Amazon Kuiper
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    Amazon Kuiper: एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को आखिरकार भारत में ऑपरेशन की मंजूरी मिल गई है, जिससे उनकी फर्म को बड़ी राहत मिली है। लेकिन यह सोचना, कि स्टारलिंक का इस क्षेत्र में एकाधिकार होगा, तो यह बिल्कुल गलत होगा। अमेज़न का प्रोजेक्ट काइपर भी अगले साल भारत में अपनी सेवाएं लॉन्च करने की तैयारी में है, जो इस सेक्टर में एक नई प्रतिस्पर्धा का संकेत देता है।

    भारतीय दूरसंचार बाजार में सैटेलाइट इंटरनेट का आना एक क्रांतिकारी कदम है। यह तकनीक खासकर दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जहां अभी तक फाइबर या मोबाइल टावर पहुंचाना मुश्किल था।

    अमेज़न काइपर की देरी के कारण-

    कई रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेज़न का प्रोजेक्ट काइपर भारतीय बाजार में जियो सैटेलाइट, स्टारलिंक और वनवेब के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा करेगा। लेकिन अमेज़न के काइपर को स्टारलिंक के साथ-साथ लॉन्च नहीं करने के पीछे मुख्य कारण यह है, कि विभाग के पास फिलहाल सीमित संख्या में सैटेलाइट हैं। भारत में स्मूद ऑपरेशन चलाने के लिए अमेज़न को अधिक सैटेलाइट्स की जरूरत है।

    इसके अलावा, काइपर के नेटवर्क और ग्राउंड सिस्टम डिज़ाइन की भारत सरकार से अप्रूवल अभी भी पेंडिंग है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को भी ध्यान में रखना पड़ता है।

    अमेज़न काइपर से क्या उम्मीदें हैं-

    वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह बात बिल्कुल स्पष्ट है, कि काइपर इस साल देश में डेब्यू नहीं करेगा। अभी तक सरकार ने केवल तीन प्रदाताओं को अनुमति दी है, जियो-एसईएस का संयुक्त उद्यम, स्टारलिंक और वनवेब। जब इन ऑपरेटर्स की सेवाएं शुरू होने के लिए तैयार हो जाएंगी, तब सरकार पहले स्पेक्ट्रम आवंटित करेगी और एक फाइनल फीस तय करेगी जो कंपनियों को देनी होगी।

    इसके बाद ही ये फर्में अपने प्लान्स और नेटवर्क सर्विस को ग्राहकों को बेचने के लिए अधिकृत होंगी। फिलहाल काइपर संबंधित सरकारी अधिकारियों से बात कर रहा है ताकि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण को देखते हुए डेटा के स्थानीय भंडारण जैसी अनुपालन आवश्यकताओं को समझा और पूरा किया जा सके।

    सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन की अप्रूवल प्रक्रिया-

    सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन की अप्रूवल के लिए अमेज़न काइपर ने पहले ही केंद्र की नोडल एजेंसी और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) में आवेदन जमा किए हैं। यह प्रक्रिया काफी विस्तृत और तकनीकी है, जिसमें सुरक्षा और तकनीकी मानदंडों दोनों का सख्त पालन करना होता है। भारत सरकार सैटेलाइट सेवाओं के लिए अप्रूवल देते समय विशेष रूप से डेटा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखती है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को स्थानीय नियमों के अनुसार अपनी तकनीक और प्रक्रियाओं को एडजस्ट करना पड़ता है।

    संख्याओं में काइपर और स्टारलिंक-

    अभी तक काइपर के पास ऑर्बिट में 100 से अधिक सैटेलाइट हैं। इसके अतिरिक्त, कंपनी ने 10 बिलियन डॉलर निवेश करने और 3,200 सैटेलाइट्स का एक विशाल कॉन्स्टेलेशन बनाने की प्रतिबद्धता जताई है। जब हम इसकी तुलना स्टारलिंक के 6,700 सैटेलाइट्स से करते हैं, तो यह स्पष्ट है, कि बेहतरीन नेटवर्क प्रदान करने की प्रतिस्पर्धा में एलन मस्क का पलड़ा भारी दिख रहा है।

    यह संख्यात्मक अंतर महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिक सैटेलाइट्स का मतलब बेहतर कवरेज, तेज़ इंटरनेट स्पीड और अधिक विश्वसनीय सेवा है। स्टारलिंक का यह फायदा, उन्हें शुरुआती दौर में मजबूत स्थिति दिला सकता है।

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    भारतीय उपभोक्ताओं के लिए क्या मायने रखता है-

    इस प्रतिस्पर्धा का सबसे बड़ा फायदा भारतीय उपभोक्ताओं को मिलेगा। जब बाजार में कई विकल्प होंगे, तो कंपनियों को बेहतर सेवा देने और कॉम्पटेटिव करने पर मजबूर होना पड़ेगा। यह खासकर ग्रामीण और रिमोट इलाकों के लिए वरदान साबित हो सकता है, जहां अभी तक हाई-स्पीड इंटरनेट की पहुंच सीमित थी।

    सैटेलाइट इंटरनेट की शुरुआत से डिजिटल इंडिया के सपने को और भी मजबूती मिलेगी। यह तकनीक न केवल व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं बल्कि व्यापारिक और शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी नए अवसर खोलेगी।

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