Delhi Job Dispute: दिल्ली से सामने आया एक चौंकाने वाला मामला सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त चर्चा का विषय बन गया है। एक स्टार्टअप फाउंडर ने एक कैंडिडेट को ₹22 लाख के सालाना पैकेज पर नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन ऑफर लेटर मिलने के कुछ ही दिनों बाद उसे रद्द कर दिया गया। कारण? उस कैंडिडेट द्वारा सोशल मीडिया पर की गई एक धार्मिक टिप्पणी, जो फाउंडर को असहनीय और नफरत फैलाने वाली लगी।
ये घटना Reddit प्लेटफॉर्म पर एक यूज़र द्वारा शेयर की गई, जहां यूज़र ने लिखा, कि एक स्टार्टअप फाउंडर ने candidate को नौकरी पर रखने के बाद उसकी सोशल मीडिया प्रोफाइल देखी। उसमें मौजूद धार्मिक टिप्पणियों और कुछ पुराने पोस्ट्स को देखकर फाउंडर ने यह फैसला लिया, कि ऐसे व्यक्ति के साथ कंपनी का कल्चर मेल नहीं खाता और वह उसकी सोच का हिस्सा नहीं बनना चाहता। यही कारण था, कि उसने 22 लाख रुपए का जॉब ऑफर कैंसिल कर दिया।
Delhi Job Dispute सोशल मीडिया पोस्ट बना करियर का विलेन?
इस घटना ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है, कि क्या आज एक सोशल मीडिया पोस्ट किसी की करोड़ों की नौकरी ले सकती है? कैंडिडेट ने जो कुछ लिखा, वह शायद उसे सामान्य लगा हो, लेकिन आज की कॉर्पोरेट दुनिया में डिजिटल बिहेवियर को भी स्किल्स जितना ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कंपनियां अब सिर्फ़ आपके रिज़्यूमे पर नहीं, बल्कि आपके इंटरनेट पर किए गए हर कमेंट और पोस्ट पर भी ध्यान देती हैं।
फाउंडर ने बाद में अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, कि उनकी कंपनी में किसी भी तरह की कट्टर सोच या नफरत फैलाने वाली मानसिकता के लिए कोई जगह नहीं है। वे एक ऐसी टीम बनाना चाहते हैं, जिसमें हर विचार, हर धर्म और हर सोच का सम्मान हो। यही वजह थी, कि उन्होंने उस कैंडिडेट को ऑफर देने के बावजूद तुरंत ऑफर वापस ले लिया।
Delhi Job Dispute ऑनलाइन कमेंट, ऑफलाइन असर-
Reddit पर यह मामला वायरल होते ही लोग दो हिस्सों में बंट गए। कुछ यूज़र्स फाउंडर के फैसले को सही ठहरा रहे हैं, तो कुछ इसे फ्री स्पीच पर हमला मान रहे हैं। एक यूज़र ने लिखा, "किसी की सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी को आधार बनाकर इतनी बड़ी सज़ा देना क्या वाकई सही है?" वहीं दूसरे यूज़र का कहना था, "एक कंपनी को पूरा हक है, कि वो अपने कल्चर के हिसाब से फैसले ले और अगर कोई नफरत फैलाने वाली सोच रखता है, तो उसे रोकना ज़रूरी है।"
यह बहस केवल एक नौकरी के ऑफर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज के समय में सोशल मीडिया की ताकत और उसकी जिम्मेदारियों पर भी सवाल उठाती है। क्या हमें अपने निजी विचार भी अब सार्वजनिक तौर पर सोच-समझकर रखने होंगे? क्या सोशल मीडिया अब हमारी डिजिटल रेप्युटेशन का सबसे बड़ा हथियार या दुश्मन बन चुका है?
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फाउंडर का फैसला या डर?
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं, कि फाउंडर का यह कदम शायद सोशल मीडिया ट्रोलिंग और पब्लिक इमेज खराब होने के डर से लिया गया हो। आजकल कंपनियां भी सोशल मीडिया की ताकत से डरी हुई हैं और वह कोई भी ऐसा फैसला नहीं लेना चाहतीं, जो बाद में उनके खिलाफ जाए। ऐसे में धार्मिक मामलों में एक स्पष्ट और सख्त स्टैंड लेना उन्हें सुरक्षित रखता है।
डिजिटल जमाने में डिजिटल ज़िम्मेदारी-
इस मामले से एक बात तो साफ हो जाती है, कि आज के दौर में सोशल मीडिया पर आपकी राय, आपकी नौकरी से भी ज़्यादा कीमती हो सकती है। अब सिर्फ़ ऑफलाइन काबिलियत नहीं, बल्कि ऑनलाइन ज़िम्मेदारी भी जरूरी हो गई है। खासकर तब, जब आप किसी बड़ी कंपनी में काम करने जा रहे हों या स्टार्टअप की कोर टीम का हिस्सा बनने वाले हों।
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