Ladakh Protest: लद्दाख में राज्यत्व और छठी अनुसूची की मांग को लेकर बुधवार (24 सितंबर) को स्थिति बेकाबू हो गई। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय में आग लगा दी, जिसके बाद पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। इस हिंसा में चार लोगों की जान चली गई और 30 अन्य घायल हो गए। लेह एपेक्स बॉडी द्वारा आयोजित इस बड़े बंद ने पूरे लेह शहर को हिला दिया।
इस दुखद घटना के बाद पर्यावरण कार्यकर्ता और नवाचारक सोनम वांगचुक ने अपना 15 दिन का भूख हड़ताल समाप्त कर दिया। अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लद्दाख के युवाओं से अपील करते हुए कहा, कि वे शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करें और पांच साल से चल रहे, इस आंदोलन को बर्बाद न करें। उनका मानना है कि केंद्र सरकार से बातचीत ही एकमात्र रास्ता है।
VERY SAD EVENTS IN LEH
My message of peaceful path failed today. I appeal to youth to please stop this nonsense. This only damages our cause.#LadakhAnshan pic.twitter.com/CzTNHoUkoC— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) September 24, 2025
2019 से शुरू हुई समस्या की जड़ें-
लद्दाख की वर्तमान स्थिति की शुरुआत 2019 में धारा 370 के निरस्तीकरण और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम से हुई। इस निर्णय के बाद पूर्व राज्य जम्मू-कश्मीर का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों में हो गया – विधानसभा वाला जम्मू-कश्मीर और बिना विधानसभा वाला लद्दाख। इस बदलाव के बाद लद्दाख के लोग खुद को सीधे केंद्रीय प्रशासन के अधीन पाया, जिससे उनकी राजनीतिक और कानूनी स्थिति विवादास्पद हो गई।
पहले लद्दाख के लोगों ने जम्मू-कश्मीर से अलग होने का स्वागत किया था, लेकिन जल्द ही उन्हें महसूस हुआ कि उन्होंने अपनी पहाड़ी विकास परिषदों की महत्वपूर्ण शक्तियां खो दी हैं। नौकरियों की कमी भी एक बड़ी समस्या बन गई है, क्योंकि अब वे जम्मू-कश्मीर की भर्ती बोर्डों से अलग हो गए हैं।
छठी अनुसूची की मांग क्यों?
लद्दाख की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है, इसलिए छठी अनुसूची के तहत इस क्षेत्र को शामिल करने की लगातार मांग हो रही है। भारतीय संविधान की धारा 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त जिला परिषदों का गठन करती है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को शासित करती हैं।
ये परिषदें भूमि, वन, पानी, कृषि, गांव परिषदों, स्वास्थ्य, स्वच्छता और स्थानीय पुलिसिंग जैसे मुद्दों पर कानून और नियम बना सकती हैं। फिलहाल उत्तर-पूर्व में 10 ऐसी परिषदें हैं – असम, मेघालय और मिजोरम में तीन-तीन, और त्रिपुरा में एक।
सोनम वांगचुक कौन हैं?
सोनम वांगचुक एक इंजीनियर और टिकाऊ उत्पादों के नवाचारक हैं। वे मुख्य रूप से इसलिए प्रसिद्ध हैं कि 2009 की हिंदी फिल्म “3 इडियट्स” में आमिर खान का किरदार उन्हीं से प्रेरित था। 2018 में उन्हें प्रतिष्ठित रैमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था। यह पुरस्कार उन्हें “दूरदराज के उत्तरी भारत में शिक्षा प्रणालियों के व्यवस्थित, सहयोगी और समुदाय-संचालित सुधार” के लिए दिया गया था।
वांगचुक का आंदोलन में योगदान-
हाल के वर्षों में वांगचुक ने लद्दाख के प्रशासनिक स्वायत्तता से जुड़े मुद्दों को उजागर किया है। 2019 में उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को पत्र लिखकर छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को अनुसूचित क्षेत्र का दर्जा देने की मांग की थी। मुंडा ने जवाब में कहा था कि मंत्रालय इस मामले पर विचार कर रहा है और गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया है। लेकिन 2023 तक इस विषय पर लद्दाख के नेताओं से कोई और चर्चा नहीं हुई।
वांगचुक का कहना है कि छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा भाजपा की 2019 की चुनावी वादा था, और भारत सरकार को अपना वचन निभाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख के लोगों ने शक्ति के विकेंद्रीकरण की मांग की है क्योंकि उनका मानना है कि “निम्न स्तर की नौकरशाही” “औद्योगिक शक्तियों और व्यापारिक घरानों” से प्रभावित हो सकती है, जो “यहां हर घाटी में खनन” चाहते हैं।
पहले भी हो चुके हैं प्रदर्शन-
यह पहली बार नहीं है, जब लद्दाख में प्रदर्शन हुए हैं। 6 मार्च 2024 को केंद्रीय गृह मंत्रालय, लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के बीच वार्ता असफल होने के दो दिन बाद, वांगचुक और अन्य ने लेह में अनशन शुरू किया था। उन्होंने 21 दिनों तक केवल पानी और नमक पर गुजारा और शून्य से कम तापमान में खुले में सोए।
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इसके बाद चीन बॉर्डर तक एक “पश्मीना मार्च” रद्द करना पड़ा था, क्योंकि प्रशासन ने धारा 144 लगाने की धमकी दी थी। यह मार्च उन चरवाहों के मुद्दों को उजागर करने के लिए था जो पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध पश्मीना बकरियों को लेह में पालते आए हैं। इनमें औद्योगिक संयंत्र स्थापित करने वाली कंपनियों के कारण भूमि का नुकसान और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी गतिविधियां शामिल थीं।
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