Indians in America: अमेरिकी टेक कंपनियों में भारतीय इंजीनियरों की बढ़ती मौजूदगी एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। सोशल मीडिया पर अमेरिकी नागरिक इस बात से नाराज हैं, कि उच्च वेतन वाली नौकरियां विदेशी कामगारों को मिल रही हैं, जबकि स्थानीय लोगों के लिए अवसर कम हो रहे हैं। यह समस्या सिर्फ आज की नहीं है, बल्कि 1990 के दशक से ही अमेरिकी कॉर्पोरेट संस्कृति का हिस्सा रही है।
Indians in America कोविड के बाद बढ़ा विवाद-
अमेरिकी श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के हालिया अध्ययन से पता चला है, कि कोविड महामारी के बाद विदेशी कामगारों की रोजगार दर स्थानीय लोगों की तुलना में बेहतर रही है। 2020 में मार्च-अप्रैल के दौरान दोनों समूहों की नौकरियों में गिरावट आई थी, लेकिन विदेशी कामगारों की स्थिति अधिक तेजी से सुधरी। महामारी के बाद विदेशी कामगारों का रोजगार 2021 के मध्य तक महामारी से पहले के स्तर को पार कर गया और 2024 तक लगातार बढ़ता रहा, जो लगभग 118 के स्तर पर पहुंच गया। इसके विपरीत, स्थानीय अमेरिकी कामगारों का रोजगार धीमी गति से बढ़ा और 2025 तक भी 105 के आसपास ही रहा।
Indians in America पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया-
टीमब्लाइंड जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अमेरिकी नागरिकों ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है। एक यूजर ने लिखा, “पिछले 20 सालों में भारतीयों ने अमेरिका की हर अच्छी नौकरी पर कब्जा कर लिया है। अब भाई-भतीजावाद हर चीज़ पर राज कर रहा है।” दूसरे ने कहा, “मेटा जैसी कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा ठीक है, लेकिन छोटी कंपनियों में एच-1बी वीजा होल्डरों का कब्जा निश्चित रूप से गलत है।”
कुछ लोगों ने इस आरोप का जवाब देते हुए कहा, “किसी की जलन साफ दिख रही है। भारतीय अच्छी कमाई कर रहे हैं, तो वह भाई-भतीजावाद की वजह से नहीं बल्कि मेहनत से है।” एक अन्य ने लिखा, “देखिए, पूरी कंपनियां जो पहले गोरों या मिश्रित लोगों की थीं, अब सभी भारतीय हैं।”
ऑरेकल पर लगे आरोप-
हाल ही में ऑरेकल जैसी टेक कंपनियों पर विवाद हुआ, जब अमेरिकी श्रम विभाग ने कंपनी पर वेतन उल्लंघन और भर्ती में पक्षपात का आरोप लगाया। विभाग का कहना था, कि कंपनी ने “योग्य गोरे, हिस्पैनिक और अफ्रीकी-अमेरिकी आवेदकों के खिलाफ भर्ती में भेदभाव किया और एशियाई आवेदकों, विशेषकर भारतीयों को प्राथमिकता दी।”
ऑरेकल ने इस आरोप से इनकार किया। कंपनी की प्रवक्ता डेबोरा हेलिंगर ने कहा, “ऑरेकल विविधता और समावेश को महत्व देता है और एक जिम्मेदार समान अवसर नियोक्ता है। हमारी भर्ती और वेतन संबंधी निर्णय गैर-भेदभावपूर्ण हैं और अनुभव तथा योग्यता जैसे वैध व्यावसायिक कारकों पर आधारित हैं।”
एच-1बी वीजा की शुरुआत और आलोचना-
एच-1बी वीजा कार्यक्रम 1990 के दशक में शुरू हुआ था, जब अमेरिकी टेक उद्योग तेजी से बढ़ रहा था। माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल और बाद में गूगल और अमेज़न जैसी कंपनियों का विस्तार हुआ। पर्सनल कंप्यूटर, इंटरनेट स्टार्टअप्स और एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर के विकास के साथ इन कंपनियों को विशेषज्ञ तकनीकी कर्मचारियों की जरूरत थी।
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घरेलू स्तर पर विशेषज्ञ तकनीकी कर्मचारी पर्याप्त नहीं थे। इसलिए अमेरिका ने 1990 में इमिग्रेशन एक्ट के तहत एच-1बी वीजा कार्यक्रम शुरू किया। विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विशेष ज्ञान की जरूरत वाले पदों के लिए यह वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता था।
नेपोटिज्म के आरोप-
अमेरिकी नागरिकों का आरोप है, कि भारतीय कामगारों द्वारा अपने देशवासियों को नौकरी दिलाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इससे स्थानीय लोगों के लिए अवसर कम हो रहे हैं। कई लोग एच-1बी वीजा की अनुमति प्रक्रिया को भी रोजगार में बाधा के रूप में देख रहे हैं। एक नेटिजन ने लिखा, “अमेरिकी सरकार सीईओ के हाथों बिक गई है। सीईओ चाहते हैं, कि भारतीय अमीर बनें।” दूसरे ने कहा, “छोटी कंपनियों में एच-1बी वीजा होल्डरों का कब्जा निश्चित रूप से अपराध है।”
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