Solar Kitchen Mount Abu: राजस्थान के माउंट आबू की अरावली पहाड़ियों में, जहां रेगिस्तान की रोशनी मंदिरों के गुंबदों पर बिखरती है, वहां एक अद्भुत रसोई चुपचाप काम करती है। न कोई आग, न कोई धुआं, न बिजली की झंझट। ब्रह्माकुमारीज के शांतिवन कॉम्प्लेक्स में स्थित यह दुनिया की सबसे बड़ी सोलर किचन है, जो हर दिन सिर्फ सूरज की रोशनी से 50,000 शुद्ध शाकाहारी भोजन तैयार करती है। यह सिर्फ एक रसोई नहीं, बल्कि भारत की टिकाऊ तकनीक और आध्यात्मिकता का एक जीता-जागता उदाहरण है।
सूरज की रोशनी से कैसे बनता है खाना?
द् टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, ज्यादातर सोलर सिस्टम में पैनल्स का इस्तेमाल होता है, लेकिन यह किचन सौर ऊर्जा पर चलती है। यहां 84 विशाल शेफ्लर शीशे लगे हैं, जिनमें से हर एक शीशा 9.2 वर्ग मीटर चौड़ा है। ये दर्पण सूरज के साथ-साथ घूमते हैं और उसकी किरणों को एक बिंदु पर केंद्रित करते हैं। इससे इतनी तेज़ गर्मी पैदा होती है, कि तापमान कई सौ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और सही परिस्थितियों में यह 800 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है।
यह केंद्रित गर्मी फिर भाप बनाने के लिए इस्तेमाल होती है। हर दर्पण की केंद्रित किरण 42 खास तरह के स्टील रिसीवर पर पड़ती है, जो पानी को भाप में बदल देते हैं। रोजाना 3,500 किलोग्राम से ज्यादा भाप तैयार होती है। यह भाप इंसुलेटेड पाइप के जरिए एक केंद्रीय ड्रम में जमा होती है और फिर वहां से बड़े-बड़े खाना पकाने के बर्तनों तक पहुंचती है।

जब सूरज की किरणें बन जाती हैं दाल-रोटी-
यह भाप ही वह ताकत है, जो हर दिन दाल, चावल, सब्जी और पेय पदार्थ बनाने में काम आती है। यहां तक, कि पानी को शुद्ध करने और बर्तन धोने में भी इसी भाप का इस्तेमाल होता है। सबकुछ बड़े पैमाने पर होता है, लेकिन प्रदूषण बिल्कुल नहीं। हर सुबह ये दर्पण अपने आप सूरज की दिशा में झुक जाते हैं, बिल्कुल सूरजमुखी के फूलों की तरह। शाम को एक फोटोवोल्टिक टाइमर उन्हें रीसेट कर देता है, जिससे अगली सुबह फिर से सूरज की रोशनी से खाना बने।
इस व्यवस्था में कुछ स्मार्ट सुविधाएं भी हैं। एक पानी साफ करने की यूनिट स्केल जमा होने से रोकती है, एक दबाव नियंत्रक भाप के प्रवाह को संतुलित रखता है और हां मॉनसून या बादल वाले दिनों के लिए डीजल बैकअप भी है, क्योंकि खाना तो हर हाल में बनना ही है।
एक छोटे से विचार से बना अंतरराष्ट्रीय मॉडल-
जब 1998 में यह सोलर किचन शुरू हुई थी, तब इसे 20,000 लोगों के लिए खाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया था। लेकिन धीरे-धीरे सुधार और क्षमता बढ़ाने के बाद, अब यह 50,000 निवासियों, छात्रों, स्वयंसेवकों और आगंतुकों के लिए खाना पकाती है। यह ऐसा है, जैसे किसी पूरे क्रिकेट स्टेडियम को रोज खाना खिलाना, वो भी सिर्फ सूरज की ताकत से।
इस परियोजना को भारत के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का समर्थन मिला था और आज यह दुनियाभर में प्रसिद्ध है। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने इसे धरती की सबसे बड़ी सोलर किचन कहा है। यह भारत की टिकाऊ इंजीनियरिंग और आध्यात्मिक उद्देश्य का सटीक मेल है।
सिर्फ ईंधन ही नहीं, बहुत कुछ बचाती है यह किचन-
इस किचन का प्रभाव देखकर हैरानी होती है। हर साल यह 1.18 लाख लीटर से ज्यादा डीजल बचाती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन और खर्च दोनों में कटौती होती है। साथ ही, यह बड़ी रसोई में होने वाले धुएं और कालिख को भी खत्म कर देती है, जिससे हवा साफ रहती है।
जो 1992 में एक छोटे से प्रयोग के रूप में शुरू हुआ था, वह आज एक जीवंत उदाहरण है, कि कैसे बड़े समुदाय स्थिरता को अपनी दैनिक जीवन का हिस्सा बना सकते हैं। शांतिवन कॉम्प्लेक्स सिर्फ लोगों को खाना नहीं खिलाता, बल्कि यह विचार भी पोषित करता है, कि नवीकरणीय ऊर्जा कोई विलासिता नहीं, बल्कि सामान्य ज्ञान है।
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भारत की रोशनी जो दुनिया को राह दिखाती है-
ब्रह्माकुमारीज के लिए यह सिर्फ तकनीक का मामला नहीं है, बल्कि यह मानवीय जरूरत को प्रकृति के लय के साथ जोड़ने का तरीका है। इस किचन की खामोशी ही इसका बयान है। न कोई जनरेटर, न प्रदूषण, बस परावर्तकों की हल्की सी आवाज़, जो आसमान की ओर मुड़ते हैं। आज जब ज्यादातर रसोइयां अभी भी गैस और बिजली पर निर्भर हैं, यह किचन हमें याद दिलाती है, कि सबसे चमकदार विचार हमेशा प्लग की जरूरत नहीं रखते। कभी-कभी बस एक दर्पण, एक पहाड़ और सुबह का सूरज ही काफी होता है।
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