Masaan ki Holi: वाराणसी की धरती पर होली का त्योहार सिर्फ रंगों और उल्लास से नहीं, बल्कि गहरी आध्यात्मिक भावना से भरा होता है। यहाँ मसान की होली एक ऐसी अनूठी परंपरा है, जो मृत्यु और जीवन के बीच के पतले अंतर को दर्शाती है। रंगभरी एकादशी के अगले दिन मनाई जाने वाली यह होली, भगवान शिव की भक्ति का एक अद्भुत उदाहरण है।
Masaan ki Holi भभूत होली-
मणिकर्णिका घाट पर आयोजित होने वाली यह होली, जिसे "भभूत होली" भी कहा जाता है, एक अत्यंत विशिष्ट अनुभव है। यहाँ होली के रंग की जगह मृत शरीरों की राख (भभूत) का उपयोग किया जाता है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की अंतःक्रिया का एक गहन प्रतीक है।
Masaan ki Holi शिव और उनके गणों का आध्यात्मिक मिलन-
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन स्वयं भगवान शिव अपने गणों के साथ मणिकर्णिका घाट पर पहुंचते हैं। जब अन्य देवता-देवियाँ होली के उत्सव में शामिल होते हैं, तब शिव के गण, जो भूत-प्रेत और आत्माएँ हैं, मनुष्यों के बीच नहीं आ सकते। इसलिए भोलेनाथ खुद ही उनके लिए होली मनाते हैं।
पवित्रता और शुद्धिकरण का प्रतीक-
राख के साथ खेली जाने वाली यह होली, शुद्धिकरण और आध्यात्मिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। मध्याह्न में बाबा महाश्मशान नाथ और माता माशन काली की आरती, इस अनुष्ठान को और भी अधिक पवित्र बनाती है।
एक सदियों पुरानी परंपरा-
काशी में शिव भक्तों द्वारा सदियों से निभाई जा रही यह परंपरा, न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि जीवन और मृत्यु के गहरे दार्शनिक अर्थ को भी दर्शाती है। यहाँ हर राख का कण, हर ज्वाला एक कहानी कहती है - अंतिम सच्चाई और शाश्वत सत्य की।
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स्थानीय प्रशासन की भूमिका-
स्थानीय प्रशासन द्वारा संचालित यह त्योहार, वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वे न केवल इस परंपरा को संरक्षित करते हैं, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक भी पहुंचाते हैं। मसान की होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन के गहरे रहस्यों को समझने का एक माध्यम है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, और हर अंत एक नई शुरुआत का द्वार है।
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