Bihar Congress
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    Bihar Congress: बिहार की राजनीति में सोमवार को एक बड़ा घटनाक्रम देखने को मिला, जब कांग्रेस पार्टी ने अपने सात वरिष्ठ नेताओं को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह कार्रवाई हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद आई है। लेकिन इस फैसले ने पार्टी के अंदर नया विवाद खड़ा कर दिया है, क्योंकि कई नेताओं का मानना है, कि यह सिर्फ बलि का बकरा बनाने की रणनीति है।

    बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अनुशासन समिति के अध्यक्ष कपिलदेव प्रसाद यादव ने यह निष्कासन आदेश जारी किया। पार्टी का कहना है, कि ये नेता पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और चुनाव के दौरान अनुशासनहीनता दिखाई। हालांकि, निष्कासित नेताओं और उनके समर्थकों का आरोप है, कि यह कदम वरिष्ठ नेताओं की विफलताओं को छिपाने के लिए उठाया गया है।

    चुनावी नतीजे जो बन गए विवाद की जड़-

    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा था। महागठबंधन, जिसमें राजद, कांग्रेस, सीपीआई एमएल, सीपीआई एम और अन्य वामपंथी दल शामिल थे, को कुल मिलाकर केवल 34 सीटें मिलीं। इसमें राजद को 25, कांग्रेस को सिर्फ 6, सीपीआई एमएल को 2 और सीपीआई एम को 1 सीट मिली।

    दूसरी ओर, एनडीए ने शानदार जीत दर्ज की। बीजेपी ने 89 सीटें जीतीं, जेडीयू ने 85 सीटों पर कब्जा किया और एलजेपी, हम, आरएलएम जैसे अन्य सहयोगी दलों ने मिलकर 28 सीटें हासिल कीं।

    किन नेताओं को मिली सजा?

    पार्टी से निष्कासित किए गए सात नेताओं में कुछ जाने-माने चेहरे शामिल हैं। इनमें आदित्य पासवान, जो कांग्रेस सेवा दल के पूर्व उपाध्यक्ष थे, शकीलुर रहमान, जो बीपीसीसी के पूर्व उपाध्यक्ष रह चुके हैं, राज कुमार शर्मा, जो किसान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष थे और राज कुमार राजन, जो राज्य युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे, शामिल हैं।

    इसके अलावा कुंदन गुप्ता, जो अति पिछड़ा विभाग के पूर्व अध्यक्ष थे, कंचना कुमारी, जो बांका जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष हैं और रवि गोल्डन, जो नालंदा जिले से जुड़े हैं, को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है। ये सभी नेता पार्टी के विभिन्न विभागों में सक्रिय रहे हैं और जमीनी स्तर पर काफी लोकप्रिय भी माने जाते थे।

    आरोप क्या हैं?

    कांग्रेस द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, इन सात नेताओं पर पार्टी की मूल विचारधारा से भटकने, संगठनात्मक मर्यादा का उल्लंघन करने और पार्टी प्लेटफॉर्म के बाहर भ्रामक बयान देने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अनुशासन समिति ने कहा, कि इन नेताओं ने बार-बार प्रिंट और सोशल मीडिया पर पार्टी के फैसलों की आलोचना की।

    सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है, कि इन नेताओं ने टिकट बंटवारे में गड़बड़ी और धनलेन-देन के निराधार आरोप लगाए, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा। बीपीसीसी ने स्पष्ट किया, कि उम्मीदवारों का चयन पर्यवेक्षकों, प्रदेश चुनाव समिति और एआईसीसी की समीक्षा के बाद केंद्रीय पर्यवेक्षक अविनाश पांडे की मंजूरी से किया गया था।

    अनुशासन समिति ने यह भी कहा, कि इन नेताओं के स्पष्टीकरण असंतोषजनक थे और उनके कृत्यों ने पांच में से तीन अनुशासनात्मक मानदंडों का उल्लंघन किया। पार्टी का आरोप है, कि इन लोगों ने जानबूझकर सक्षम अधिकारियों के निर्देशों की अनदेखी की और संगठन में भ्रम फैलाने की कोशिश की।

    दूसरा पक्ष क्या सच में यह निष्पक्ष फैसला है?

    निष्कासित नेताओं और उनके समर्थकों की दलील बिल्कुल अलग है। उनका कहना है, कि बीपीसीसी उन लोगों को निशाना बना रही है, जिन्होंने चुनाव से पहले कमजोर उम्मीदवारों और गठबंधन सहयोगियों के बीच खराब तालमेल के बारे में सवाल उठाए थे। पहले 43 नेताओं को कारण बताओ नोटिस भेजे गए थे और अब सात को सजा मिली है।

    एक निष्कासित नेता ने कहा, कि पार्टी “समर्पित कार्यकर्ताओं को बलि का बकरा बना रही है” ताकि रणनीतिक विफलताओं के लिए वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदार न ठहराया जाए। एक अन्य आलोचक ने अध्यक्ष कपिलदेव प्रसाद यादव की निष्पक्षता पर ही सवाल उठाया है। उन्होंने यह कहते हुए विवाद खड़ा किया, कि कपिलदेव एक प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार की जीत के जश्न में मौजूद थे।

    कांग्रेस के सामने अब क्या चुनौतियां?

    बिहार में कांग्रेस की स्थिति पहले से ही कमजोर है और अब यह अंदरूनी कलह पार्टी को और नुकसान पहुंचा सकती है। जब किसी राजनीतिक दल को चुनाव में हार मिलती है, तो उसे एकजुट होकर अपनी रणनीति पर फिर से काम करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस में जो हो रहा है, वह बिल्कुल उलट है।

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    सवाल यह है, कि क्या पार्टी अपनी असली समस्याओं की पहचान कर पाएगी या फिर ऐसे ही अंदरूनी झगड़ों में उलझी रहेगी? बिहार के मतदाता अब यह देखना चाहते हैं, कि कांग्रेस अपने घर को कैसे संभालती है और क्या वाकई में वह 2029 के चुनावों के लिए तैयार हो पाएगी।

    अभी तो यही लग रहा है, कि बिहार कांग्रेस के लिए मुश्किलें आसान होने वाली नहीं हैं। पार्टी को न सिर्फ अपनी छवि सुधारनी है, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं का विश्वास भी वापस जीतना है। देखना यह है कि क्या यह निष्कासन पार्टी को मजबूत बनाएगा या फिर और कमजोर कर देगा।

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