Connaught Place Owner: राष्ट्रीय राजधानी के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस की खूबसूरत इमारतें और बड़े-बड़े शोरूम तो सभी देखते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन प्रतिष्ठित इमारतों का असली मालिक कौन है? और कौन हर महीने इनसे करोड़ों रुपये की कमाई कर रहा है? आइए जानते हैं कनॉट प्लेस के इतिहास और इसके मालिकाना हक की पूरी कहानी।
Connaught Place Owner कनॉट प्लेस का इतिहास और डिजाइन-
टाइम्स नाउ के मुताबिक, कनॉट प्लेस की सफेद रंग की शानदार इमारतें ब्रिटिश शासन के दौरान 1929 से 1933 के बीच बनाई गईं थीं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसे ब्रिटिश आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल ने डिजाइन किया था, जिन्होंने इंग्लैंड के बाथ शहर में स्थित रॉयल क्रेसेंट से प्रेरणा ली थी। कनॉट प्लेस का नाम ब्रिटिश शाही परिवार के सदस्य डयूक ऑफ कनॉट के नाम पर रखा गया था।
अपने अनूठे गोलाकार डिजाइन, औपनिवेशिक वास्तुकला और चहल-पहल भरे माहौल के लिए प्रसिद्ध कनॉट प्लेस अब देश के सबसे प्रतिष्ठित बिजनेस हब में से एक है। यहां हाई-एंड शोरूम से लेकर ऐतिहासिक रेस्तरां और ऑफिस तक, सभी दिल्ली की समृद्ध संस्कृति, व्यापार और इतिहास का प्रतिनिधित्व करते हैं।
Connaught Place Owner किसके पास है कनॉट प्लेस की मालकियत?
आधुनिक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के विपरीत, जिनका आमतौर पर एक मालिक या प्रबंधन होता है, कनॉट प्लेस कई ब्लॉक्स में बंटा हुआ है, जिनके अलग-अलग मालिक हैं। कनॉट प्लेस के नीचे की जमीन आधिकारिक तौर पर भारत सरकार के स्वामित्व में है, जो इस क्षेत्र की मुख्य संरक्षक है। हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, इमारतें खुद विभिन्न व्यक्तियों और परिवारों के स्वामित्व में हैं, जिनमें से कई दशकों से इन संपत्तियों के मालिक हैं।
1947 में आजादी के बाद, कनॉट प्लेस एक बिजनेस और सांस्कृतिक जोन में तब्दील हो गया है। आज, यह दुनिया के सबसे अधिक मांग वाले कमर्शियल डिस्ट्रिक्ट में से एक है। इस क्षेत्र में ऑफिस स्पेस बेहद मूल्यवान है, और फिर भी, इनमें से कई संपत्तियों का वास्तविक स्वामित्व आम जनता के लिए अज्ञात बना हुआ है।
कनॉट प्लेस में रेंट का इतिहास-
ऐतिहासिक रूप से, कनॉट प्लेस की अधिकांश संपत्तियां बहुत कम किराए पर लीज पर दी गई थीं, यहां तक कि कुछ दुकानों का किराया केवल कुछ सौ रुपये प्रति दुकान था। आजादी से पहले, कुछ व्यक्तियों ने कई दुकानें लीज पर ले ली थीं, कुछ मामलों में 50 तक।
पुराने दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत, 1947 से पहले साइन किए गए लीज में किराए में बहुत धीमी वृद्धि हुई। उदाहरण के लिए, अगर 1945 में किसी दुकान का किराया 50 रुपये था, तो अधिनियम केवल 10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि की अनुमति देता था। इस वजह से, कई किरायेदार आज भी अपेक्षाकृत कम किराया देते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो 70 से अधिक वर्षों में भी बमुश्किल बदली है, जिससे कनॉट प्लेस आधुनिक दिल्ली के दिल में ऐतिहासिक लीजिंग और संपत्ति स्वामित्व का एक आकर्षक मामला बन गया है।
आधुनिक युग में कनॉट प्लेस-
आज कनॉट प्लेस में एक छोटी दुकान का किराया लाखों में है, जबकि कुछ पुराने किरायेदार अभी भी पुराने नियमों के तहत कम रकम चुका रहे हैं। यह अंतर बताता है कि कैसे समय के साथ प्रॉपर्टी के मूल्य में जबरदस्त बदलाव आया है, लेकिन नियम वही पुराने बने हुए हैं।
कनॉट प्लेस आज सिर्फ एक शॉपिंग डेस्टिनेशन नहीं बल्कि दिल्ली की पहचान है। यहां रोज हजारों लोग घूमने आते हैं, टूरिस्ट अपनी यात्रा में इस जगह को जरूर शामिल करते हैं और बिजनेस मीटिंग्स के लिए भी यह एक पसंदीदा जगह है।
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कनॉट प्लेस की संपत्ती..
शहरी विकास विशेषज्ञों का मानना है कि कनॉट प्लेस की संपत्तियों के मामले में पारदर्शिता लाने और उचित किराया निर्धारित करने के लिए नए कानूनों की आवश्यकता है। इससे सरकार को राजस्व में वृद्धि होगी और इस ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण के लिए भी धन उपलब्ध होगा।
कनॉट प्लेस की कहानी दिल्ली के विकास और बदलाव की कहानी है। एक ऐसी जगह जहां इतिहास और आधुनिकता एक साथ चलते हैं और जहां हर गली में एक कहानी छिपी है। जब भी आप कनॉट प्लेस जाएं, तो इसकी भव्य इमारतों को देखते हुए जरूर सोचिएगा कि कौन हैं वो लोग जिनके पास इसकी असली मालकियत है और जो इसके रेंट से हर महीने करोड़ों कमा रहे हैं।
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