Delhi-Dehradun Expressway
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    Delhi-Dehradun Expressway: गाजियाबाद के मंडोला गांव में एक दो मंजिला घर पूरे देश के लिए बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। यह अकेला घर दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे जैसे महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को पूरा होने से रोक रहा है। एक तरफ निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है, दोनों तरफ के मार्ग ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे से जुड़ने के लिए तैयार हैं और यात्रा समय को छह घंटे से घटाकर मात्र ढाई घंटे करने का वादा पूरा होने के करीब है। लेकिन इस सब के बीच में खड़ा है वीरसेन सरोहा का परिवार, जो अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है।

    Delhi-Dehradun Expressway कहानी 1990 से शुरू-

    टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, वीरसेन सरोहा का परिवार 1990 के दशक से इस 1,600 वर्ग मीटर के प्लॉट पर रह रहा है। विवाद की शुरुआत 1998 में हुई, जब वीरसेन ने उत्तर प्रदेश हाउसिंग बोर्ड द्वारा मंडोला हाउसिंग स्कीम के लिए अपनी जमीन के अधिग्रहण को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

    हाउसिंग प्रोजेक्ट जनता के विरोध और प्रक्रियात्मक देरी के कारण कभी शुरू नहीं हो पाया। आखिरकार, अन्य निवासियों से अधिग्रहित की गई भूमि को एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट के लिए नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को सौंप दी गई। लेकिन वीरसेन का परिवार कभी नहीं झुका।

    Delhi-Dehradun Expressway प्रोजेक्ट की वर्तमान स्थिति-

    NHAI एक्सप्रेसवे का निर्माण दो खंडों में कर रहा है - अक्षरधाम से यूपी बॉर्डर पर स्थित लोनी तक 14.7 किलोमीटर, और लोनी से ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (EPE) पर स्थित खेकड़ा तक 16 किलोमीटर। लेकिन इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम रुका हुआ है क्योंकि कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है।

    "कानूनी विवाद के कारण काम रुका हुआ है, क्योंकि घर के मालिक और उनके परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में एक केस दायर किया है," एक NHAI अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया।

    जून तक पूरा हो सकता है प्रोजेक्ट (Delhi-Dehradun Expressway)-

    NHAI का कहना है कि अगर कानूनी बाधा दूर हो जाती है, तो वे जून तक प्रोजेक्ट पूरा कर सकते हैं। वीरसेन के पोते लक्ष्यवीर ने 2024 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी लड़ाई जारी रखी, यह तर्क देते हुए कि NHAI को भूमि का हस्तांतरण अवैध था। अब केस को लखनऊ हाई कोर्ट की बेंच में स्थानांतरित कर दिया गया है, जिसकी अगली सुनवाई 16 अप्रैल को निर्धारित है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि इस मामले का जल्द से जल्द समाधान निकाला जाए, क्योंकि यह देरी एक बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को रोक रही है।

    परिवार का पक्ष(Delhi-Dehradun Expressway)-

    लक्ष्यवीर का कहना है कि उनके परिवार के साथ अन्याय हुआ है। "हम 30 सालों से इस जमीन पर रह रहे हैं। हाउसिंग बोर्ड ने भूमि का अधिग्रहण किया, लेकिन कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं किया। फिर बिना हमारी सहमति के जमीन NHAI को ट्रांसफर कर दी गई। हम अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं," लक्ष्यवीर ने कहा। परिवार का यह भी आरोप है कि उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया गया और न ही पुनर्वास के लिए कोई व्यवस्था की गई।

    प्रोजेक्ट का महत्व-

    दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है जो न सिर्फ यात्रा समय को काफी कम करेगा, बल्कि उत्तराखंड के पर्यटन को भी बढ़ावा देगा। यह एक्सप्रेसवे दिल्ली से देहरादून की दूरी को मौजूदा छह घंटे से घटाकर मात्र ढाई घंटे कर देगा, जिससे यात्रियों को काफी राहत मिलेगी। इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। बेहतर कनेक्टिविटी से क्षेत्र में व्यापार और निवेश बढ़ेगा, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

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    वीरसेन का परिवार-

    16 अप्रैल को होने वाली सुनवाई से पहले दोनों पक्ष अपनी तैयारियों में जुटे हैं। NHAI के अधिकारियों का कहना है, कि वे मामले का जल्द से जल्द समाधान चाहते हैं, ताकि प्रोजेक्ट को पूरा किया जा सके। दूसरी ओर, वीरसेन का परिवार अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए दृढ़ है। उनका कहना है कि वे विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें उचित मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था मिलनी चाहिए।

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