Schools With Zero Enrollment: शिक्षा मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों ने देश की शिक्षा व्यवस्था की एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने रखी है। 2024-25 शैक्षणिक सत्र में देश भर में लगभग 8,000 स्कूलों में एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया। इन स्कूलों में 20,817 शिक्षक नियुक्त हैं, लेकिन पढ़ाने के लिए कोई विद्यार्थी नहीं है। यह आंकड़े न केवल संसाधनों की बर्बादी की ओर इशारा करते हैं, बल्कि शिक्षा प्रणाली में गहरी खामियों को भी उजागर करते हैं।
मंत्रालय के डेटा के अनुसार, इस साल ऐसे स्कूलों की संख्या 7,993 है, जो पिछले साल के 12,954 से करीब 5,000 कम है। हालांकि यह कमी सकारात्मक लग सकती है, लेकिन अभी भी हजारों स्कूलों का खाली रहना एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है।
पश्चिम बंगाल-
पश्चिम बंगाल में स्थिति सबसे चिंताजनक है। राज्य में 3,812 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी छात्र नहीं है, और इन स्कूलों में 17,965 शिक्षक कार्यरत हैं। यह संख्या देश भर के कुल खाली स्कूलों के लगभग आधे के बराबर है। सवाल उठता है कि क्यों इतने सारे स्कूल खाली पड़े हैं और इतने शिक्षकों को बिना किसी काम के सैलरी क्यों दी जा रही है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन, स्कूलों की खराब स्थिति, और बेहतर शिक्षा की तलाश में अभिभावकों का निजी स्कूलों की ओर रुख करना इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं। कई बार स्कूल इतने दूर-दराज इलाकों में होते हैं कि बच्चों के लिए वहां पहुंचना ही मुश्किल हो जाता है।
तेलंगाना और मध्य प्रदेश भी पीछे नहीं-
तेलंगाना में 2,245 स्कूल ऐसे हैं जहां कोई नामांकन नहीं हुआ, और इन स्कूलों में 1,016 शिक्षक तैनात हैं। मध्य प्रदेश में यह संख्या 463 स्कूलों और 223 शिक्षकों की है। ये आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि कई राज्यों में फैली हुई है।
उत्तर प्रदेश में 81 ऐसे स्कूल हैं। राज्य सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए घोषणा की है कि जिन स्कूलों में लगातार तीन वर्षों से कोई नामांकन नहीं हुआ है, उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। यह कदम संसाधनों के सही इस्तेमाल और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है।
कुछ राज्यों ने दिखाई राह-
दिलचस्प बात यह है, कि हरियाणा, महाराष्ट्र, गोवा, असम, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में एक भी ऐसा स्कूल नहीं है जहां कोई नामांकन न हुआ हो। दिल्ली, पुडुचेरी, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दमन और दीव, और चंडीगढ़ में भी ऐसा कोई स्कूल नहीं है।
ये राज्य और केंद्र शासित प्रदेश दूसरों के लिए मिसाल हैं। इन क्षेत्रों में बेहतर योजना, स्कूलों का विलय, और संसाधनों का सही इस्तेमाल किया गया है। शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, और राज्यों को इस मुद्दे को हल करने की सलाह दी गई है। कुछ राज्यों ने संसाधनों और स्टाफ के बेहतर उपयोग के लिए स्कूलों को मर्ज कर दिया है।
एकल शिक्षक वाले स्कूलों की भी बड़ी संख्या-
देश भर में 33 लाख से अधिक छात्र ऐसे स्कूलों में पढ़ते हैं, जहां सिर्फ एक शिक्षक है। ऐसे स्कूलों की संख्या 1 लाख से अधिक है। आंध्र प्रदेश में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा है, उसके बाद उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक और लक्षद्वीप का नंबर आता है।
जब नामांकन की बात आती है, तो उत्तर प्रदेश टॉप पर है, उसके बाद झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश आते हैं। सकारात्मक बात यह है, कि एकल शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या 2022-23 में 1,18,190 से घटकर 2023-24 में 1,10,971 हो गई है, जो लगभग छह प्रतिशत की कमी दर्शाता है।
समाधान की दिशा में कदम-
यह समस्या गंभीर है, लेकिन असंभव नहीं। सरकार को ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने, स्कूलों का इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर बनाने, और अभिभावकों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। जहां नामांकन नहीं हो रहा, वहां स्कूलों को मर्ज करना या बंद करना एक व्यावहारिक समाधान हो सकता है, ताकि संसाधनों का सदुपयोग हो सके।
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शिक्षकों को भी सक्रिय रूप से समुदाय से जुड़ना होगा और यह समझना होगा, कि क्यों अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे। सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले खड़ा करने के लिए बुनियादी सुविधाओं, प्रशिक्षित शिक्षकों और आधुनिक शिक्षण विधियों की सख्त जरूरत है।
शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है और यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है, कि हर स्कूल में छात्र हों और हर छात्र को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। यह आंकड़े एक अलार्म की तरह हैं, जो हमें बताते हैं, कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
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