Deepak Prakash
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    Deepak Prakash: पटना के गांधी मैदान में गुरुवार का दिन कुछ अलग ही रहा। नीतीश कुमार रिकॉर्ड दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले थे और समारोह में देश के बड़े नेता पहुंच रहे थे। कुर्ता, धोती और बंडी में सजे-धजे नेताओं के बीच एक युवक की एंट्री ने सबका ध्यान खींच लिया। जींस और बाहर निकली शर्ट पहने यह शख्स इतनी आसानी से घूम रहा था, मानो किसी दोस्त की पार्टी में आया हो। जब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला और फिर मंत्री पद की शपथ ली, तो सोशल मीडिया पर सवालों की बाढ़ आ गई। आखिर यह युवक कौन है और बिहार की नई कैबिनेट में इसकी जगह कैसे बन गई?

    कौन हैं Deepak Prakash?

    यह युवक थे छत्तीस वर्षीय दीपक प्रकाश, जो राष्ट्रीय लोक मोर्चा के चीफ और NDA सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा के बेटे हैं। उनकी मां स्नेहलता कुशवाहा ससाराम से विधायक हैं। हालांकि मां ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, लेकिन दीपक खुद हाल के विधानसभा चुनाव में मैदान में नहीं उतरे थे। NDA ने इस चुनाव में शानदार जीत दर्ज की थी। फिर भी राष्ट्रीय लोक मोर्चा को जो एकमात्र मंत्री पद मिला, वह दीपक के हिस्से आया।

    मणिपाल के MIT से 2011 में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने चार साल तक IT सेक्टर में काम किया। फिर उन्होंने राजनीति की तरफ रुख किया। दिलचस्प बात यह है, कि दीपक खुद कहते हैं, कि उनकी नियुक्ति उनके लिए भी सरप्राइज थी।

    उन्होंने कहा, कि जहां तक उन्हें पता है, उनके पिता और पार्टी नेताओं के बीच एक बैठक हुई और वहीं यह फैसला लिया गया। उन्होंने कहा, कि उन्हें कब पता चला? यह खबर उनके लिए भी सरप्राइज थी, शपथ लेने से कुछ ही देर पहले। द टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से बताया, कि शुरुआत में नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों ही उनकी नियुक्ति को लेकर आश्वस्त नहीं थे। दीपक का नाम आखिरी समय में ही फाइनल हुआ।

    राजवंशी राजनीति पर सवाल-

    उनके चयन ने राजवंशी राजनीति पर बहस को फिर से तेज कर दिया है। खासकर तब जब NDA के एक और सहयोगी जीतन राम मांझी भी अपने बेटे संतोष कुमार सुमन के लिए कैबिनेट में जगह बनाने में कामयाब रहे। लोग सवाल उठा रहे हैं, कि जब चुनाव नहीं लड़ा, जनता के बीच नहीं गए, तो मंत्री कैसे बन गए? क्या योग्यता से ज्यादा परिवार का नाम महत्वपूर्ण है?

    ‘राजनीति आम लोगों के करीब होनी चाहिए’-

    चुनावी अनुभव न होने के बावजूद, दीपक का तर्क है, कि वह राजनीति से अनजान नहीं हैं। एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, कि वह बचपन से ही राजनीति को करीब से देख रहे हैं। अपने पिता को काम करते हुए देखा है और पिछले चार-पांच सालों से वह पार्टी में सक्रिय रहे हैं।

    शपथ ग्रहण समारोह में उनका कैजुअल आउटफिट भी चर्चा का विषय बना। जहां सभी नेता पारंपरिक पोशाक में थे, वहीं दीपक की जींस-शर्ट ने सबको चौंका दिया। लेकिन दीपक ने अपने कपड़ों के चुनाव का बचाव करते हुए कहा, कि उन्होंने आराम और आम नागरिकों से जुड़ाव को प्राथमिकता दी।

    उन्होंने कहा, कि राजनीति जितनी आम लोगों के करीब होगी, उतनी ही लोकतंत्र मजबूत होगी। जब साधारण लोग राजनीति के करीब होते हैं, तब डेमोक्रेसी ताकतवर बनती है। उन्होंने यह भी कहा, कि वह बाद में कुर्ता-पायजामा पहनेंगे या नहीं, यह समय बताएगा, लेकिन फिलहाल कम्फर्ट उनकी पहली प्राथमिकता है।

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    आगे क्या?

    दीपक प्रकाश की नियुक्ति बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय है। IT बैकग्राउंड वाले इस युवा मंत्री से उम्मीदें भी हैं और सवाल भी। क्या वह अपनी तकनीकी समझ का इस्तेमाल बिहार के विकास में कर पाएंगे? क्या वह जनता के बीच अपनी जगह बना पाएंगे? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या वह यह साबित कर पाएंगे कि उनका चुनाव सिर्फ परिवार के नाम पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर था?

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