Miss Universe Bangladesh 2025
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    Miss Universe Bangladesh 2025: मिस यूनिवर्स बांग्लादेश 2025 तानगिया जमान मेथिला ने जब अपनी नेशनल कॉस्ट्यूम पेश की, तो उन्होंने शायद सोचा भी नहीं होगा, कि यह लुक इतनी बहस का विषय बन जाएगा। द क्वीन ऑफ बेंगाल के नाम से पेश की गई इस पोशाक ने सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा कर दिया है। लोग सवाल उठा रहे हैं, कि आखिर हिंदू संस्कृति से प्रेरित दिखने वाली इस पोशाक में हिंदू धरोहर का जिक्र क्यों नहीं किया गया और सारा श्रेय मुगलों को क्यों दे दिया गया।

    बंगाल की रानी का लुक और उसकी कहानी-

    तानगिया जमान मेथिला ने अपनी पोशाक के बारे में बताते हुए लिखा, कि बंगाल के सुनहरे दिल से एक रानी का उदय होता है। उन्होंने बताया, कि उनकी पोशाक एक हाथ से बुनी हुई जामदानी साड़ी है, जो मूल रूप से मुगल सम्राटों, नवाबों और बंगाल के अभिजात वर्ग के लिए बुनी जाती थी। उनके अनुसार जामदानी सदियों के शाही संरक्षण और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है, एक ऐसा कपड़ा जहां हर धागा कलात्मकता, समर्पण और कालातीत सुंदरता को दर्शाता है।

    मेथिला ने आगे बताया, कि जामदानी बांग्लादेश की बुनी हुई आत्मा है। बंगाल की कालातीत करघों से उभरी यह नेशनल कॉस्ट्यूम एक हाथ से बुनी जामदानी साड़ी है, जो अनुग्रह, विरासत और लचीलेपन की जीवंत अभिव्यक्ति है। इसकी विरासत सत्रहवीं शताब्दी के मुगल युग से जुड़ी है, जब जामदानी को रानियों और कुलीनों द्वारा लक्जरी और शाही परिष्कार के प्रतीक के रूप में संजोया जाता था।

    पोशाक में क्या था खास और क्यों उठे सवाल-

    इस लुक के लिए तानगिया ने एक सफेद साड़ी पहनी थी, जिसे कई लोगों ने हिंदू देवी की छवि से जुड़े कमल के आसन जैसा बताया। साथ ही उन्होंने सोलह श्रृंगार के गहने भी पहने थे। आलोचकों ने कमल मोटिफ, ज्वेलरी और समग्र एस्थेटिक को हिंदू देवी की छवि, विशेष रूप से देवी सरस्वती से जोड़ा। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने तर्क दिया कि यह पूरी तरह से हिंदू धरोहर से प्रेरित है, लेकिन क्रेडिट मुगलों को दिया गया।

    एक्स पर एक यूजर ने लिखा, कि इस तस्वीर में वह जो कुछ भी पहन रही हैं, वह सब हिंदू विरासत की चीख रहा है, कमल, साड़ी, गहने, हिंदू देवी की तरह दिखने का प्रयास। लेकिन जब श्रेय देने की बात आई, तो उन्होंने मुगलों को दे दिया। एक और यूजर ने कहा कि मिस बांग्लादेश 2025 तानगिया मेथिला ने बांग्लादेश की नेशनल कॉस्ट्यूम का प्रतिनिधित्व करते हुए सफेद साड़ी पहनी, कमल में बैठीं, सोलह श्रृंगार किए जो हिंदू ज्वेलरी का अनिवार्य हिस्सा हैं और देवी सरस्वती की सीधी इमेजरी हैं, फिर भी हिंदू संस्कृति को क्रेडिट नहीं दिया। इसके बजाय उन्होंने इसे मुगल विरासत बताया।

    बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए अपमान बताया गया-

    इसे बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए अपमान बताते हुए एक यूजर ने टिप्पणी की कि सफेद साड़ी, गहने, कपड़े, सब कुछ सरस्वती की इमेजरी से लिया गया है, फिर भी इसका कोई जिक्र नहीं। उन्होंने हिंदुओं को क्रेडिट नहीं दिया जो वर्षों से बांग्लादेश में रहते थे, बल्कि कुलीन मुगल उपनिवेशवादियों का महिमामंडन किया। उनकी कॉस्ट्यूम एक्सेसरीज का श्रेय हिंदुओं और कारीगरों को दिया जाना चाहिए। एक अन्य यूजर ने कहा कि हमारी देवी आपकी एस्थेटिक नहीं है, अगर आप कुछ कॉपी कर रही हैं, तो कम से कम इसे इतना स्पष्ट न करें और कृपया हिंदू संस्कृति और देवताओं को अपनी पोशाक के रूप में छोड़ दें। आपकी अपनी संस्कृति है, उसका उपयोग करें, जैसे कि आपके देश में हिंदुओं का नरसंहार काफी नहीं है, अब हमारी संस्कृति चोरी कर रही हैं।

    जामदानी की पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक महत्व-

    जामदानी बुनाई एक पारंपरिक बांग्लादेशी टेक्सटाइल शिल्प है, जो अक्सर बंगाल क्षेत्र से जुड़ा होता है और ऐतिहासिक रूप से मुगल अभिजात वर्ग द्वारा संरक्षित किया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तानगिया द्वारा पेश की गई जामदानी साड़ी को मास्टर बुनकरों द्वारा एक सौ बीस दिनों से अधिक के श्रम की आवश्यकता थी। बांग्लादेश में जामदानी को इसके सांस्कृतिक महत्व और शिल्प कौशल के लिए मान्यता प्राप्त है।

    मिस यूनिवर्स में बांग्लादेश का प्रतिनिधित्व करते हुए, तानगिया जमान मेथिला का लुक स्थानीय शिल्प में निहित एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करने में सफल रहा। लेकिन विरासत की फ्रेमिंग ने बहस छेड़ दी।

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    सोशल मीडिया पर चर्चा जारी-

    सोशल मीडिया पर यह बहस अभी भी जारी है। कुछ लोग मानते हैं कि बंगाल की विरासत मिश्रित है और जामदानी को मुगल संरक्षण से जोड़ना सही है। वहीं, दूसरे लोग कह रहे हैं, कि इस पोशाक की विजुअल एस्थेटिक को देखते हुए हिंदू संस्कृति को भी श्रेय देना जरूरी था। कई लोगों ने यह भी कहा, कि बांग्लादेश में हिंदुओं की घटती आबादी और उनके साथ होने वाले व्यवहार को देखते हुए यह और भी संवेदनशील मुद्दा बन जाता है।

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    यह विवाद एक महत्वपूर्ण सवाल उठाता है, कि जब हम अपनी संस्कृति को दुनिया के सामने पेश करते हैं, तो क्या हम सभी योगदानकर्ताओं को सम्मान दे रहे हैं या फिर चुनिंदा रूप से इतिहास पेश कर रहे हैं। संस्कृति कभी एकतरफा नहीं होती, वह विभिन्न धाराओं के संगम से बनती है। और जब हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर खड़े होते हैं, तो हमें इस सच्चाई को पूरी ईमानदारी से दर्शाना चाहिए।