GST on UPI
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    GST on UPI: यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) आज भारतीय जनता के दैनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। सब्जी खरीदने से लेकर महंगे सामान के भुगतान तक, यूपीआई ने नकदी रहित लेनदेन को आसान और सुविधाजनक बना दिया है। लेकिन हाल ही में एक चर्चा ने आम जनता के बीच हलचल मचा दी है - क्या 2000 रुपये से अधिक के यूपीआई लेनदेन पर 18% जीएसटी लगने वाला है?

    इस खबर ने न केवल आम नागरिकों बल्कि छोटे व्यापारियों को भी चिंता में डाल दिया है। डिजिटल पेमेंट की बढ़ती लोकप्रियता के बीच इस तरह के कर की संभावना ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या भारत का डिजिटल भुगतान अभियान पीछे हट सकता है।

    GST on UPI विशेषज्ञों का क्या कहना है?

    MIRA Money के को-फाउंडर आनंद के. राठी ने इस बारे में अपनी राय साझा करते हुए कहा, "यह समझना जरूरी है कि यदि कोई कर लगता है, तो वह सीधे यूपीआई लेनदेन पर नहीं, बल्कि उस सर्विस चार्ज पर लगेगा जो Google Pay, PhonePe और Paytm जैसे प्लेटफॉर्म्स वसूल सकते हैं। लेनदेन की कुल राशि पर टैक्स नहीं, बल्कि सर्विस फीस पर टैक्स लगने की संभावना है।" उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि यूपीआई मूल रूप से एक बैंक-टू-बैंक ट्रांसफर सिस्टम है, जिसमें सामान्य परिस्थितियों में कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। हालांकि, यदि भविष्य में कोई सेवा शुल्क लगाया जाता है, तो उस पर जीएसटी लागू हो सकता है।

    Finkeda के चेयरमैन और एमडी मनीष कुमार गोयल का मानना है कि यदि यूपीआई लेनदेन पर किसी भी तरह का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाता है, तो यह भारत के डिजिटल भुगतान मिशन के लिए एक बड़ा झटका होगा। उन्होंने कहा, "यूपीआई ने छोटे शहरों और गांवों तक कैशलेस लेनदेन को पहुंचाया है। अगर इस पर शुल्क लगाया गया, तो लोग और छोटे दुकानदार डिजिटल पेमेंट से दूरी बना सकते हैं और फिर से नकद लेनदेन की ओर लौट सकते हैं।"

    GST on UPI स्टार्टअप्स और छोटे व्यापारियों पर प्रभाव-

    SCOPE के फाउंडर और CEO अपल्ला साईकिरण ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "यदि यूपीआई पर कोई अतिरिक्त कर लगता है, तो इसका प्रभाव न केवल फिनटेक कंपनियों पर बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। यह कदम सुलभता और किफायती होने की मूल भावना के विपरीत होगा, जिस पर यूपीआई का पूरा सिस्टम आधारित है।" उन्होंने आगे कहा, "विशेष रूप से छोटे स्टार्टअप्स के लिए, जो अभी विकास के चरण में हैं, यह अतिरिक्त लागत उनके व्यापार मॉडल को प्रभावित कर सकती है और उनकी विकास यात्रा को धीमा कर सकती है।"

    Techjockey के को-फाउंडर आकाश नांगिया ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे। उनका मानना है कि भारत में डिजिटल पेमेंट क्रांति ने छोटे व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए बिजनेस करने के नए तरीके खोले हैं। "हालांकि बड़े मूल्य के लेनदेन पर कर लगाने का मकसद आर्थिक औपचारिकता को बढ़ावा देना हो सकता है, लेकिन इससे टियर-2 और टियर-3 शहरों में डिजिटल अपनाने की गति धीमी हो सकती है, जहां अभी यह अभियान जोर पकड़ रहा है।"

    सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं-

    महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी तक सरकार की ओर से 2000 रुपये से अधिक के यूपीआई लेनदेन पर जीएसटी लगाने के संबंध में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। ये सभी चर्चाएं और अटकलें मीडिया रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों के अनुमानों पर आधारित हैं।

    वित्तीय विशेषज्ञों का सुझाव है कि आम जनता को अफवाहों पर विश्वास करने से बचना चाहिए और सरकार के आधिकारिक स्पष्टीकरण का इंतजार करना चाहिए। भारत सरकार का डिजिटल इंडिया मिशन यूपीआई के माध्यम से कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने पर केंद्रित रहा है, और ऐसे में कोई भी निर्णय गंभीर विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाएगा।

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    डिजिटल भुगतान का भविष्य-

    यदि कोई नया कर या शुल्क लागू होता है, तो इसका प्रभाव भारत के डिजिटल भुगतान परिदृश्य पर अवश्य पड़ेगा। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां लोग अभी-अभी डिजिटल लेनदेन से परिचित हो रहे हैं, किसी भी अतिरिक्त लागत से उनके उत्साह में कमी आ सकती है। वहीं दूसरी ओर, सरकार के लिए भी यह एक संतुलन का विषय है। डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ राजस्व संग्रह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई नया नियम लाया जाता है, तो वह संभवतः इस तरह से डिज़ाइन किया जाएगा कि वह छोटे उपभोक्ताओं और व्यापारियों पर न्यूनतम प्रभाव डालें।

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