई है। जब तक लोगों में खुद सफाई को लेकर संवेदना नहीं आएगी, तब तक सिर्फ एमसीडी के भरोसे सफाई का सपना अधूरा रहेगा।
यह वक्त है, कि एमसीडी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाए। सफाई कर्मचारियों की निगरानी बेहतर हो, कचरा प्रबंधन की तकनीक अपडेट की जाए और सबसे जरूरी बात यह है, कि गंदगी करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो। तभी राजधानी दिल्ली की सफाई में सुधार आएगा और यह शहर देश के सामने एक अच्छा उदाहरण पेश कर सकेगा।
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