Justice Surya Kant
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    Justice Surya Kant: सोमवार, 24 नवंबर 2025 को जस्टिस सूर्य कांत ने भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जब उन्होंने हिंदी में अपनी शपथ ली, जो भारत की न्यायिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण पल था। जस्टिस कांत अगले 15 महीनों तक इस सर्वोच्च न्यायिक पद पर रहेंगे और 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु पूरी करने पर सेवानिवृत्त होंगे। उनकी यात्रा एक साधारण परिवार से देश के सबसे बड़े न्यायिक पद तक की प्रेरणादायक कहानी है।

    Justice Surya Kant कौन हैं?

    जस्टिस सूर्य कांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश हैं, जिन्होंने 24 नवंबर 2025 को यह पद संभाला। वे एक ऐसे न्यायाधीश हैं जिनका नाम देश के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों में लिया जाता है। आर्टिकल 370, राजद्रोह कानून, पेगासस स्पाइवेयर केस, वन रैंक-वन पेंशन, और महिलाओं के अधिकारों से जुड़े कई ऐतिहासिक फैसलों में उनकी अहम भूमिका रही है। जस्टिस कांत को एक निडर, ईमानदार और संवेदनशील न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है, जो हमेशा संविधान और कानून के मूल्यों को सर्वोपरि रखते हैं।

    उनका मानना है, कि न्याय केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह आम आदमी की उम्मीदों और समाज की जरूरतों को समझने का माध्यम है। अपने पूरे करियर में उन्होंने यह साबित किया है, कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता लोकतंत्र की नींव है। वे न केवल एक कुशल न्यायाधीश हैं, बल्कि एक विद्वान भी हैं, जिन्होंने कानून में मास्टर डिग्री में फर्स्ट क्लास फर्स्ट की उपाधि हासिल की। उनकी नियुक्ति से देश की न्यायिक व्यवस्था में नई ऊर्जा और दिशा मिलने की उम्मीद है।

    हरियाणा के छोटे शहर से दिल्ली तक का सफर-

    जस्टिस सूर्य कांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका बचपन और शुरुआती जीवन उन करोड़ों भारतीयों जैसा था, जो मेहनत और लगन से अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं। छोटे शहर के एक वकील से लेकर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचना आसान नहीं था, लेकिन जस्टिस कांत ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से यह मुकाम हासिल किया। उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से कानून में मास्टर डिग्री में फर्स्ट क्लास फर्स्ट की उपाधि हासिल की, जो उनकी अकादमिक प्रतिभा का सबूत है। यह उपलब्धि बताती है, कि वे सिर्फ एक अच्छे वकील ही नहीं, बल्कि कानून के गहरे जानकार भी हैं।

    जस्टिस कांत का करियर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में शुरू हुआ, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिखे। उनकी योग्यता को देखते हुए, 5 अक्टूबर 2018 को उन्हें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। हालांकि, इस नियुक्ति के दौरान कुछ विवाद भी हुए। रिटायर्ड जस्टिस ए.के. गोयल ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को एक पत्र लिखकर जस्टिस कांत की हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति पर आपत्ति जताई थी। लेकिन कॉलेजियम ने 3 अक्टूबर 2018 की अधिसूचना में उनकी पदोन्नति को मंजूरी दे दी, जो उनकी योग्यता और प्रतिभा का प्रमाण था।

    90,000 लंबित मामलों की चुनौती-

    नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्य कांत के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुप्रीम कोर्ट में लंबित 90,000 मामलों को कम करना है। 22 नवंबर 2025 को एक बयान में उन्होंने कहा था, कि इन लंबित मामलों को “मैनेजेबल” संख्या तक लाना उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। यह कोई छोटी चुनौती नहीं है। देश की सर्वोच्च अदालत में हजारों मामले सालों से लंबित हैं, जिससे न्याय पाने वाले लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। आम आदमी के लिए यह बेहद तकलीफदेह स्थिति है जब उन्हें अपने मामलों के फैसले के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है।

    जस्टिस कांत का मानना है, कि न्याय में देरी न्याय से इनकार के समान है। इसलिए वे इस समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं। उनकी योजना में न केवल मामलों की संख्या कम करना शामिल है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को और तेज और प्रभावी बनाना भी है। यह एक हरक्यूलियन टास्क है, लेकिन अगर कोई इसे कर सकता है, तो वह जस्टिस सूर्य कांत हैं, जिनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद प्रभावशाली रहा है।

    राष्ट्रीय महत्व के ऐतिहासिक फैसले-

    जस्टिस सूर्य कांत का सुप्रीम कोर्ट में कार्यकाल कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसलों से भरा रहा है। वे उस बेंच का हिस्सा रहे जिसने आर्टिकल 370 को खत्म करने के फैसले को बरकरार रखा, जो जम्मू-कश्मीर के लिए एक बड़ा बदलाव था। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता अधिकारों से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामलों में फैसले दिए हैं। ये फैसले सिर्फ कानूनी दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि ये देश के करोड़ों नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं।

    जस्टिस कांत उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को निलंबित कर दिया और निर्देश दिया, कि जब तक सरकार इसकी समीक्षा नहीं कर लेती, तब तक इसके तहत कोई नई FIR दर्ज नहीं की जाएगी। यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि राजद्रोह कानून का अक्सर दुरुपयोग होता था और निर्दोष लोगों को परेशान किया जाता था। जस्टिस कांत ने यह समझा, कि किसी भी कानून का उपयोग लोगों को डराने के लिए नहीं, बल्कि न्याय देने के लिए होना चाहिए।

    चुनाव आयोग और महिला सशक्तिकरण-

    जस्टिस सूर्य कांत ने चुनाव आयोग को भी टोका, जब बिहार में 65 लाख वोटर्स को मतदाता सूची से हटा दिया गया। उन्होंने इन विवरणों को सार्वजनिक करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश दिया। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि मतदाता सूची लोकतंत्र की रीढ़ है और किसी को भी मनमाने तरीके से इससे नहीं हटाया जा सकता। बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए, जस्टिस कांत ने यह सुनिश्चित किया, कि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रहे।

    महिला सशक्तिकरण में भी जस्टिस कांत का योगदान उल्लेखनीय रहा है। उन्हें बार एसोसिएशन में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का श्रेय दिया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन भी शामिल है। यह एक क्रांतिकारी कदम था क्योंकि कानूनी पेशे में महिलाओं की भागीदारी अभी भी कम है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया, कि महिला वकीलों को भी बराबर का अवसर मिले। इसके अलावा, वे सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन में समानता की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रहे हैं, जो एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है।

    राष्ट्रीय सुरक्षा और जवाबदेही-

    जस्टिस कांत उस बेंच का हिस्सा थे जिसने 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान हुई सुरक्षा चूक की जांच के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी नियुक्त की। उन्होंने कहा था, कि ऐसे मामलों में “न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग” की आवश्यकता होती है। यह बयान बताता है, कि वे हर मामले को गंभीरता से लेते हैं, चाहे वह किसी भी व्यक्ति या पद से संबंधित हो।

    पेगासस स्पाइवेयर मामले में भी जस्टिस सूर्य कांत की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उन्होंने कहा था, कि राज्य को “राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में फ्री पास नहीं मिल सकता”। यह बयान बेहद साहसिक था क्योंकि यह स्पष्ट करता है, कि सरकार भी कानून के दायरे में है और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की निजता का उल्लंघन नहीं कर सकती। उन्होंने साइबर एक्सपर्ट्स का एक पैनल गैरकानूनी निगरानी के आरोपों की जांच के लिए नियुक्त किया, जो एक पारदर्शी और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था।

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    रक्षा बलों और शैक्षणिक संस्थानों के लिए फैसले-

    जस्टिस कांत ने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन योजना को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया, जो सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए एक बड़ी जीत थी। यह योजना सुनिश्चित करती है, कि समान रैंक वाले और समान सेवा अवधि वाले सभी सैनिकों को समान पेंशन मिले, चाहे उन्होंने किसी भी समय सेवानिवृत्ति ली हो। इस फैसले से लाखों पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को लाभ हुआ।

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    जस्टिस सूर्य कांत उस सात-न्यायाधीशों की बेंच का भी हिस्सा रहे, जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के फैसले को पलट दिया, जिससे संस्थान की अल्पसंख्यक स्थिति पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया। यह एक लंबे समय से चल रहा विवाद था और जस्टिस कांत के फैसले ने इस मामले में एक नई दिशा दी।